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गुमला में नक्सलियों के गढ़ में आम की सुगंध, 50 हजार से एक लाख रुपये तक हो रही है आमदनी, 3 करोड़ तक पहुंचा व्यापार

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Jharkhand news (गुमला) : देश में गुमला जिला का नाम बॉक्साइड नगरी के लिए जाना जाता है. नक्सलवाद भी एक पहचान बन गयी है. मगर अब यहां की फिजा बदल रही है. यह बदलाव आम की बागवानी से आ रही है. जहां कल तक बारूंद के गंध आते थे. अब आम की सुगंध से इलाका महक रहा है. इन्हीं में गुमला जिला का रायडीह प्रखंड है. जहां बड़े पैमाने पर आम्रपाली, मल्लिका, मालदा व दशहरी आम की खेती की जा रही है.

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Jharkhand news (दुर्जय पासवान, गुमला) : देश में गुमला जिला का नाम बॉक्साइड नगरी के लिए जाना जाता है. नक्सलवाद भी एक पहचान बन गयी है. मगर अब यहां की फिजा बदल रही है. यह बदलाव आम की बागवानी से आ रही है. जहां कल तक बारूंद के गंध आते थे. अब आम की सुगंध से इलाका महक रहा है. इन्हीं में गुमला जिला का रायडीह प्रखंड है. जहां बड़े पैमाने पर आम्रपाली, मल्लिका, मालदा व दशहरी आम की खेती की जा रही है.

रायडीह प्रखंड के 50 गांवों में आम के पेड़ दिखेंगे. मालदा व आम्रपाली आम के पेड़ यहां की तस्वीर बदल रहे हैं. आम की मिठास ने लोगों के जीवन में भी मिठास भर दी है. रायडीह प्रखंड में 500 से अधिक किसान आम की बागवानी किये हैं. करीब तीन करोड़ रुपये का आम का व्यवसाय होता है. इसमें सिर्फ परसा पंचायत में 200 से अधिक किसान हैं. आम के बाग से प्रत्येक किसान को हर साल 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये की आमदनी हो रही है.

ये किसान आम की खेती कर रहे हैं

परसा पंचायत के रघुनाथपुर गांव के फिलोस टोप्पो डेढ़ एकड़, सुशील तिर्की एक एकड़, रजत मिंज 75 डिसमिल, प्रकाश टोप्पो एक एकड़, जैतून टोप्पो एक एकड़, मसीह प्रकाश खाखा डेढ़ एकड़, अनिल खाखा 50 डिसमिल, अलफ्रेड खाखा 50 डिसमिल, समीर किंडो 50 डिसमिल, बिलकीनिया टोप्पो 50 डिसमिल, प्रीतम टोप्पो 50 डिसमिल, दिलीप टोप्पो एक एकड़, टुकूटोली गांव के दामू उरांव एक एकड़, बेरनादेत एक एकड़, सोबियर तिर्की एक एकड़, वैशाली तिर्की एक एकड़, परसा नवाटोली के धर्मा मुंडा एक एकड़, तेलेया गांव के किसान आरती सिंह एक एकड़, रमेश उरांव एक एकड़, टेम्बू उरांव 50 डिसमिल, शशि उरांव 50 डिसमिल, रमेश उरांव एक एकड़, जितिया उरांव एक एकड़, कंचन उरांव एक एकड़, देवदास उरांव एक एकड़, कुंती देवी 50 डिसमिल, संजय उरांव 50 डिसमिल, विनोद उरांव एक एकड़, अनिता उरांव एक एकड़, पोगरा के किसान संजय केरकेट्टा एक एकड़, प्लादीयुस एक्का एक एकड़, ज्योतिष मिंज एक एकड़, विनोद एक्का एक एकड़, संजय केरकेट्टा 50 डिसमिल समेत दो सौ किसान आम की खेती कर रहे हैं.

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ऐसे बदली गांव की तस्वीर

परसा पंचायत घोर नक्सल इलाका माना जाता है. भाकपा माओवादी इस क्षेत्र के गांवों में आते जाते रहते हैं. परंतु समय बदली. पुलिस दबिश बढ़ी तो नक्सल के बादल छटने शुरू हो गये. वर्ष 2000 2010 तक इस क्षेत्र में नक्सल गतिविधि उफान पर रहा. पर, धीरे-धीरे नक्सल गतिविधि कम हुई. सरकार की बागवानी योजनाओं से िसान जुड़े. वर्ष 2010 से किसानों ने आम्रपाली, मालदा व मल्लिका आम के पौधे लगाये. अब ये पौधे पेड़ बन गये. जिससे किसानों की तकदीर व तस्वीर दोनों बदलने लगी है. अब किसान के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं.

अभी ये समस्या आ रही है

परसा पंचायत का आम छत्तीसगढ़, ओड़िशा, बंगाल व रांची की मंडी में बिकता है. परंतु लॉक डाउन के कारण डेढ़ सालों से आम खरीदार गांव नहीं आ रहे हैं. परसा पंचायत की सड़कें भी खराब है. यहां की सफर मुश्किल भरा है. इसलिए व्यापारी आना नहीं चाहते. मजबूरी में किसान गुमला के लोकल बाजार में 30 से 50 रुपये किलो तक आम बेच रहे हैं. महिला किसान जशमनी तिर्की ने कहा कि पेड़ से आम तोड़कर घर पर पकाते हैं. इसके बाद लोकल बाजार में बेच रहे हैं. इधर, लगातार बारिश के कारण आम की बिक्री प्रभावित हो रही है.

इस संबंध में किसान फिलोस टोप्पो कहते हैं कि वर्ष 2000 में डेढ़ एकड़ में आम की बागवानी शुरू किये. पांच साल बाद पेड़ में आम लगने लगा और वर्ष 2005 से आम की बिक्री करना शुरू किये. एक सीजन में 50 हजार की आमदनी होती है. आम के साथ धान व सब्जी की भी खेती करते हैं.

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वहीं, दूसरे किसान विजय बरवा कहते हैं कि रघुनाथपुर गांव की तस्वीर व तकदीर आज आम की खेती से बदल रही है. बगल गांव के लोग भी आम्रपाली आम का पेड़ लगाये हैं. एक समय था. हम धान की खेती तक सीमित थे. परंतु अब आम के बाग से हम दोहरा कमाई कर रहे हैं.

Posted By : Samir Ranjan.

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