Jamshedpur News.
सुंदरनगर ब्यांगबिल निवासी प्रो लखाई बास्के संताल समाज की भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए मिशन ओलचिकी को सफल बनाने में समर्पित हैं. परसुडीह खासमहल स्थित श्यामा प्रसाद इंटर कॉलेज में संताली विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत प्रो लखाई बास्के डिजिटल प्लेटफॉर्म और व्यक्तिगत कक्षाओं के माध्यम से ओलचिकी लिपि के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं. इसके साथ ही वे करीम सिटी कॉलेज में भी जाकर छात्रों को संताली पढ़ाते हैं. अपने व्यस्त समय के बावजूद वे शाम आठ से नौ बजे तक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विभिन्न राज्यों के बच्चों और बड़ों को ओलचिकी लिपि में पढ़ना-लिखना सिखाते हैं. उनका यह प्रयास संताल समाज को सशक्त बनाने और इसे समृद्धि की ओर ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. वे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ओलचिकी लिपि में पढ़ना-लिखना सिखाना इसी दिसंबर महीने के पहली तारीख को शुरू किया. फिलहाल शनिवार के दिन ही पढ़ाई हो रही है, लेकिन बाद में इसे दैनिक किया जायेगा.पारंपरिक आदिवासी वाद्ययंत्रों के हैं अच्छे जानकार
प्रो लखाई हांसदा केवल एक शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक कुशल साहित्यकार और पारंपरिक आदिवासी वाद्ययंत्रों के विशेषज्ञ भी हैं. वे अपने लेखन और सृजनशीलता के माध्यम से संताल संस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
मिशन ओलचिकी को सफल बनाना है : प्रो लखाई बास्के
प्रो लखाई बास्के बताते हैं कि वे मिशन ओलचिकी के तहत लोगों को ओलचिकी लिपि में पढ़ना-लिखना सीखा रहे हैं. उनका इस मिशन के पीछे मकसद यह है कि ओलचिकी लिपि को हर आदिवासी के घर तक पहुंचाना है. ओलचिकी लिपि वर्ष 2025 में 100 साल पूरा कर रहा है. इस शताब्दी वर्ष में ओलचिकी लिपि को एक अलग पहचान देना है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है