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Azadi Ka Amrit Mahotsav: सत्याग्रह के चलते राम नारायण शर्मा दो बार गये थे जेल

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हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे,जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया. झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.

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Azadi Ka Amrit Mahotsav: राम नारायण शर्मा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की इकाई अखिल भारतीय चरखा संघ ने सन 1938 में झरिया खादी भंडार का प्रबंधक बनाकर झरिया भेजा था. यहां आने पर वह स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गये. उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की. इससे परेशान ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट ने उन्हें छह माह सश्रम कारावास की सजा सुनायी. जेल से निकलने के बाद उन्होंने प्रबंधक की नौकरी छोड़ दी. वह अगस्त 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये. प्रदर्शन के दौरान उन्हें पुन: गिरफ्तार किया गया. इस बार तीन वर्ष की सजा हुई. सन 1945 में जेल से बाहर आने के बाद वह कोयला मजदूरों के बीच काम करने लगे. आरएन शर्मा देश के उन गिने-चुने नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण में अहम भूमिका निभायी थी.

सत्याग्रह आंदोलन में हुई थी जेल

आरएन शर्मा का जन्म 31 अगस्त, 1915 को बिहार के सारण जिला के गड़खा थाना अंतर्गत सरायबक्स गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम चंद्रमौली शर्मा था. प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हासिल की. 1941 में महात्मा गांधी के आह्वान पर देश भर में कांग्रेसी नेता व्यक्तिगत सत्याग्रह में हिस्सा ले रहे थे. राम नारायण शर्मा ने भी तीन जुलाई, 1941 से व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया. लेकिन उन्हें फौरन गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें छह माह की सजा हुई. इस दौरान उन्हें हजारीबाग व डालटनगंज के जेल में रखा गया था. जेल से छूटने के बाद अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में नौकरी छोड़ कर सक्रिय रूप शामिल हो गये. इस बार उन्हें तीन वर्ष की सजा हुई. उन्हें हजारीबाग, पटना और भागलपुर के जेलों में रखा गया. 1945 में जेल से रिहा होने के बाद जाने-माने मजदूर नेता अब्दुल बारी के साथ कोयलांचल के मजदूरों के लिए काम करने लगे. 1946 में इन्हें बिहार कांग्रेस कमेटी ने बिहार कोलियरी मजदूर संघ की जिम्मेदारी दी.

निरसा विधानसभा चुनाव में हुई थी जीत

1952 में कांग्रेस ने उन्हें निरसा विधानसभा से पहली बार चुनाव लड़ने का मौका दिया. इस चुनाव में वह भारी मतों से विजयी हुए. वह 1977 तक चार बार अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से विधायक और एक बार सांसद रहे. 1971 में सांसद चुने गये थे. मजदूरों के बीच अपनी लोकप्रियता के कारण ही वह आजीवन बिहार इंटक के महामंत्री रहे थे. 1972 में बिहार कोलयरी मजदूर संघ का नाम बदल कर राष्ट्रीय कोलयरी मजदूर संघ कर दिया गया. कोयला उद्योग के मजदूरों के साथ इस्पात और बिजली जैसे महत्वपूर्ण औद्योगिक प्रतिष्ठानों के साथ सिंदरी में फर्टिलाजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में कार्यरत कर्मियों के न्यूनतम वेतन निर्धारण तक में उनकी अहम भूमिका होती थी.

बतौर लोकसभा सदस्य उन्होंने लोक सभा में अपने सहयोगी दामोदर पांडेय और चपलेंदु भट्टाचार्य के साथ मिलकर कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के लिए पहली आवाज उठायी थी. उनकी मांग को इंदिरा गांधी की सरकार ने गंभीरता से लिया और 1971 और 1973 में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया. उन्होंने दुनिया भर में मजदूर संगठनों की बैठक में भारतीय प्रतिनिधित्व किया था. उन्होंने 1949 में पिट्सबर्ग में कोयला समिति की बैठक में भाग लिया. 1960 में स्टॉकहोम में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय खनिक महासंघ के वार्षिक सम्मेलन में भारतीय खनिकों का प्रतिनिधत्वि किया. 1965 में डेनमार्क में ट्रेड यूनियन सेमिनार में भी भाग लिया. 11 अप्रैल, 1985 को उनका निधन हो गया.

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