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ड्रैगन फ्रूट की खेती में किस्मत आजमा रहे हैं लोहरदगा के किसान

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विभाग द्वारा ड्रैगन फ्रूट का पौधा भी उपलब्ध कराया गया था. पिछले दो वर्षों में इसके पौधे लहलहाने लगे हैं. इससे उत्पादित फलों को बाजारों में बिक्री कर अच्छी आमदनी भी कर रही हैं.

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संजय कुमार, लोहरदगा

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कृषि प्रधान लोहरदगा जिले में मेहनतकश किसानों की कमी नहीं है. बदलते समय में अब यहां के किसानों की सोच में भी बदलाव हो रहा है. वैज्ञानिक सोच व आधुनिक उपकरण के साथ पारंपरिक खेती के अलावे किसान नयी-नयी किस्म की खेती में भी अपनी किस्मत आजमाने में लगे हैं. कोई हरी सब्जी की खेती, तो कोई गुलाब, गेंदा व जरबेरा जैसे फूलों की खेती में भाग्य आजमा रहे हैं. वहीं कई किसान आम की बागवानी तो कई गन्ना, तरबूज, अमरूद तथा स्ट्रॉबेरी जैसे अन्य मौसमी फलों की खेती में पसीना बहाकर स्वावलंबन की राह पर कदम बढ़ा चुके हैं.

लोहरदगा जिले में औषधीय गुणों से परिपूर्ण विदेशी फ्रूट ड्रैगन की खेती में भी किसानों को अपनी किस्मत आजमाते देखा जा रहा है. ड्रैगन फ्रूट की खेती से जुड़ी एमए-बीएड की डिग्री प्राप्त महिला कृषक ने यह साबित कर दिया है कि लोहरदगा की मिट्टी में सिर्फ धान की खेती ही नहीं बल्कि सुपर फ्रूट का भी बेहतर उत्पादन किया जा सकता है. लोहरदगा की रहने वाली संगीता केरकेट्टा पारा शिक्षिका का पद छोड़ पिछले दो साल से ड्रैगन फ्रूट की खेती कर न सिर्फ स्वरोजगार से जुड़ी हुई हैं बल्कि अन्य महिला कृषकों को भी ड्रैगन फ्रूट की खेती की प्रति आकर्षित कर रही हैं. संगीता ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती करने के लिए उद्यान विभाग की ओर से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं. साथ ही विभाग द्वारा ड्रैगन फ्रूट का पौधा भी उपलब्ध कराया गया था. पिछले दो वर्षों में इसके पौधे लहलहाने लगे हैं. इससे उत्पादित फलों को बाजारों में बिक्री कर अच्छी आमदनी भी कर रही हैं.

50 डिसमिल भूमि पर कर रहीं ड्रैगन फ्रूट की खेती:

लोहरदगा बलदेव साहू महाविद्यालय के पीछे मुरकी तोरार निवासी संगीता केरकेट्टा ने बताया कि फिलहाल अपने गांव में तकरीबन एक लाख रुपये लगाकर 50 डिसमिल में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रही हैं. नियमित देखरेख और मेहनत करने के बाद अब अच्छा मुनाफा हो रहा है. संगीता बताती हैं कि लोहरदगा में जहां किसान बरसात में धान के खेती करके साल भर उसी पर आश्रित रहते हैं, वह ड्रैगन फ्रूट की खेती कर अपनी आय चार गुणा बढ़ा सकते हैं. इस फल की खेती में बहुत कम पानी की जरूरत होती है. एक बार फल तैयार होने के बाद ड्रैगन फ्रूट के पौधे में लगातार फल लगते रहते हैं. बाजार में इसे 300 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है. वहीं 100 रुपये पीस के हिसाब से भी बेचा जाता है.

किसानों को मिल रहा उद्यान विभाग का सहयोग

जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू करने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उद्यान विभाग भी जुटा हुआ है. किसानों को सरकारी अनुदान का लाभ देकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. इस संदर्भ में जिला उद्यान पदाधिकारी संतोष कुमार ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए समय-समय पर किसानों को प्रशिक्षित विशेषज्ञ द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. साथ ही स्थल भ्रमण कर किसानों को तकनीकी जानकारी भी दी जा रही है. ताकि किसान आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन सके.

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