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झारखंड : आयुष्मान योजना में 80 करोड़ फंसा, तो निजी अस्पताल मरीजों को भर्ती लेने से करने लगे आनाकानी

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राज्य में कई कॉरपोरेट अस्पताल आयुष्मान कार्ड को स्वीकार नहीं करते हैं. वहां आयुष्मान कार्ड लेकर जाने पर बताया जाता है कि इस बीमारी में आयुष्मान कार्ड मान्य नहीं है.

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रांची : राज्य के निजी अस्पताल (बड़े और छोटे दोनों) आयुष्मान भारत योजना के मरीजों को भर्ती लेने में फिर से आनाकानी करने लगे हैं. अस्पताल सीधे तरीके से तो नहीं पर बेड खाली नहीं होने का हवाला देकर मरीजों को दूसरे अस्पताल भेज रहे हैं. जानकारों के अनुसार आयुष्मान मद में निजी अस्पतालों के 80 करोड़ रुपये फंसा हुआ है. इस कारण मरीजों को भर्ती नहीं लिया जा रहा है. चिंता की बात यह है कि कैंसर, किडनी और सर्जरी वाले मरीजों को भी चक्कर काटना पड़ रहा है. एक कैंसर अस्पताल का 20 करोड़ और अन्य अस्पतालों के दो-दो करोड़ रुपये बाकी हैं. हालांकि निजी अस्पताल के संचालकों का कहना है कि वह स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से मिलकर अपनी पीड़ा बता चुके हैं.एक निजी अस्पताल के संचालक ने बताया कि आयुष्मान भारत योजना में दो इंश्योरेंस कंपनी सेवा प्रदान करती है. एक लाख तक के खर्च का भुगतान निजी अस्पतालों को नेशनल इंश्योरेंस कंपनी करती है. वहीं, एक लाख से अधिक का भुगतान स्टेट हेल्थ एजेंसी करती है. मरीज के इलाज का खर्च अगर 1,01,000 रुपये भी हो जाता है, तो भुगतान का तरीका बदल जाता है. पहले 1,000 रुपये स्टेट हेल्थ एजेंसी करेगी. इसके बाद 1,00,000 का भुगतान निजी अस्पतालों को नेशनल इंश्योरेंस कंपनी करेगी. यानी इलाज के एक लाख तक का फंड आसानी से मिल जाता है. लेकिन एक लाख से एक रुपये भी अगर अधिक हो गया, तो पैसा मिलना मुश्किल हो जाता है.

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कई कॉरपोरेट अस्पतालों में आयुष्मान कार्ड स्वीकार्य नहीं

राज्य में कई कॉरपोरेट अस्पताल आयुष्मान कार्ड को स्वीकार नहीं करते हैं. वहां आयुष्मान कार्ड लेकर जाने पर बताया जाता है कि इस बीमारी में आयुष्मान कार्ड मान्य नहीं है. जानकारों ने बताया कि कॉरपोरेट अस्तपाल व बड़े अस्पतालों में अधिकांश बीमारी की सर्जरी में एक लाख से ज्यादा का खर्च आता है, जो उनका पैकेज नहीं होता है. वहीं, एक लाख से ज्यादा खर्च होने पर पैसा लटक जाता है.

क्या कहते हैं सचिव

आयुष्मान योजना का पैसा कई महीनाें से लटक गया है, जिससे कई अस्पतालों को परेशानी होने लगी है. एक अस्पताल का तो 20 करोड़ फंस गया है. पैसा नहीं मिलने से अंतत: मरीजों को दिक्कत होने ही लगती है. सरकार को तत्काल निर्णय लेना चाहिए.

डॉ शंभू प्रसाद, सचिव, एचबीआइ आइएमए झारखंड

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