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टाना भगत: झारखंड का एक ऐसा संप्रदाय, जो महात्मा गांधी को मानता है अवतार

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बापू को भारत को आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में तो सभी जानते हैं. अहिंसा केंद्रित राजनीतिक विचारक के रूप में भी दुनिया में उनकी ख्याति है. नई विश्व व्यवस्था की वकालत करने वाले दार्शनिक रूप से भी सभी अवगत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी को अवतार के रूप में पूजने वाला एक संप्रदाय टानाभगत भी है

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कुड़ू (लोहरदगा), अमित कुमार राज: खादी के सफेद कुर्ता-धोती को सामाजिक आदर्श और राजनीतिक लिबास के रूप में तो आप जरूर जानते होंगे, लेकिन क्या यह एक धार्मिक पोशाक भी है? अगर आपका उत्तर नहीं है तो आप गलत हैं. आपको अपनी गलती का अहसास झारखंड आने पर होगा. यहां एक संप्रदाय है टाना भगत, जिनकी धार्मिक पोशाक ही खादी की सफेद कुर्ता-धोती है, क्योंकि यह इनके गांधी बाबा का दिया वस्त्र है. गांधी बाबा यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इनके लिए केवल स्वतंत्रता सेनानी या राजनीतिक विचारक नहीं बल्कि ईश्वरीय अवतार हैं. टाना भगत संप्रदाय के अनुयायियों को विश्वास है कि गांधी उनका उद्धार करने के लिए दोबारा आएंगे.

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गांधी के आदर्शों पर आज भी चल रहे टानाभगत

टाना भगत आजादी के 77 साल बाद भी फांकाकसी का जीवन जीने को विवश हैं. इनका न तो सामाजिक न ही आर्थिक और न ही शिक्षा के क्षेत्र में विकास हो पाया है. मूलभूत सुविधाओं के लिए टाना भगत तरस रहे हैं. लोहरदगा जिले के कुड़ू प्रखंड के आधा दर्जन गांवों बंदुवा, दुबांग, चीरी बरवाटोली, जिंगी, टाकू पतरा टोली तथा अन्य गांवों में टाना भगत निवास करते हैं. टाना भगतों की कुल आबादी कुड़ू प्रखंड में लगभग चार हजार पांच सौ है. टाना भगत आज भी पुरानी पद्धति तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए अहिंसा परमो धर्मः के मार्ग पर चल रहे हैं.

गौरवशाली है टानाभगतों का इतिहास

कुड़ू प्रखंड के टाना भगतों का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. कुड़ू प्रखंड के बंदुवा गांव निवासी जतरा टाना भगत, आशीर्वाद टाना भगत, पुरण टाना भगत, गुदरी टाना भगत तथा चंदा टाना भगत आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे. इस टीम का नेतृत्व जतरा टाना भगत ने किया था. साल 1930 में लोहरदगा में अधिवेशन बुलाया गया था जहां जतरा टाना भगत ने कुड़ू का प्रतिनिधित्व किया था. इसके बाद आंदोलन ने धार पकड़ी और वहां शामिल टाना भगत महाजनी प्रथा, अंग्रेजों को कर अदा करने के खिलाफ तथा अपने जल, जंगल तथा जमीन को बचाने के लिए जवानी काल में आंदोलन की राह पकड़ ली. आंदोलन को अहिंसावादी बनाने तथा महात्मा गांधी को आदर्श मानने वाले टाना भगतों का आंदोलन कुड़ू से निकलकर आसपास के क्षेत्र डाल्टनगंज,रांची, गुमला तथा चतरा तक पहुंच गया. आंदोलन को देख अंग्रेजी हुकूमत ने पांचों टाना भगतों को धोखे से साल 1939 में गिरफ्तार करते हुए बिहार के फुलवारी शरीफ के जेल में डाल दिया, जबकि आशीर्वाद टाना भगत तथा जतरा टाना भगत को सेल में बंद कर दिया. एक साल तक जेल में रहने के बाद सभी बाहर निकले तथा आंदोलन को तेज कर दिया.

कुड़ू थाना में चरखा छाप तिरंगा फहराया

साल 1941 में रामगढ़ में अधिवेशन बुलाया गया, जहां सुभाषचंद्र बोस से तथा हजारीबाग में महात्मा गांधी से मुलाकात हुई. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आशीर्वाद टाना भगत तथा जतरा टाना भगत के आंदोलन को देखते हुए रांची क्षेत्र का नेता बनाया. बड़ी जिम्मेदारी मिलने से आशीर्वाद टाना भगत तथा जतरा टाना भगत का मनोबल काफी बढ़ गया. आजादी के पहले साल 1942 के 26 जनवरी को आशीर्वाद टाना भगत,जतरा टाना भगत, पुरण टाना भगत, लालू टाना भगत,गुदरी टाना भगत तथा चंदा टाना भगत ने अंग्रेजी हुकूमत को खुली चुनौती देते हुए कुड़ू थाना में चरखा छाप तिरंगा फहराया. तिरंगा फहराने के पहले अंग्रेजी हुकूमत ने सभी छह आंदोलनकारियों को खूब धमकाया, लेकिन अहिंसा के पुजारी तथा महात्मा गांधी के अनुयायी टाना भगतों का कदम तिरंगा फहराने के लिए नहीं डिगे व घंटा बजाकर चरखा छाप तिरंगा फहराने में कामयाब रहे.

26 जनवरी व 15 अगस्त को फहराते हैं चरखा छाप तिरंगा

इसके बाद से हर 26 जनवरी गणतंत्र दिवस तथा 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चरखा छाप तिरंगा कुड़ू में फहराया जाता है. इसके बाद देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ. साल 1965 में जब इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो सभी टाना भगतों को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया. देश को आजादी दिलाने में सत्य तथा अहिंसा के पथ पर चलते हुए आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले टाना भगत आज मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

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