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कोरोना के कारण 22 दिन तक मौत के करीब था झारखंड का ये आंदोलनकारी, फिर ऐसे दी कोरोना को मात

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उस वीडियो में उनकी जुबान से आवाज ठीक से नहीं निकल रही थी. रुंधे गले से वह अपने देवता को याद कर इस विपदा से बचाने की गुहार लगा रहे थे. कोरोना पीड़ित होने पर उन्होंने खुद को होम आइसोलेट कर लिया था. 14 दिन लगातार एक ही कमरे में अकेले रहे. न सूर्य को उगते देखा और न डूबते. इस दौरान खुद में जीने का जज्बा पैदा किया और कोरोना पॉजिटिव से निगेटिव हुए.

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Coronavirus Update Jharkhand, coronavirus latest news jamshedpur जमशेदपुर : झारखंड आंदोलन के दौरान अपनी गतिविधियों और तेवर से तत्कालीन केंद्र सरकार को वार्ता करने के लिए मजबूर करने वाले झारखंड आंदोलनकारी सूर्य सिंह बेसरा को कोरोना संक्रमण ने हिलाकर रख दिया. कोरोना से पीड़ित होने के बाद बेसरा काफी परेशान हो गये थे. परेशानी की हालत में ही उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया था.

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उस वीडियो में उनकी जुबान से आवाज ठीक से नहीं निकल रही थी. रुंधे गले से वह अपने देवता को याद कर इस विपदा से बचाने की गुहार लगा रहे थे. कोरोना पीड़ित होने पर उन्होंने खुद को होम आइसोलेट कर लिया था. 14 दिन लगातार एक ही कमरे में अकेले रहे. न सूर्य को उगते देखा और न डूबते. इस दौरान खुद में जीने का जज्बा पैदा किया और कोरोना पॉजिटिव से निगेटिव हुए.

प्रभात खबर को लिखे पत्र में सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि कोरोना से तंग नहीं होना है, जंग जीतना है. वे 22 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते रहे. पांच मई को पूरी तरह से कोरोना मुक्त होकर पुनर्जन्म दिवस मना रहे हैं. बेसरा ने लिखा है कि कोविड गाइडलाइन की सभी सावधानियां बरतने के बाद वह कब संक्रमित हो गये, यह नहीं मालूम.

वह 31 मार्च को रांची प्रेस क्लब और नौ अप्रैल को रांची विधायक क्लब के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. 10 को शहर लौटे. 12 को गुड़ाबांदा व डुमरिया प्रखंडों का दौरा किया. अगले दिन (13 को) सर्दी-खांसी शुरू हुई और देखते-देखते बुखार 102 डिग्री तक पहुंच गया. टीएमएच में सुपरवाइजर के पद पर कार्य कर चुकी पत्नी कुंती देवी ने लक्षण समझ कर उन्हें एक कमरे में आइसोलेट कर दिया. खाने-पीने का स्वाद भी खत्म हो गया था और अंदर से खाने की इच्छा भी नहीं हो रही थी. कमरा अस्पताल का केबिन बन गया.

पत्नी के अलावा दो बेटियां, बेटा फोन कर हाल चाल जानने में लगे रहते थे.

गर्म पानी, नाश्ता, दोपहर-रात के खाने में रोटी दरवाजे के सामने रख दी जाती थी. उनके जाने के बाद दरवाजा खोलकर ले आता था. 16 अप्रैल को जांच हुई. 19 को रिपोर्ट आयी, तो मालूम चला कि पॉजिटिव हो गये हैं.

यह सुनते ही घबराहट महसूस होने लगी. फिर सोचने लगा कि यदि हिम्मत नहीं रखा, तो कुछ नहीं बचेगा. ब्लड शूगर 400 पहुंच गया. डॉ उमेश खान की सलाह लेकर इंसुलिन लेनी शुरू की. टीएमएच के डॉ मनीष की सलाह पर पत्नी दवाएं देती रहीं. 30 को कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आयी.

Posted By : Sameer Oraon

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