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Exclusive: दिल्ली से क्या आया है, नहीं मालूम, हम यही बता सकते हैं कि हेमंत सोरेन ने गड़बड़ी की: बाबूलाल

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प्रभात खबर ने सत्ता-सिस्टम में बैठे लोग, पक्ष-विपक्ष के नेता, नौकरशाहों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ संवाद की नयी शृंखला शुरू की है. इसकी दूसरी कड़ी में राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी कार्यक्रम में पहुंचे.

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रांची : भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सड़क पर संघर्ष कर ले रहे हैं, लेकिन सदन में बोलने नहीं दिया जाता है. यह बात कचोटती है. श्री मरांडी सोमवार को प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में अपनी बात रख रहे थे. पूर्व मुख्यमंत्री ने वर्तमान राजनीति के साथ-साथ पार्टी की भविष्य की रणनीति पर खुल कर अपनी बातें रखीं.

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राजभवन का लिफाफा नहीं खुलने के सवाल पर श्री मरांडी ने कहा : 

दिल्ली से क्या आया है, मुझे नहीं मालूम है. लिफाफे में क्या है, यह भी मैं नहीं बता सकता हूं. हम यही बता सकते हैं कि हेमंत सोरेन ने गड़बड़ी की है. खनन व वन मंत्री रहते इन्होंने खनन लीज ली. यह केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के तहत गलत है. हम लोगों ने इसे लेकर राज्यपाल के पास शिकायत की. कहा कि मुख्यमंत्री ने गड़बड़ी की है.

अभी यह प्रक्रियाधीन है, लेकिन आज भी मैं मानता हूं कि इनकी सदस्यता जायेगी. कानूनविदों की भी यही राय है. पर कब जायेगी. कैसे जायेगी, यह हम नहीं बता सकते. हमने तो जो प्रक्रिया में था, वैसा किया. लेकिन आज भी मानता हूं कि हेमंत सोरेन की सदस्यता जानी चाहिए.

शीर्ष नेतृत्व से कहा था, विधायकी छोड़ देने दीजिए

यह पूछने पर कि सदन में आपको प्रतिपक्ष के नेता के रूप में मान्यता नहीं मिल पायी, यह कितना कचोटता है? श्री मरांडी ने कहा : कचोटता है. बहुत कचोटता है. मैं हेमंत और शिबू सोरेन परिवार को बहुत अच्छे से जानता हूं. मुझे पता था कि वे लोग ऐसा कर सकते हैं. इस कारण हमने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से कहा था कि मुझे विधायकी छोड़ देने दीजिए. उन्होंने मना कर दिया था. कानून भी जानते हैं, लेकिन, इसे 10वीं अनुसूची का मामला बनाकर अधिकार का हनन किया जा रहा है. इस कारण चाहकर भी सदन में अपनी बात नहीं रख पाता हूं.

वेल में आकर हल्ला भी नहीं कर सकता :

श्री मरांडी ने कहा : मैं वेल में आकर हल्ला भी नहीं कर सकता है. कभी-कभी सदन के अंदर बोलने के लिए हाथ उठाता हूं, तो मौका नहीं दिया जाता है. इसी राज्य में एक निर्दलीय को नेता माना गया है. सीएम भी बनाया गया है. देश में भी ऐसे कई उदाहरण हैं. प्रधानमंत्री तक बनाये गये हैं. पर सदन में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया जाता है. सदन में बोलने का मौका नहीं मिलता है, तो काफी कचोटता है.

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