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गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिद : रांची, लोहरदगा एवं गुमला में रात्रि पाठशाला की संख्या 102 हुई

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पूर्व आईजी डॉक्टर अरुण उरांव द्वारा शिक्षा को सामाजिक बदलाव का हथियार बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में बाबा कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला की बुनियाद रखी गयी थी. उनकी जिद है

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पूर्व आईजी डॉक्टर अरुण उरांव द्वारा शिक्षा को सामाजिक बदलाव का हथियार बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में बाबा कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला की बुनियाद रखी गयी थी. उनकी जिद है. गांव का हर एक बच्चा जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहा है. उन्हें अच्छी शिक्षा मिले. इसी जिद ने 102 रात्रि पाठशाला की स्थापना कर दी.

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पिछड़े ग्रामीण इलाके में गरीब बच्चों को गांव के ही रहने वाले (कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों) युवकों द्वारा निःशुल्क शिक्षा देने का प्रबंध अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के माध्यम से किया गया. आज रांची, लोहरदगा एवं गुमला जिले में इस पाठशाला की संख्या बढ़कर 102 हो गयी है. जिसमें 350 शिक्षक करीब पांच हजार बच्चों को शिक्षा देते हुए उनकी ज़िंदगी संवार रहे हैं. गांव के सामुदायिक भवन, धुमकुड़िया या अपने आवास में ही इन बच्चों को शाम 5.00 से 7.00 बजे तक पढ़ाया जाता है.

अंग्रेजी, विज्ञान एवं गणित विषयों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. परिषद द्वारा हर तीन महीने पर रात्रि पाठशाला के क्रियाकलापों की समीक्षा की जाती है. जहां शिक्षकों को अनुभवी एवं पारंगत प्रशिक्षकों द्वारा पठन-पाठन को आसान एवं रुचिकर बनाने के गुर सिखाये जाते हैं. चार पाठशाला को कंप्यूटर दिया गया है. जहां प्रोजेक्टर के माध्यम से डिजिटल क्लासेज की शुरुआत की गयी है. यहां चल रहे पुस्तकालय को जरूरत की किताबों से समृद्ध किया जा रहा है.

प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी की व्यवस्था है :

रात्रि पाठशाला के शिक्षक अपनी पढ़ाई के साथ अपने लिए रोजगार हासिल करें. इसके लिए उनकी प्रतियोगिता की तैयारी अलग से की जा रही है. युवाओं की ज्यादा रुचि फ़ौज, केंद्रीय सुरक्षा बल एवं पुलिस की भर्ती में जाने को देखते हुए गांव के ही सेवा निवृत्त फौजी एवं पुलिस अधिकारी उनकी तैयारी एवं प्रशिक्षण शारीरिक-मानसिक परीक्षण के लिए गांव में ही कर रहे हैं.

कोरोना में स्कूल बंद हुआ, तो रात्रि पाठशाला बना वरदान :

डॉ अरुण उरांव ने कहा कि दो वर्षों में जहां स्कूल और कॉलेज को कोरोना काल में बंद करना पड़ा. वहीं हमारे रात्रि पाठशाला ने ना सिर्फ ऑनलाइन क्लासेस से वंचित गरीब ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई जारी रखी. बल्कि हमारे गांव की सामूहिकता की शक्ति, समृद्ध संस्कृति एवं भाषा को ज़िंदा रखा. इस नवीन प्रयोग को सफल बनाने में महिलाएं एवं हमारे युवा साथी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. इसलिए अब ये एक आंदोलन का रूप ले रहा है. जब इसे एक सामाजिक बदलाव के हथियार के रूप में हर साथी रात्रि पाठशाला को अपने गांव में आरंभ करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं.

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