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विश्व विधवा दिवस : पति के निधन के बाद भी रीता ने हौसला नहीं खोया, अपने दम पर परिवार को संभाला

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वहीं जिस परिवार की महिला आत्मविश्वासी नहीं होती, वह परिवार बिखर जाता है. बच्चों का लालन पालन सही तरीके से नहीं हो पाता. लेकिन मां में नेतृत्व क्षमता हो, तो परिवार को आगे बढ़ाया जा सकता है. लोहरदगा शहरी क्षेत्र के रीता देवी के पति स्व रवींद्र प्रसाद उर्फ भोला का निधन 1991 में माता वैष्णवदेवी के दर्शन कर लौटने के क्रम में सड़क दुर्घटना में पानीपत में हो गयी थी. इस दुर्घटना के बाद परिवार पर मानो दुख का पहाड़ टूट पड़ा.

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लोहरदगा : किसी भी परिवार में पति के असामयिक निधन के बाद उस घर की स्थिति दयनीय हो जाती है. कड़े संघर्ष के बाद परिवार को समेट कर आगे बढ़ाया जाता है. कई परिवार घर के प्रमुख व्यक्ति के जाने के बाद बिखर सा जाता है. परिवार के मुखिया के निधन के बाद उस घर की महिला के कंधों पर परिवार की जिम्मेवारी आ जाती है. महिला यदि आत्मविश्वासी एवं ठोस निर्णय लेने वाली होती है, तो परिवार को संभलते देर नहीं लगती.

वहीं जिस परिवार की महिला आत्मविश्वासी नहीं होती, वह परिवार बिखर जाता है. बच्चों का लालन पालन सही तरीके से नहीं हो पाता. लेकिन मां में नेतृत्व क्षमता हो, तो परिवार को आगे बढ़ाया जा सकता है. लोहरदगा शहरी क्षेत्र के रीता देवी के पति स्व रवींद्र प्रसाद उर्फ भोला का निधन 1991 में माता वैष्णवदेवी के दर्शन कर लौटने के क्रम में सड़क दुर्घटना में पानीपत में हो गयी थी. इस दुर्घटना के बाद परिवार पर मानो दुख का पहाड़ टूट पड़ा.

समय गुजरा और रीता देवी ने अपने बच्चों के लालन पालन का बीडा उठाया. बच्चो के लालन पालन में रीता देवी के ससुर रिटायर्ड शिक्षक स्व शिव कुमार साहू का अहम योगदान रहा. रीता देवी एवं उनके ससुर ने बच्चों को किसी तरह की कमी नहीं होने दी. दोनों का प्रयास रहा कि बच्चों को अपने पिता की कमी का एहसास ना हो और वे निरंतर अपने उद्देश्य में सफल हो सके. रीता देवी कुशल गृहिणी थीं. लेकिन समय ने उन्हें भी कुछ करने के लिए प्रोत्साहित किया.

रीता देवी पति के निधन के बाद मैट्रिक, इंटर, बीए एवं एमए की पढ़ाई पूरी की. परिवार को सही रास्ते और बच्चो के उद्देश्य को पूरा करने के लिए खुद प्रोत्साहित हुई और 1993 में बालिका स्कूल के समीप लवली नामक ब्यूटी पार्लर खोला. ससुर का सहयोग प्राप्त था ही, इन्हें बच्चों को प्रोत्साहित कर आगे बढ़ाने में समय नहीं लगा. रीता देवी के एक पुत्र एवं दो पुत्री है. कड़ी मेहनत के बाद पुत्र आशीष कुमार जो क्रिकेट में रुचि रखता है उसे क्रिकेट खेलने की छूट दी.

कोचिंग मे एडमिशन कराकर आशीष को अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए भेजा. आशीष भी अपने उद्देश्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत कर 10 वर्ष की उम्र में ही आशीष ने कोचिंग जवाइन कर ली और कोच आलोक रॉय के नेतृत्व में खेल प्रारंभ किया. कोच ने आशीष की बॉलिंग देख प्रभावित हुए और उन्हें बेहतर प्रशिक्षण दिया. आशीष 2000 में 14 वर्ष की उम्र मे स्टेट लेवल का खेल स्टैंड बाई, 2003 में 15 वर्ष की उम्र में बिहार एसोसिएशन के अंडर में सीके नाइडू ट्रॉफी खेला और बेहतर प्रदर्शन किया. तथा इसी स्कूल की ओर से झारखंड का प्रतिनिधित्व भी किया.

आशीष कुमार का चयन रणजी ट्राफी तथा टी20 में भी हुआ था. आशीष 2014 से लागातार रणजी ट्राफी खेलता आ रहा है. खेल के माध्यम से आशीष को बिहार सरकार में कार्यालय महालेखाकार में नौकरी मिली. वर्तमान समय में आशीष रांची के प्रधान लेखाकार कार्यालय में कार्यरत है. रीता देवी की दो पुत्रियां भी है. जिन्हें पढ़ा लिखाकर शादी कर दी है. दोनों पुत्रियां अपने ससुराल में खुशहाल जीवन व्यत्तीत कर रहीं है.

रीता देवी का सफर चौका चूल्हों में नहीं बीता. 2008 में वें नगर परिषद क्षेत्र की वार्ड नंबर 16 की वार्ड पार्षद चुनी गई. वर्तमान समय में रीता देवी स्वयं ब्यूटी पार्लर चलाती है. उनका पुत्र आशीष कुमार सरकारी नौकरी एवं बहु कोमल कुमारी भी सरकारी स्कूल में शिक्षिका के पद पर कार्यरत है. रीता देवी ने बताया कि जिस समय उनके पति का निधन हुआ उस समय पानीपत में वे उनके साथ थीं. और उनका पुत्र मात्र दो वर्ष का था. उन्होंने बताया कि पति के निधन के बाद वे टूट सी गई थी. लेकिन बाद में हौसला बनाया और पूरे परिवार की जिम्मेवारी बखूबी निभाने की निश्चय ली. आज उनका पूरा परिवार खुशहाल है.

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