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मरम्मत के अभाव में सड़क किनारे धूल फांक रहा दर्जन भर 108 एंबुलेंस

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एंबुलेंस के अंदर की सुविधाएं नदारद रहने से वाहन चालक व तकनीशियन झेलते हैं परेशानी

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गोड्डा जिले में सड़कों पर दौड़ रही 108 एंबुलेंस की हालत इन दिनों खस्ताहाल हो गयी है. मरम्मत के अभाव में एंबुलेंस सड़कों पर धूल फांक रही है. जिले के विभिन्न प्रखंडों में 108 एंबुलेंस को किसी गैराज अथवा किसी सीएचसी के सामने धूल फांकते देखा जा सकता है. कहने को तो जिले में एंबुलेंस की संख्या 18-20 हैं, लेकिन वास्तविकता किसी से छिपी नहीं है. दर्जनों एंबुलेंस का हाल खस्ताहाल है. कुछ एंबुलेंस की मरम्मत कर सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है. आधा दर्जन से अधिक एंबुलेंस बीते कई माह से खराब है, जिसका परिचालन नहीं हो रहा है. केवल हाथी के दांत के समान है. गिने-चुने एंबुलेंस से ही जिले के मरीजों को सेवा मिल रही है. ऐसे में मरीज को 108 एंबुलेंस की सेवा लेने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. एंबुलेंस संचालन को लेकर जिले में कंपनी की ओर से तैनात कर्मी इस ओर कहने से इधर-उधर भागते हैं. जैसे-तैसे एंबुलेंस की सेवा मिल रही है. एक समय इन एंबुलेंस की सेवा जिले के लोगों को बेहतर तरीके से मिली. अकेले कोराेना के समय ही इन एंबुलेंस की पर्याप्त सेवा जिले को मिली. पूरे कोरोना काल में 108 एंबुलेंस की सेवा देखने को मिल रही थी. लेकिन अभी जो हाल है, वह किसी से छिपा नहीं है.

एंबुलेंस के अंदर की सुविधा नदारद, आक्सीजन व वेंटिलेटर का भी अभाव

एंबुलेंस जो चल रहा है, उसके अंदर भी सुविधा नदारद है. खाली माचिस के डिब्बे के समान स्थिति है. अधिकांश वाहन के अंदर का कल-पुर्जा भी ढीला हो गया है. सीट है तो बांधकर चलाया जा रहा है. वाहन के अंदर बैठे लोगों पर घंटे भर में धूल की मोटी परत जम जा रही है. किसी-किसी में तो आक्सीजन सिलेंडर आदि का भी अभाव है. बीते डेढ़ साल पहले जिले में आये आधे दर्जन नये व बड़े एंबुलेंस वाहन के अंदर तो वेंटिलेटर नहीं ही हैं. जबकि प्रारंभिक समय में वेंटिलेटर की सुविधा दिये जाने का दावा किया गया था. कंपनी के संचालक सभी सुंविधाओं को दिखाकर राज्य स्तर पर मोटी रकम की उगाही करते हैं और यहां सुविधाओं का टोटा झेल रहे वाहन चालक व टेक्निशियन को मरीजों के परिजनों से पीटने छोड़ देते हैं. इस व्यथा को बताते हुए एक तकनीशियन ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि वे कहकर थक गये हैं. न तो रांची से सुविधा दी जा रही है और न ही जिलास्तर पर सुविधा मिलती है. ऐसे में कहीं-कहीं पीटने तक की नौबत आ जाती है. वाहन को केवल चलने भर मरम्मत कराया जाता है. वाहन के अंदर का कई भाग किसी काम का नहीं रह गया है. मरीज सहित परिजन भी इससे परेशान होते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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