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पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था संताल समाज की नींव है: बैजू मुर्मू

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महासम्मेलन मेें पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, रीति रिवाज, धर्म, संस्कृति, पूजा पद्धति, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक, रोजगार, समाज में महिलाओं को समान भागीदारी व जिम्मेदारी तथा समाज में युवाओं का भागीदारी आदि बिंदुओं पर पर वक्ताओं ने अपनी बातों को रखा.

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जमशेदपुर: घाटशिला पावड़ा स्थित सिदो-कान्हू फूटबॉल मैदान में शनिवार को माझी परगना महाल का दो दिवसीय 14वां महासम्मेलन शुभारंभ हुआ.पूर्वी सिंहभूम धाड़ दिशोम देश परगना बैजू मुर्मू ने झंडोत्तोलन का इसका विधिवत शुभारंभ किया. साथ ही वीर महापुरूषों की पारंपरिक रीति-रिवाज से पूजा अर्चना की गई. उनकी तसवीरों पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित कर सामूहिक श्रद्धांजलि दी गयी.सर्वप्रथम कोल्हान समेत विभिन्न प्रांतों से आये स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख देश परगना, तोरोफ परगना, पारानिक बाबा, माझी बाबा, नायके बाबा, शिक्षाविद, बुद्धिजीवी आदि का स्वागत किया गया. मौके पर देश परगना बैजू मुर्मू ने पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, रीति-रिवाज, धर्म, संस्कृति, पूजा पद्धति, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, रोजगार, महिलाओं और युवाओं की सहभागिता पर गहन विचार प्रस्तुत किए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी समाज की समृद्धि और विकास के लिए पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी अतीत में थी. पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था संताल समाज की नींव है, जिसमें रीति-रिवाज, धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है. यह व्यवस्था समाज में शांति और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करती है. रीति-रिवाज और धर्म न केवल समाज के नैतिक और आध्यात्मिक विकास में योगदान देते हैं, बल्कि समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए एक संरचना और दिशा भी प्रदान करते हैं.

धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं पूजा पद्धति
देश परगना बैजू मुर्मू ने कहा कि पूजा पद्धति हमारे समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती है. यह समाज में एकता और भाईचारे का संदेश फैलाती है. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए अनिवार्य है. एक शिक्षित समाज ही प्रगति कर सकता है और स्वस्थ समाज ही उस प्रगति को बनाए रख सकता है. उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास और रोजगार के अवसर समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाते हैं. रोजगार के नए अवसरों का सृजन समाज के हर वर्ग के लिए लाभकारी होता है. महिलाओं को समाज में सम्मान और समान भागीदारी मिलना अत्यंत आवश्यक है. महिलाओं की सहभागिता समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. उन्हें सम्मान और जिम्मेदारी देने से समाज और अधिक सशक्त होगा. युवाओं का समाज में भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है. वे समाज का भविष्य हैं और उनके विचार व प्रयास समाज को नई दिशा में ले जाने में सक्षम होते हैं. युवाओं को जिम्मेदारी देकर हम उन्हें समाज का सशक्त हिस्सा बना सकते हैं. बैजू मुर्मू के वक्तव्य ने इस बात को स्पष्ट किया कि पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार में महिलाओं और युवाओं की समान भागीदारी समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है. हमें इन सभी क्षेत्रों में संतुलन और समर्पण के साथ आगे बढ़ना चाहिए, ताकि हमारा समाज समृद्ध और सशक्त बन सके.

विशिष्ट कार्य करने वाले सम्मानित किये गये
माझी परगना महाल के महासम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों में समाज के उत्थान व प्रगति के लिए कार्य करने वाले विशिष्ट लोगों को मोमेंटो व अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया. सम्मानित होने वालों मेें माझी युवराज टुडू, साहित्यकार वीर प्रताप मुर्मू, ट्राइबल ब्लडमैन राजेश मार्डी, ईश्वर सोरेन, दुर्गाप्रसाद मुर्मू, चामी मुर्मू, सीआर माझी आदि प्रमुख हैं.
सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दों पर हुआ मंथन
महासम्मेलन मेें पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, रीति रिवाज, धर्म, संस्कृति, पूजा पद्धति, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक, रोजगार, समाज में महिलाओं को समान भागीदारी व जिम्मेदारी तथा समाज में युवाओं का भागीदारी आदि बिंदुओं पर पर वक्ताओं ने अपनी बातों को रखा. सभी मुद्दों पर बारीकी चिंतन-मंथन किया गया. सम्मेलन में जामताड़ा, दुमका, हजारीबाग, रामगढ़ ,गिरिडीह, रायरंगपुर व कोल्हान के सभी जिलों से आये संताल समाज के माझी बाबा, परगाना बाबा व सामाजिक प्रतिनिधियों ने बारी-बारी अपनी बातों को रखा.

इन्होंने कार्यक्रम को सफल बनाने में दिया योगदान
सम्मेलन को सफल बनाने में डॉक्टर जुझार सोरेन, सिविल सर्जन सिंहभूम, शंकर मार्डी, लेदेम किस्कू, परगना बाबा दसमत हांसदा, राजेंद्र प्रसाद टुडू, छोटा भुजंग टुडू, सुमित्रा सोरेन, कुशल हांदसा, डॉ जतिंद्र नाथ बेसरा, धार्मा मुर्मू, सफल मुर्मू , बिंदे सोरेन, सुनील मुर्मू, नवीन मुर्मू, लखन मार्डी, मानिक मुर्मू, रमेश मुर्मू, भुजंग टुडू, मार्शल मुर्मू, बिंदे सोरेन, प्रोफेसर श्याम सुंदर मुर्मू, सेन बासु हांसदा आदि ने योगदान दिया.

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