जमशेदपुर: ओडिशा के बारीपदा में जुवान ओनोलिया (युवा लेखक) का चौथा वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया. मौके पर बतौर अतिथि साहित्यकार कासुनाथ सोरेन, डा. धनेश्वर मार्डी व मानसिंह माझी मौजूद थे. इस दौरान हाल के दिनों में युवा साहित्यकारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है. कासुनाथ सोरेन ने इस प्रवृत्ति को महत्वपूर्ण बताया है, क्योंकि ये युवा साहित्यकार समाज के ज्वलंत मुद्दों को अपने साहित्य सृजन के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं. वे सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक समस्याओं पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और अपनी रचनाओं में इन्हें प्रमुखता से उठा रहे हैं. उनकी लेखनी समाज को जागरूक करने और परिवर्तन लाने का प्रयास कर रही है. ऐसे साहित्यकार न केवल साहित्यिक परिदृश्य को समृद्ध बना रहे हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. अन्य अतिथियों ने भी अपनी बातों को रखा.इस दौरान कई संताली पुस्तकों का भी विमोचन किया गया. सम्मेलन में काफी संख्या साहित्यकार पहुंचे थे. कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार गणेश ठाकुर हांसदा व धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार श्याम सी टुडू ने दिया.
साहित्य समाज का सजीव प्रतिबिंब: डा. धनेश्वर मार्डी
डा. धनेश्वर मार्डी ने कहा कि साहित्य समाज का आइना है. यह समाज और साहित्य के बीच गहरे संबंध को उजागर करता है. साहित्य मानव अनुभवों, भावनाओं और समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करता है. यह समाज की घटनाओं, समस्याओं, और उसकी संस्कृति को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है. साहित्यकार अपने लेखन में समाज की विभिन्न परतों को उजागर करते हैं, जिसमें आम जीवन, संघर्ष, आशाएं, और सपने शामिल होते हैं. साहित्य में समाज के विभिन्न पहलुओं का चित्रण होता है, चाहे वह राजनीतिक हो, सामाजिक हो या सांस्कृतिक. यह समाज की अच्छाइयों और बुराइयों, दोनों को प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक समाज के विभिन्न रंगों को समझ सकते हैं.
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां भारतीय ग्रामीण जीवन के संघर्षों और जटिलताओं को बखूबी दर्शाती हैं. वहीं, रवींद्रनाथ ठाकुर की कविताएं और रचनाएं भारतीय संस्कृति और आत्मा का सुंदर चित्रण करती हैं. आधुनिक साहित्यकार भी समाज के ज्वलंत मुद्दों जैसे लैंगिक समानता, पर्यावरण संरक्षण, और आर्थिक असमानता पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहे हैं. डा. मार्डी का यह कथन इस बात पर जोर देता है कि साहित्य समाज का सजीव प्रतिबिंब है. साहित्यकार समाज का संवेदनशील पर्यवेक्षक होता है, जो समाज की दशा और दिशा को अपने लेखन में प्रस्तुत करता है.
युवाओं में मातृभाषा व ओलचिकी के प्रति दिख रहा विशेष लगाव: मानसिंह माझी
मानसिंह माझी ने हाल के दिनों में मातृभाषा और लिपि के प्रति बढ़ते प्रेम को महत्वपूर्ण बताया है। विशेष रूप से संताल समाज के लोग अब अपनी मातृभाषा संताली की लिपि ओलचिकी में पढ़ना-लिखना सीखने के प्रति अधिक रुचि दिखा रहे हैं. यह प्रवृत्ति समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और उसे जीवित रखने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है. युवाओं का इस ओर विशेष झुकाव देखने को मिल रहा है, जो भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है. ओलचिकी लिपि में साहित्य, गीत, और अन्य रचनात्मक कार्यों के माध्यम से न केवल भाषा की समृद्धि हो रही है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी मजबूत हो रही है. उन्होंने कहा कि इस पहल से संताल समाज की नई पीढ़ी अपने इतिहास और परंपराओं के प्रति जागरूक हो रही है और उन्हें गर्व के साथ आगे बढ़ा रही है. मातृभाषा और लिपि के प्रति यह प्रेम समाज की एकता और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
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युवा साहित्यकारों की लेखनी समाज को कर जागरूक
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साहित्य समाज का आइना है. यह समाज और साहित्य के बीच गहरे संबंध को उजागर करता है. साहित्य मानव अनुभवों, भावनाओं और समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करता है. यह समाज की घटनाओं, समस्याओं और उसकी संस्कृति को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है.

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