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Giridih News :कई ख्वाहिशें हुईं पूरी, कुछेक के सपने हुए चकनाचूर

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Giridih News :गिरिडीह जिले के लिए जाता हुआ वर्ष 2024 राजनीतिक दृष्टि से उथल-पुथल से भरा रहा. एक ओर जहां कइयों की ख्वाहिशें पूरी हुईं, तो कुछ के सपने चकनाचूर हो गये. गिरिडीह जिले के राजनीतिक पटल पर कई नये चेहरे सामने आये. इन चेहरों की वजह से झारखंड प्रदेश में गिरिडीह जिला सुर्खियों में रहा.

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वर्षांत : गिरिडीह जिला के लिए राजनीतिक उथल-पुथल से भरा रहा वर्ष 2024

गिरिडीह जिले के लिए जता हुआ वर्ष 2024 राजनीतिक दृष्टि से उथल-पुथल से भरा रहा. एक ओर जहां कइयों की ख्वाहिशें पूरी हुईं, तो कुछ के सपने चकनाचूर हो गये. गिरिडीह जिले के राजनीतिक पटल पर कई नये चेहरे सामने आये. इन चेहरों की वजह से झारखंड प्रदेश में गिरिडीह जिला सुर्खियों में रहा. इस वर्ष लोकसभा और झारखंड विधान सभा चुनाव की वजह से यहां की राजनीति में गरमाहट रही. दल बदलने का सिलसिला जारी रहा. राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच एक दूसरे के खिलाफ शब्दों के तीर भी खूब चले. कद्दावर नेता की जीत सुनिश्चित करने के लिए हर तरह से गोलबंदी हुई, इसे भी यहां की जनता ने बखूबी देखा.

राजनीति में दो नये चेहरों का प्रादुर्भाव

जिले की राजनीति में दो नये चेहरों का प्रादुर्भाव हुआ है. गांडेय विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन उप चुनाव एवं आम चुनाव में लगातार जीत हासिल की. दोनों बार उन्होंने भाजपा के प्रत्याशियों को शिकस्त दी. खास बात यह है कि गिरिडीह झंडा मैदान में चार मार्च को आयोजित झामुमो स्थापना दिवस कार्यक्रम से उन्होंने सक्रिय राजनीति प्रवेश किया. इसके बाद गांडेय उपचुनाव में बतौर झामुमो प्रत्याशी जीत हासिल की और फिर वर्ष 2024 के विस चुनाव में गांडेय विस क्षेत्र से पुन: परचम लहराया. यह जीत कई मायने में महत्वपूर्ण रही. कल्पना सोरेन यहां की पहली महिला विधायक बनीं. विधायक कल्पना सोरेन आज न सिर्फ झारखंड, बल्कि देश स्तर पर राजनीति क्षेत्र में एक बड़ा चेहरा बन कर उभरी है. दूसरी ओर डुमरी विधानसभा क्षेत्र से जेएलकेएम प्रत्याशी जयराम महतो जीत हासिल कर सबसे युवा विधायक के रूप में झारखंड विधानसभा पहुंचे हैं.

2019 में भाजपा के थे एक विधायक, 2024 में तीन जीते

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जमुआ विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी. जिले की शेष पांच विस सीटों पर अन्य दूसरे दलों को जीत मिली थी, पर वर्ष 2024 में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जमुआ, धनवार व बगोदर विधानसभा सीट पर परचम लहराया. इनमें जमुआ से भाजपा की मंजू कुमारी, धनवार से बाबूलाल मरांडी और बगोदर से नागेंद्र महतो जीते. शेष दो सीट क्रमश: गिरिडीह से भाजपा प्रत्याशी निर्भय कुमार शाहाबादी एवं गांडेय से मुनिया देवी को हार का मुंह देखना पड़ा. यूं तो भाजपा ने इन दोनों सीटों पर भी मजबूत तैयारी कर रखी थी. अति आत्मविश्वास के कारण लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया. हार के बाद प्रदेश से लेकर विस स्तर पर समीक्षा बैठक भी हो चुकी है.

18 वर्षों बाद गिरिडीह से कोई मंत्री बना

गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र से लगभग 18 वर्ष बाद किसी विधायक को झारखंड कैबिनेट में जगह मिली. इससे गिरिडीह विस क्षेत्र समेत जिले के झामुमो कार्यकर्ताओं, समर्थकों व आम जनता में खुश है. इससे पहले साल 2000-2005 तक गिरिडीह विस क्षेत्र के भाजपा विधायक चंद्रमोहन प्रसाद तत्कालीन प्रदेश सरकार में मंत्री थे. बतौर विधायक श्री सोनू ने कई विकास योजनाओं को धरातल पर उतारा है, इसीलिए मंत्री बनने के बाद उनसे उम्मीदें बढ़ गयी हैं.

बेबी देवी समेत कई दिग्गजों को मिली हार

वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में डुमरी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री बेबी देवी समेत अन्य विधानसभा क्षेत्रों से कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा. चूंकि डुमरी विधानसभा क्षेत्र झामुमो का गढ़ रहा है. इस सीट से बेबी देवी के पति दिवंगत जगरनाथ महतो चार बार जीत हासिल कर चुके थे. बेबी देवी उपचुनाव जीत कर मंत्री बनी थीं. ऐसे में पुन: झामुमो की जीत की उम्मीद की जा रही थी, पर इस सीट से जेएलकेएम के जयराम महतो जीते. इनके अलावे जमुआ विधानसभा सीट से झामुमो प्रत्याशी केदार हाजरा को भी हार का सामना करना पड़ा. अहम बात यह है कि श्री हाजरा वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के टिकट से जीते थे. बदलते राजनीतिक परिदृश्य में उन्हें झामुमो का दामन थामना पड़ा. इनके अलावे धनवार विस क्षेत्र से झामुमो प्रत्याशी निजामुद्दीन अंसारी को हार मिली.

भाजपा में टिकट के दावेदारों का सपना रह गया अधूरा

विधान सभा चुनाव से पहले भाजपा से टिकट के कई दावेदार आस लगाये बैठे थे. पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों में इन दावेदारों की उपस्थिति मजबूत रहती थी. टिकट के दावेदार सतत सक्रिय थे. इन दावेदारों की ओर से गिरिडीह से रांची और दिल्ली तक की दौड़ लगायी गई, पर टिकट की घोषणा हुई तो इनके चेहरे उतर गये. कई दावेदार ऐसे थे जो जिस विस क्षेत्र से टिकट की दावेदारी कर रहे थे और वहां से टिकट नहीं मिलने पर दूसरे विधानसभा क्षेत्र में जाकर चुनाव कार्य में जुट गये. कुछेक अपने ही क्षेत्र में रहे. महत्वपूर्ण बात यह है कि टिकट की घोषणा से पूर्व जिन दावेदारों ने लंबे-लंबे दावे किये थे, उनका सपना धरा रह गया. अब तो कई उम्र के उस दहलीज पर पहुंच गये हैं कि पांच वर्ष के बाद टिकट मिलने की आस पर ग्रहण लग सकता है.

भाकपा माले को लोकसभा व विस चुनाव में झेलनी पड़ी शिकस्त

वर्ष 2024 में हुए लोकसभा चुनाव और फिर विधान सभा चुनाव में भाकपा माले को शिकस्त झेलनी पड़ी है. लोकसभा चुनाव में पूर्व बगोदर विधायक भाकपा माले के विनोद कुमार सिंह कोडरमा संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाये गये थे. इस चुनाव में उन्हें हार मिली. इस चुनाव में भाजपा की अन्नपूर्णा देवी को जीत हासिल हुई और वह केंद्रीय मंत्री बनीं. पुन: विधानसभा चुनाव में बगोदर सीट से श्री सिंह ने चुनाव लड़ा और हार गये. यहां से भाजपा के नागेंद्र महतो को जीत हासिल हुई. माले ने धनवार विस क्षेत्र से पूर्व विधायक राजकुमार यादव को मैदान में उतारा था. इस चुनाव में उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. बगोदर विस क्षेत्र माले का गढ़ माना जाता है. ऐसे में इस सीट से माले की हार कई मायने में महत्वपूर्ण रही है.

गुटबाजी से जूझती रहीं कई पार्टियां

जिले में कुछेक पार्टियां गुटबाजी से जूझती रहीं. कई दलों में आपसी गुटबाजी का शीतयुद्ध चलता रहा, तो कुछेक दल में गुटबाजी की वजह से दल बदलने का सिलसिला देखने को मिला. गुटबाजी की वजह से चुनावी कार्यों के दौरान समन्वय स्थापित करने में भी परेशानी हुई. गुटबाजी की वजह से एक दूसरे पर शब्दों के तीर छोड़े गये. हालांकि खुलकर किसी ने इस मामले को सामने नहीं लाया, पर अंदरखाने में खूब धिंगामुश्ती का खेल खूब चला. गुटबाजी की वजह से कई नेताओं ने दल बदल लिये. नेताओं के बीच आपसी खींचतान का असर कई इलाकों में कार्यकर्ताओं पर भी पड़ा. इसी कड़ी में एक-दूसरे दल का दामन थामने का सिलसिला जारी रहा, इसे खूब प्रचारित किया गया.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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