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बारकोप प्राचीन दुर्गा मंदिर में डाक कागज की साज से बनायी जाती है मां की प्रतिमा

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कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं खेतौरी राजवंश के वंशज, सदियों से निभायी जा रही है परंपरा

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पथरगामा का खेतोरी राजघराना की दुर्गा पूजा अपने आप में अनूठी है. बारकोप स्टेट की पूजा क्षेत्र के साथ-साथ बिहार एवं अन्य स्थानोंं में प्रचलित है. सैकड़ों साल से भव्य दुर्गा मंदिर में आज भी मां की पूजा अर्चना खेतौरी राजवंश के वंशज कुलदेवी के रूप में पूजा की जाती है. मां की प्रतिमा का निर्माण बंगला पद्धति से किया जाता है. इस मंदिर में मूर्ति का निर्माण जिउतिया पर्व के बाद महिलाओं द्वारा लायी गयी मिट्टी से की जाती है. मां की प्रतिमा का निर्माण पास के ही खरियानी गांव के शिल्पकार द्वारा किया जाता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार द्वारा बनाया जाता है. खास कर बारकोप प्राचीन दुर्गा मंदिर में आज भी मां की प्रतिमा डाक कागज के साज से की जाती है, जिसे खासतौर पर भागलपुर से मंगाया जाता है. इसे लाने वाले बारकोप के मछुआरा परिवार के ही सदस्य की जिम्मेवारी है, जिसके द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी लाने का काम किया जाता है. प्रखंड के लखनपहाड़ी पंचायत के बारकोप गांव में बारकोप स्टेट की प्राचीन दुर्गा मंदिर में करीब 1200 वर्षों से मां दुर्गा के पूजा की परंपरा चली आ रही है. राज परिवार के वंशजों द्वारा प्रत्येक वर्ष मां दुर्गा की पूजा की जाती है. खेतौरी राज परिवार कुल देवी के रूप में पूजा करते हैं. 1102 ई में राजा देव ब्रह्म ने शुरू की थी पूजा इस संबंध में वंशज प्रसन्न्जीत सिंह का कहना है कि 1102 ई में बारकोप में मां दुर्गा की पूजा राजा देव ब्रह्म द्वारा आरंभ की गयी थी. जन्माष्टमी के दिन से विधि विधान पूर्वक मां दुर्गा के मस्तक का निर्माण शुरू होता है. जिउतिया के दिन से मां दुर्गा के मस्तक की पूजा शुरू हो जाती है. जिउतिया के दिन से राज परिवार की महिलाएं प्रतिदिन मां दुर्गा के मस्तक की विधिवत पूजा आरती करती है. बंगला पद्धति से प्रतिमा का निर्माण किया जाता है. बारकोप दुर्गा मंदिर से क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है. जिला व आसपास के जिले से भी लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है बारकोप दुर्गा मंदिर में सच्चे हृदय से मन्नत मांगने वालों की मुरादें पूरी होती है. यहां सप्तमी पूजा को मां को छरहा दिया जाता है. हजारों को संख्या में छरहा देने बारकोप पहुंचती हैं. मिट्टी के बर्तन में दूध, सिंदूर, जल से छरहा देने की परंपरा है. महिलाएं मां बेलभरण के आगे-आगे चलती हैं. महिला-पुरुष अरहर व निसनवार नामक पौधे की डाली का बुहारन बनाकर रास्ते को साफ करती जाती हैं. पीछे से छरहा का विधान है. इससे पहले योगिनी स्थान के सामने बेल वृक्ष के नीचे स्टेट के वंशजों के समक्ष वेलभरण पूजन की जाती है. अष्टमी को डाली चढ़ाने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. नवमी तिथि को बकरे की बलि दी जाती है. दशमी तिथि को विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की भव्य आरती होती है. दुर्गा पूजा को लेकर बारकोप में मेला भी लगता है.

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