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पलामू के राजहरा खदान में 12 साल से CCL निकाल रहा पानी, करोड़ों रुपये हो चुके हैं खर्च, जानें क्या है कारण

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जब पानी निकाल कर खुदाई की तैयारी की जाती है, फिर बारिश हो जाती है. इसके अतिरिक्त बगल की नदी का पानी भी पसीज कर खदान में भर जाता है. रांची से करीब 200 किलोमीटर दूर स्थित खदान वर्ष 2012 से बंद है.

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राजहरा से लौटकर मनोज सिंह

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सीसीएल की राजहरा खुली खदान (पलामू) से 12 साल से पानी निकाला जा रहा है. खदान से पानी निकलेगा, तभी कोयला निकल पायेगा. यहां तीनों शिफ्ट में पानी निकाला जा रहा है. अब तक कंपनी द्वारा करोड़ों लीटर पानी की निकासी की जा चुकी है. इस पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं. कंपनी प्रबंधन का कहना है कि जब पानी निकाल कर खुदाई की तैयारी की जाती है, फिर बारिश हो जाती है. इसके अतिरिक्त बगल की नदी का पानी भी पसीज कर खदान में भर जाता है. रांची से करीब 200 किलोमीटर दूर स्थित खदान वर्ष 2012 से बंद है. बीच-बीच में दूसरी जगह खनन करने के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रयास होता है. यह काम भी लंबे समय से चल रहा है. कंपनी को सफलता नहीं मिली है.

खत्म हो गयी है इलाके की रौनक

राजहरा खुली खदान देश के सबसे पुराने खदान में से एक है. वर्ष 1844 से इस खदान से खनन होता आ रहा है. पहले बंगाल कोल कंपनी इसका संचालन करती थी. वर्ष 1975 में कोयला कंपनियों के राष्ट्रीयकरण के बाद यह सीसीएल के तहत आ गया. सीसीएल की ओर से वर्ष 2012 तक कोयला निकाला गया है. कर्मचारी बताते हैं कि एक समय यहां से एक लाख टन तक कोयला निकलता था. डालटनगंज मुख्यालय से ज्यादा रौनक राजहरा में रहती थी. हर दिन सौ ट्रक कोयले की ढुलाई होती थी . 10 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलता था.

58 एकड़ जमीन पर है विवाद

सीसीएल 58 एकड़ जमीन पर खुदाई करना चाहता है. इस जमीन को लेकर रैयत व कंपनी के बीच विवाद है. कंपनी ने विवाद को सुलझाने के लिए कई बार जिला प्रशासन से आग्रह किया है. रैयत इस जमीन से हटना नहीं चाहते हैं. जिला प्रशासन ने जमीन चिहिनत कर सीसीएल को नहीं दिया है.

रैयतों का कहना है कि उन लोगों को कोई मुआवजा नहीं मिला है. वहीं, सीसीएल प्रबंधन का कहना है कि मुआवजा लेने के बाद भी कई लोग जमीन नहीं छोड़ना चाह रहे हैं. अगर यह जमीन मिल जायेगी तो अगले सात साल तक कोयला निकाला जा सकता है.

स्मोकलेस कोयला है यहां का

सीसीएल प्रबंधन का कहना है कि यहां के कोयला की गुणवत्ता अच्छी है. इसकी बाजार में मांग बहुत अधिक है. जब यहां से उत्पादन होता था, इसकी कीमत अच्छी मिलती था. अभी भी कोयला निकाला जायेगा, तो उसकी गुणवत्ता अच्छी होगी.

नहीं मिल रहा सीएसआर का लाभ

यहां खनन नहीं हो रहा है, इस कारण कंपनी सीएसआर का पैसा भी नहीं खर्च कर पा रही है. खदान संचालन के समय आसपास के लोगों के लिए कई सीएसआर के काम होते थे. कंपनी का साइडिंग भी अब निजी कंपनियों के इस्तेमाल में आ रहा है. यहां प्रोजेक्ट ऑफिसर का पदस्थापन नहीं है. एक चिकित्सक पदस्थापित हैं, जो कर्मियों का इलाज करते हैं.

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