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Jharkhand News: पलामू बाघ रिजर्व क्षेत्र में 35 गांव के विस्थापन और पुनर्वास का मामला लंबित, वन विभाग का ये है दावा

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पलामू बाघ रिजर्व क्षेत्र के कोर एरिया में 35 गांव के 5070 परिवारों का विस्थापन एवं उनका पुनर्वास किया जाना है. लेकिन अभी तक वन विभाग सिर्फ 8 गांव के कोर एरिया में होने का दावा करती है.

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पलामू, वसीम अख्तर (महुआडांड़) : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा एन.टी.सी.ए. चीफ वाइल्डलाइफ वॉर्डन, कर्नाटक सरकार को भेजे गये पत्र में यह बताया गया है कि 19 राज्यों में 53 बाघ रिजर्व क्षेत्र हैं. इन 53 बाघ सुरक्षित क्षेत्र के कोर एरिया में 591 गांव में लगभग 64801 परिवार रहते हैं. इसके अनुसार झारखंड के एकमात्र ‘पलामू बाघ रिजर्व क्षेत्र के कोर एरिया में 35 गांव के 5070 परिवारों का विस्थापन एवं उनका पुनर्वास किया जाना है. लेकिन अभी तक वन विभाग ‘पलामू बाघ रिजर्व एरिया में सिर्फ 8 गांव के कोर एरिया में होने का दावा करती है. इन गांवों के अलावा और कौन कौन से 27 गांव है इसका उल्लेख नहीं है.

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केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति ने बचे हुए गांव के नाम भी सार्वजनिक करने को कहा

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार गुमला, विभाग ने मांग की है कि इन गांवों के नामों को भी सार्वजनिक करें. समिति ने अंदेशा जताया है कि कर्नाटक सरकार की तरह झारखंड के चीफ वाइल्डलाइफ वॉर्डन, को भी पत्र प्रेषित किया गया होगा. पत्र में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि गांव विस्थापन और पुनर्वास की प्रक्रिया बहुत धीमी है और बाघ संरक्षण के मद्देनजर यह एक गंभीर चिंता का विषय है.

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राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने क्या दिया है निर्देश

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के पत्र में झारखंड के चीफ र्वाइल्डलाइफ वॉर्डन से गांवों के विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर लेने और बाघ रिजर्व के कोर क्षेत्रों से सुचारु विस्थापन और पुनर्वास के लिए एक समय सीमा तय करने के निर्देश दिए गए हैं. पत्र में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने राज्य सरकार को गांवों के विस्थापन और पुनर्वास पर योजनाओं के बारे में सूचित करने और नियमित रूप से विस्थापन और पुनर्वास की प्रक्रिया की समीक्षा के आदेश भी दिए हैं.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने कहा- खतरे में है मुख्य बाघ आवास

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने पत्र में बाघ रिजर्व के कोर एरिया की व्याख्या करते हुए वनजीव संरक्षण अधिनियम 1972 ( 2006 में संशोधित) की धारा 38(v) (4) (i) का उल्लेख करते हुए कहा है कि नेशनल पार्क और अभ्यारण के कोर क्षेत्र या मुख्य बाघ आवास खतरे में हैं. जहां वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ मापदंडों के आधार पर स्थापित किया गया हो कि ऐसे क्षेत्रों को बाघ संरक्षण के उद्देश्य से सुरक्षित रखा जाना चाहिए.

पत्र में किन-किन बातों का है उल्लेख

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि 2006 में वन्यजीवों संरक्षण कानून 1972 में किये गये संशोधनों ने बाघ संरक्षण के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाने के उद्देश्य से पारस्परिक रूप से सहमत नियमों और शर्तों पर “स्वैक्षिक गांव पुनर्वास” की आवश्यकताएं निर्धारित की थी. पत्र द्वारा 2010 में “स्वैक्षिक ग्राम विस्थापन और पुनर्वास” को लेकर जारी किए गये दिशानिर्देशों और 8 अप्रैल 2021 को पुनर्वास पैकेज को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये करने करने वाले निर्देश को भी उल्लेखित किया गया है.

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति सचिव ने कही यह बात

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा है कि यह बहुत ही चौंकाने वाला और चिंता जनक विषय है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने मौजूदा कानूनों और संरक्षण ढांचे का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए और वन पर निर्भर समुदायों के अधिकारों, देश की जैवविविधता और वन्य जीवन के संरक्षण में उनकी भूमिका की अनदेखी करते हुए इस तरह का विस्थापन का आदेश जारी किया है. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण न केवल वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 ( संशोधित 2006) की अनुसूचित और गलत व्याख्या प्रदान करता है, बल्कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 का जान बूझकर की गई उपेक्षा भी दिखाता है. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के आदेश के परिणाम स्वरूप आने वाले भविष्य में बड़े पैमाने पर बेदखली, विस्थापन और जमीन से समुदाय के अलगाव की स्तिथि पैदा होगी. साथ ही वनों पर निर्भर समुदायों और लोग खुद को आर्थिक और सामाजिक असुरक्षाओं के जकड़ में पाएंगे.

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