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बारियातू में सरई की बहार, आमदनी का साधन बना

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प्रखंड में इन दिनों सखुआ के फल सरई (साल बीज) की बहार आ गयी है. सखुआ का यह फल ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिये आय का महत्वपूर्ण साधन बन गया है.

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बारियातू . प्रखंड में इन दिनों सखुआ के फल सरई (साल बीज) की बहार आ गयी है. सखुआ का यह फल ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिये आय का महत्वपूर्ण साधन बन गया है. इस फल का महत्व सरहुल पर्व में काफी बढ़ जाता है. इसकी पूजा-अर्चना कर फुलखोंसी भी की जाती है. बसंत पंचमी से सखुआ में फूल लगने लगता है. जून माह तक सखुआ का फूल फल में बदल जाता है. जिसे चुनकर ग्रामीण बाजार में बेचते हैं.

15 रुपये किलो बिक रहा है सरई

ग्रामीण जंगल में सरई को जमाकर अपने आंगन, घर, छत, खलिहान व सड़कों पर सुखाते हैं. सूखने के बाद फलों को आग में जलाते है. इसके बाद फल के छिलके को हटाकर उसे बाजार में बेचते हैं. बाजार में सरई 15 रुपये किलो की दर से बिक रहा है. व्यापारी इन फलों को ग्रामीणों से कम कीमत पर खरीदकर छत्तीसगढ़ स्थित सॉल्वेंट प्लांट भेजकर मोटी रकम कमाते हैं. सरई से डालडा, साबुन आदि बनता है. तेल बनाने के लिए इसका विदेशों में निर्यात भी किया जाता है. यहां उपयुक्त बाजार नहीं होने के कारण ग्रामीणों को बेहतर आमदनी नहीं हो पाती है. अगर झारखंड में इसकी खपत व बाजार उपलब्ध हो जाये, तो निश्चित ही ग्रामीणों की आय बढ़ेगी. पलायन पर भी अंकुश लगेगा. प्रखंड के गुरुसाल्वे, साल्वे, रेंची, बेसरा, जबरा, शिबला, बालूभांग, विश्रामपुर, रूद, गड़गोमा, नावाडीह, गोनिया, राजगुरू, मतकोमा, बारिबाद, करमा, चुंबा, रहिया, बरवाडीह, पकरूआ, झीरमतकोमा, हेरहणहोपा, बुढ़ीसखुआ, लाटू, नचना सहित अन्य जंगल में प्रतिदिन ग्रामीण इसे जमा करने के लिये जुट रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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