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Pus Mela 2021 : ग्रामीण परिवेश में पूस मेला को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है, जानें क्या है इसके पीछे का इतिहास

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Pus Mela 2021 : ग्रामीण परिवेश में पूस मेला या पूस जतरा को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है

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Pus jatra, Pus Parv Gumla News 2021 गुमला : गुमला जिले के ग्रामीण परिवेश में पूस मेला या पूस जतरा को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. इस परंपरा को आज भी लोग जीवित रखे हुए हैं. धार्मिक विश्वास, पारंपरिक मान्यता, नये वर्ष के आगमन, अच्छी फसल की प्राप्ति और खुशहाली के प्रतीक के रूप में पूस मेला का आयोजन किया जाता है. इसी परंपरा के तहत पालकोट प्रखंड के गांवों में इसे भव्य रूप से मनाया जाता है.

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अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथि पर मेला या जतरा लगता है. हालांकि पालकोट के इलाके में पूस जतरा का शुभारंभ नववर्ष से शुरू होता है. प्रखंड के दमकारा गांव से नागवंशी राजा लाल गोविंद नाथ शाहदेव द्वारा पूजन के बाद मेला का शुभारंभ किया जाता है.

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राजा गोविंद नाथ शाहदेव द्वारा अपनी जनता की सुख, शांति के लिए भगवान इंद्र की पूजा की जाती है. इसके बाद प्रखंड के पोजेंगा, बंगरू, पालकोट, टेंगरिया, बागेसेरा गांव में एक-एक दिन मेला लगता है. इसके बाद यह मेला बसिया प्रखंड के कुम्हारी गांव चला जाता है.

क्या कहते हैं बुजूर्ग व युवा पीढ़ी :

टेंगरिया नवाटोली गांव के बसंत साहू ने बताया कि पूस जतरा हमारे पूर्वजों द्वारा सदियों से लगाया जा रहा है. पूस जतरा या मेला में परिवार के साथ मेहमानों के साथ मिलना जुलना होता है. वहीं युवक-युवतियों की शादी के लिए मिल जुल कर बात विचार किया जाता है, ताकि खरमास खत्म होते ही शादी विवाह की रस्म शुरू की जा सके. नवाटोली गांव के डोयंगा खड़िया ने बताया कि पूस जतरा में लोगों से मिलने का अवसर बनता है.

बागेसेरा गांव के मनी खड़िया ने बताया कि पूस जतरा में सरना झंडा मेला डांड़ में फहराते हैं. पूर्वजों की आदिकाल से चली आ रही सभ्यता संस्कृति को बचाने के लिए मेला का आयोजन किया जाता है. साथ ही हमारे समाज के लोग सुख शांति से रहे, इसके लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है. नाथपुर पंचायत के जुराटोली गांव के राजेश साहू ने बताया कि हमारे आदिवासी मूलवासी अपने सनातन धर्म को भूलते जा रहे हैं. कुछ युवा पश्चिमी सभ्यता को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. आधुनिकता की जिंदगी जी रहे हैं. गांव देहात में लोग अपनी सभ्यता को न भूलें, इसलिए पूस जतरा का आयोजन किया जाता.

नये वस्त्र पहनने का विशेष महत्व :

यह पर्व गुमला की संस्कृति का पोषक स्वरूप है, जिसमें पूस गीत, नृत्य, वाद्य यंत्रों की मधुर संगीत है. विशेष प्रकार की मान्यता है. इसमें नये वस्त्र पहनने का विशेष महत्व है. परिवार के सभी लोगों के लिए नये कपड़े लेने का रिवाज है. यह पर्व धार्मिक विश्वास, पारंपरिक मान्यता, नये वर्ष के आगमन, अच्छी फसल की प्राप्ति और खुशहाली के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.

Posted By : Sameer Oraon

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