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मांदर बनाने वाले परिवार उपेक्षित

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मांदर बनानेवालों को नहीं मिली है सरकारी मदद और न मिला प्रोत्साहन

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सतीश शर्मा, तोरपा झारखंडी वाद्य यंत्रों में प्रमुख वाद्य यंत्र है मांदर. शादी विवाह, पर्व त्योहार हो या कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम, मांदर की थाप हर जगह सुनायी देती है. मांदर की थाप शादी, विवाद, पर्व त्योहार की खुशियों को दुगुना कर देता है. परंतु लोगों की जिंदगी में खुशियां बिखेरने वाले मांदर बनानेवाले परिवार आज उपेक्षित हैं. इन्हें न तो कोई सरकारी मदद मिलती है और न ही कोई प्रोत्साहन मिलता है. पीढ़ियों से मांदर बना रहा है रमेश राम का परिवार : तोरपा प्रखंड के तपकारा तुबीटोली निवासी रमेश राम का परिवार पीढ़ियों से मांदर बना रहा है. मांदर बनाना इनका खानदानी पेशा है. रमेश बताते हैं कि वह स्वयं विगत 35 वर्षों से मांदर बनाने का काम कर रहे हैं. वर्तमान में उनके परिवार के समन राम तथा कुलदीप राम भी मांदर बनाने का काम करते हैं. इसके पूर्व उनके दादा-परदादा मांदर बनाया करते थे. आय का एकमात्र स्रोत है मांदर का निर्माण : रमेश राम कहते हैं कि उनके परिवार की आय का एकमात्र स्रोत मांदर का निर्माण ही है. खेतीबारी के लिए जमीन नहीं है. पूरा परिवार इसी काम में लगा है. वह बताते हैं कि एक मांदर बनाने में तीन से चार दिन लगते हैं. अकेले का काम नहीं है, इसलिए परिवार के लोग मिलकर बनाते हैं. मांदर तैयार होने के बाद 4500 से 5000 रुपये में एक मांदर बिकता है. जिसे 800 से 1000 रुपये की आय हो जाती है. मांदर को तपकारा, जलटांडा, रायकेरा आदि बाजार में जाकर बेचते हैं. दिसंबर तथा करमा जिउतिया पर्व के दौरान मांदर की बिक्री ज्यादा होती है. वह बताते हैं साल भर में 40 से 50 मांदर बेच लेते हैं. कई चुनौतियां हैं मांदर निर्माण कार्य में : मांदर बनाने में कई चुनौतियां हैं. मांदर के लिए खोली (मांदर का ढांचा) तथा चमड़ा का जुगाड़ करना पड़ता है. इसमें कठिनाई होती है. खोली लापुंग प्रखंड से लेकर आते हैं. नहीं मिलती है कोई सरकारी मदद : मांदर बनानेवाले परिवार को कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है. रमेश राम कहते हैं कि मदद की बात तो छोड़ दें, कभी प्रोत्साहन भी नहीं मिला है. उनकी मांग है कि सरकार की तरफ से मांदर बनानेवालों को पूंजी उपलब्ध करायी जाये. पूंजी के अभाव में भी वे इस काम को अच्छे तरीके से नहीं कर सकते हैं. न आवास मिला है न ही शौचालय : मांदर बनानेवाले लोगों के परिवार को अब तक न तो आवास मिला है और न ही शौचालय. अपने पैसे से शौचालय का निर्माण करा रहे हैं. आवास के लिए कई बार आवेदन दिया, परंतु अब तक आवास भी नहीं मिला है. रमेश ने बताया कि उन्हें पेंशन भी नहीं मिलता है.

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