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Prabhat Khabar Ground Report|गिरिडीह के पीरटांड़ से लौटकर दीपक पांडेय : गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखंड के खरपोका, सिमरकोढी, हरलाडीह, मंडरो, खुखरा, तुइओ, बंदगांवा व कुड़को पंचायत के गांवों में लोकतंत्र के महापर्व मतदान को लेकर भारी उत्साह है. कभी नक्सलियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में चर्चित इस इलाके में अब लोकतंत्र की बयार है.
Prabhat Khabar Ground Report| अब बम-गोली की बात नहीं
पीरटांड़ की पहाड़ियों में बसे इन पंचायतों के गांवों में अब गोली-बम की बात नहीं, मतदान की चर्चा है. दरअसल, गिरिडीह जिले के घोर नक्सल प्रभावित पीरटांड़ के ये आठ पंचायत 13 पहाड़ियों से घिरे हैं. ग्रामीण सबसे बड़ी पहाड़ी को ललकी पहाड़ी के नाम से पुकारते हैं. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर विकास में पीछे यह इलाका नक्सल प्रभावित अतिसंवेदनशील गांवों की श्रेणी में आते हैं.
पोलिंग पार्टी संगीनों के साये में जाती थी चुनाव कराने
यहां के गांवों में पहुंचना आसान नहीं है. पहले वोट बहिष्कार के ऐलान के बीच पोलिंग पार्टी संगीन के साये में यहां चुनाव कराने जाते थे. चुनाव बहिष्कार के नारे आज भी वहां के कई सरकारी भवनों की दीवारों पर दिख जायेंगे, पर बदलाव की बयार है. अब यहां के आम लोगों के साथ-साथ कभी नक्सल के अगुआ रहे लोग भी लोगों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं. अब यहां दहशत नहीं, लोकतंत्र के महापर्व की रौनक दिख रही है. इन सबके पीछे अगर शासन-प्रशासन के प्रति विश्वास है, तो सुरक्षा में तैनात जवान भी. इन सबके प्रयास से मानस और माहौल बदला और बुलेट पर बैलेट भारी पड़ रहा.
गांव में लोगों को कर रहे जागरूक
लगभग दो दशक तक वोट बहिष्कार का नारा देने वाले आज यहां वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. सनद रहे कि खुखरा थाना क्षेत्र के अतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित मेरोमगढ़ा गांव के तीन सहोदर भाई माओवादियों का झंडा बुलंद किये हुए थे. तीनों भाइयों पर नक्सली कांडों को लेकर आधा दर्जन केस दर्ज थे.
पूर्व माओवादी भी कर रहे मतदान के लिए जागरूक
इनका इलाके में आतंक था. बाद में पकड़े गये और सजा हुई. धीरे-धीरे चीजें बदलीं और तीनों भाइयों ने जेल से निकलने के बाद खुद को भी बदल लिया. इनके अलावा अन्य कई ने मुख्य धारा में लौटना बेहतर समझा और आज सभी लोग मतदान को लेकर दूसरों को जागरूक कर रहे. पूर्व माओवादी पारसनाथ, सब जोनल कमांडर गोविंद परिवार के साथ गांव में ग्रामीणों को जागृत कर वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
जो बातें आज भी दुख देती हैं
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इन इलाकों में जाने के लिए आज भी सड़क नहीं है. पहाड़ी पर पत्थरीली उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर लोग आते जाते हैं. बिजली और शुद्ध पीने के पानी की दिक्कत है. स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी परेशान होना पड़ता है. कोई बीमार पड़े तो भारी परेशानी होती है.
लोकतंत्र से ही बदलाव संभव
पूर्व माओवादी ताला हेंब्रम की पत्नी रतनी देवी का कहना था कि जो कुछ पूर्व में हुआ वह एक बुरा सपना था. चीजें बदली हैं और अब यह साफ है कि विकास के लिए लोकतंत्र पर ही भरोसा करना होगा.
सड़क और सुविधा मिले
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मोरमगढ़ा की झुमरी देवी ने कहा कि वैसा जनप्रतिनिधि चाहिए जो हमारी मुलभूत सुविधाओं का ख्याल रखे. हमारे सभ्यता संस्कृति के साथ अखरा में नाच सके, मांदर बजा सके और खेत, खलिहान में भी आ सके. हमें शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ पहले सड़क की जरूरत है.
बाबुओं पर लगाम लगाये
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गोविंद मांझी व एतवारी बेसरा का कहना था कि हथियार के बल परिवर्तन नहीं लाया जा सकता. इसके लिए लोकतंत्र पर भरोसा जरूरी है, पर बाबुओं पर नियंत्रण रखना होगा, ताकि किसी का काम नहीं रुके. अब घुसखोरी की संस्कृति नहीं चलनी चाहिए.
जंगल हमारा है, पर विकास हो
सबीता कुमारी कहती हैं कि जंगल में हमारे पूर्वज सालों से निवास कर रहे हैं. यह हमारा है, पर हमें मूलभूत सुविधाएं मिले, तो कोई मुख्यधारा से नहीं भटकेगा. गोविंद मांझी ने कहा कि बरहीगोड़ा से बदगांवा के रास्ते में स्थित मोरेमगड़ा गांव सहित अन्य इलाकों में सड़क व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जायें.
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