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Covid19 Lockdown Jharkhand : गुमला के आदिम जनजाति के लोगों की बढ़ी परेशानी, जीना हुआ मुहाल

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Covid19 Lockdown Jharkhand : डुमरी : कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में घोषित लॉकडाउन ने गुमला जिला के आदिम जनजाति के परिवारों की परेशानी बढ़ा दी है. इन लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण इनका जीना मुहाल हो गया है.

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डुमरी : कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में घोषित लॉकडाउन ने गुमला जिला के आदिम जनजाति के परिवारों की परेशानी बढ़ा दी है. इन लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण इनका जीना मुहाल हो गया है.

गुमला जिला के डुमरी प्रखंड में कोरोना वायरस के कारण करनी पंचायत के उखरगढ़ा गांव में आदिम जनजाति परिवार को रोजगार के नहीं मिल रहा है. इस गांव में आदिम जनजाति परिवार के 35 घर हैं. गांव में बिजली, सड़क और स्कूल की सुविधा उपलब्ध है.

भौवा कोरवा, झमन कोरवा, विमल कोरवा समेत अन्य लोगों ने बताया कि इस बंदी में हम सभी लोग बेरोजगार हो गये हैं. लकड़ी, दतुवन व वनोत्पाद बेचकर कुछ पैसे कमाते थे. मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे.

इन लोगों का कहना है कि वनोत्पाद बेचकर और मजदूरी करके उनका जीवन बसर हो रहा था. लॉकडाउन में पूर्ण तालाबंदी के कारण लकड़ी, दतुवन वगैरह कुछ नहीं बिक रहा. दूसरा कोई काम भी नहीं है. दिनभर घर में रहना अब मुश्किल हो रहा है.

पैसे के अभाव में नमक, तेल, मसाला, साबुन सहित जरूरत के सामान की व्यवस्था नहीं हो पा रही है. जीवन काटना मुश्किल हो गया है. हालांकि, राशन मिल रहा है, लेकिन डीलर इतनी दूर राशन बांटता है कि वहां जाना मुश्किल है.

मनेश्वर कोरवा, रणदीप कोरवा, संतोष कोरवा, विमल कोरवा व अन्य ने बताया कि राशन तो मिल रहा है, लेकिन डीलर 2-3 किलो कम राशन देता है. नमक साल में 10 पैकेट देता है और 10 रुपये लेता है. डीलर गांव से 2 किमी दूर बाहर राशन बंटता है. गांव में राशन का वितरण नहीं करता.

इन लोगों की शिकायत है कि राशन तौलते वक्त डीलर और उसके कर्मचारी तराजू को लुंगी से ढक देते हैं. इन्हें वजन देखने नहीं देते. इसलिए पता ही नहीं चलता कि कितना राशन मिल रहा है. गांव के 10 लोग दूसरे राज्यों में कमाने गये हुए हैं.

ललमैत कोरवाईन, मंगरी कोरवाईन ने बताया कि गांव में पानी की समास्या है. सालों भर झरना और डाड़ी का गंदा पानी पीते हैं. इन लोगों की सरकार और प्रशासन से अपील है कि इनके गांव में एक चापाकल लगवा दिया जाये, ताकि इन्हें पानी के लिए दूर न जाना पड़े.

इधर, सुखदेव कोरवा, सिंघरा कोरवा, झमन कोरवा को एक साल से वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही है. इनके जैसे कई और लोग भी हैं, जिन्हें पेंशन नहीं मिलती. दिनभर घर में बैठे हैं. जल्दी लॉकडाउन खुले, तो काम-धाम शुरू हो. जीवन पटरी पर लौटे.

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