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शहीद के नाम से बनना है स्टेडियम, नक्सलियों ने लगायी रोक, स्कूल भी करवाया बंद

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शहीद नायमन कुजूर के नाम से बनने वाले स्टेडियम के निर्माण पर नक्सलियों ने रोक लगा दी है. स्टेडियम बनाने के लिए जमीन को समतल करने वाले ग्रामीणों को भी मजदूरी नहीं करने की धमकी दी गयी है.

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दुर्जय पासवान: शहीद नायमन कुजूर के नाम से बनने वाले स्टेडियम के निर्माण पर नक्सलियों ने रोक लगा दी है. स्टेडियम बनाने के लिए जमीन को समतल करने वाले ग्रामीणों को भी मजदूरी नहीं करने की धमकी दी गयी है. स्टेडियम का निर्माण गुमला शहर से 85 किमी दूर चैनपुर प्रखंड के बारडीह पंचायत स्थित तबेला गांव में हो रहा था. दो साल पहले स्टेडियम का निर्माण शुरू किया गया था. इसके लिए ग्राउंड को समतल किया जा रहा था. ग्राउंड को बड़ा करने के लिए तबेला गांव के मुख्य सड़क के किनारे स्थित जंगल के 60 से अधिक पेड़ों को काट दिया गया. सभी पेड़ बेशकीमती थे.

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अभी ग्राउंड का निर्माण कार्य बंद है. स्टेडियम नहीं बनने से ग्रामीणों खासकर युवाओं व छात्रों में नाराजगी है. परंतु नक्सलियों के फरमान व धमकी के कारण कोई स्टेडियम बनाने के लिए आवाज भी नहीं उठा रहा है. बारडीह पंचायत के एक सरकारी स्कूल के टीचर ने बताया कि तबेला में स्टेडियम बन रहा था. परंतु बाद में काम बंद हो गया. हम ज्यादा बोल नहीं सकते और नाम भी नहीं बता सकते. क्योंकि हमें जिंदा रहना है. कुछ बोलेंगे तो नक्सली हमें नहीं छोड़ेंगे.

शहीद नायमन कुजूर का गांव उरू है : चैनपुर प्रखंड के तबेला गांव से सटे उरू गांव के नायमन कुजूर जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में 18 सितंबर 2016 को शहीद हो गये थे. शहीद के शव को बड़े सम्मान के साथ उरू गांव लाया गया था. इसके बाद कुरूमगढ़ से लेकर सोकराहातू घाटी तक की सड़क का नाम शहीद नायमन कुजूर पथ रखा गया. इस क्षेत्र में खेल को बढ़ावा देने के लिए स्टेडियम बनाया जा रहा था. परंतु नक्सलियों ने पुलिस की आवाजाही होने की आशंका पर स्टेडियम बनने नहीं दिया.

शहीद के नाम से चिढ़ते हैं नक्सली : उरू गांव के कुछ लोगों ने बताया कि शहीद नायमन कुजूर का नाम लेने से भाकपा माओवादी चिढ़ते हैं. कई बार नक्सलियों ने शहीद का नाम नहीं लेने के लिए ग्रामीणों को धमकाया भी है. शहीद के परिजन भी गांव में शहीद बेटे का नाम नहीं लेते हैं.

नक्सलियों ने स्कूल भी बंद करा दिया: बारडीह पंचायत में बेकार पड़े एक सरकारी भवन में एक निजी टीचर स्कूल चला रहे थे. जहां गांव के बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दी जा रही थी. गुमला से टीचर गांव में जाकर बच्चों को 100 रुपये महीना पर पढ़ाते थे. परंतु जब भी पुलिस व सुरक्षा बल इस क्षेत्र में घुसते थे तो स्कूल में जाकर बच्चों से मिलते थे. टीचरों से भी बात करते थे. परंतु नक्सलियों ने स्कूल भी बंद करा दिया.

तबेला गांव के स्कूल से आधा किमी की दूरी पर सरकारी जमीन है. कुछ हिस्सा में जंगल है और कुछ हिस्सा परती है. जहां शहीद के नाम पर स्टेडियम बनना था. परंतु काम पर रोक लगा दिया गया है.

मेंजस तिग्गा, ग्रामीण

स्टेडियम बन जाता तो बच्चे फुटबॉल खेल के अलावा अन्य खेलों का अभ्यास करते. लेकिन जंगल में रहने वाले हथियारबंद लोगों ने स्टेडियम बनाने नहीं दिया. पैसा मांगते थे. पैसा नहीं मिली, तो बनने नहीं दी.

सोहन लोहरा, ग्रामीण

posted by Pritish Sahay

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