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Special Story: बहुत ही जिद्दी स्वभाव के थे निर्मल महतो एक बार जो ठान लेते वह करके ही मानते

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आज आठ अगस्त है. यानी शहीद निर्मल महतो का शहादत दिवस. लौहनगरी ही नहीं पूरे झारखंड, बंगाल और ओडिशा में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन करते हैं. शहादत दिवस के मौके पर निर्मल महतो की बहन (सात भाइयों में इकलौती) शांति बाला महतो से प्रभात खबर ने बातचीत की. जानिए उन्होंने क्या कहा...

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कुमार आनंद, जमशेदपुर

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Prabhat Khabar Special: आज आठ अगस्त है. यानी शहीद निर्मल महतो का शहादत दिवस. लौहनगरी ही नहीं पूरे झारखंड, बंगाल और ओडिशा में भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन करते हैं. शहर में मुख्य आयोजन बिष्टुपुर चमरिया गेस्ट हाउस स्थित शहीद स्थल और कदमा उलियान स्थित समाधि स्थल पर हो रहा है. दोनों स्थानों पर आयोजित होने वाली श्रद्धांजलि सभा, सर्वधर्म प्रार्थना, प्रभात फेरी और जनसभा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई मंत्री, विधायक, सांसद समेत नेता और कार्यकर्ता शामिल होंगे.

निर्मल महतो की बहन ने साझा की यादें

शहादत दिवस के मौके पर निर्मल महतो की बहन (सात भाइयों में इकलौती) शांति बाला महतो से प्रभात खबर ने बातचीत की. इस दौरान उन्होंने निर्मल महतो से जुड़ी यादों को साझा किया. उन्हांेने बताया कि निर्मल महतो बचपन से ही शाकाहारी थे. वह झाल (तीखा) नहीं खा पाते थे. झाल खाने से उन्हें बेहोशी आने लगती थी. किशोरावस्था में एक-दो बार झाल वाली सब्जी खाने पर वे बेहोश तक हो गये थे. इसके बाद से ही उन्हें सादा खाना दिया जाता था. निर्मल को पार्टी अथवा घर में भी तेल-मसाला वाला खाना पसंद नहीं था. वह नियमित रूप से दूध-भात, सब्जी के बजाय दाल-भात के साथ आलू-बैगन का चोखा बड़े चाव से खाते थे.

बुलेट व कपड़ों के शौकीन थे दुर्गापूजा में करते थे दंडवत

शांति बाला बताती हैं कि निर्मल को बुलेट चलाने का काफी शौक था. किशोरावस्था से ही वह बुलेट की सवारी करते थे. इसके अलावा वह कपड़ों के भी काफी शौकीन थे. उन्हें शर्ट, बेल-बाॅटम के अलावा सफेद व काला रंग का कुर्ता-पायजामा पहनना काफी पसंद था. उलियान दुर्गा पूजा में वे किशोरावस्था से ही महाअष्टमी को दंडवत देकर नदी से पूजा पंडाल तक आते थे. उपवास रखकर भगवान से परिवार के अलावा उलियान की सुख-शांति व समृद्धि की हमेशा कामना करते थे.

आभा महतो के पिता निर्मल के भविष्य को लेकर रहते थे चिंतित

पारिवारिक परिचित होने के कारण आभा महतो (पूर्व सांसद) के पिता अक्सर घर पर लड्डू-मिठाई और पीठा आदि लेकर आते थे. सभी लोगों के साथ मिलकर बात करने के दौरान हमेशा निर्मल के भविष्य को लेकर चिंता करते थे. शादी-विवाह के लिए अच्छे परिवार से रिश्ता करने की भी बात करते थे. निर्मल महतो अविवाहित थे. किशोरावस्था से ही समाजसेवा अौर राजनीति (झारखंड मुक्ति मोर्चा) को अपना लक्ष्य मानकर आगे निकल गये. परिवार ही नहीं बल्कि उलियान गांव व समाज के लोगों को खुशहाल व समृद्ध झारखंड देने के सपने के बारे में हमेशा घर में भी चर्चा करते थे.

को-ऑपरेटिव से स्नातक थे, सीखने की थी ललक

निर्मल महतो ने को-ऑपरेटिव कॉलेज से स्नातक किया था. प्राथमिक शिक्षा सोनारी बालीचेला स्कूल व कदमा ब्वाॅयज हाई स्कूल से हुई थी. उनके बहनोई व शांति बाला के पति सेवानिवृत्त शिक्षक श्रीकांत महतो (सोनारी निवासी) बताते हैं कि निर्मल महतो उन्हें काफी मानते थे. घाटशिला, बहरागोड़ा, चाकुलिया व धालभूमगढ़ जब जाना व वापस लौटना होता था, तब गाड़ी लेकर एनएच 33 से गुजरते समय पीपला स्कूल आते थे. स्कूल में शिक्षक होने के नाते कई विषयों पर विचार-विमर्श करते थे.

आखिरी दिन भी एक बुजुर्ग की लड़की की शादी में मदद की थी

शांति बाला बताती हैं कि निर्मल बचपन से ही जिद्दी स्वभाव के थे. किसी बात को लेकर अगर एक बार ठान लिया, तो उसे पूरा करके ही दम लेते थे. परिवार के अलावा उलियान व ईंचागढ़ के दर्जनों गांव के लोग निर्मल महतो को सम्मान पूर्वक बुलाकर पंच बनाते थे. उनकी बात को न सिर्फ रखा जाता था, बल्कि उनके निर्णय का पालन होता था. निर्मल की जेब में एक रुपया भी नहीं होता था, तब भी वह दूसरों को मदद करने में लगे रहते थे. आठ अगस्त 1987 के दिन का वाक्या भी मुझे याद है कि उस दिन मैं भी घर पर थी. एक वृद्ध परिचित सुबह-सुबह घर आये थे. बेटी की शादी में आर्थिक मदद अौर शादी की तैयारी की बात कर रहे थे. तब उसने घर में आकर पूछा था, दीदी कुछ पैसा है, तो देना, शादी में मदद मांगने के लिए एक परिचित आये हैं. मुझसे तीन सौ रुपये अौर घर में रखे सात सौ मिलाकर कुल एक हजार रुपये देते हुए कहा था, शादी के दिन कुछ घटेगा, तो बताना. मदद करूंगा. यह बातें आज भी याद आती है, तो आंखें भर जाती हैं.

जब तक घर नहीं लौटते थे, परिवार का कोई सदस्य नहीं सोता था

निर्मल महतो किशोरावस्था में ही सुबह घर से निकलते थे अौर रात को लौटते थे. घर में भाई-बहनों के अलावा मां और पिता जी भी उनके आने का इंतजार करते थे. उनके लौटने तक कोई सोता नहीं था. मां के साथ मैं भी हर दिन उन्हें खाना खिलाने के बाद ही सोती थी. उनका छोटे भाइयों और बहन से काफी स्नेह था. वे भाइयों को नहलाने, उन्हें तैयार करने, बाल संवारने जैसे सामान्य काम भी करते थे. परिवार की तरह ही उलियान के लोगों से भी वह काफी प्यार करते थे. मिलनसार स्वभाव के कारण ही वे सबके प्यारे बन गये थे.

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