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एफपीओ के जरिये अरहर दाल बाजार में उतारने की तैयारी

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एफपीओ के जरिये अरहर दाल बाजार में उतारने की तैयारी

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कृषि विज्ञान केंद्र (केविके), गढ़वा ने अरहर की फसल बाजार में उतारने की तैयारी की है. गौरतलब है कि गढ़वा जिले में धान के बाद दूसरी महत्वपूर्ण फसल अरहर है. इसकी खेती लगभग 30 हजार हेक्टेयर भूमि में होती है. वहीं कुल उत्पादन औसतन 30-35 हजार टन प्रतिवर्ष है. पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदारी नहीं होने के कारण किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत नहीं मिल पाती है. पर अब भारत सरकार किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) का गठन कर किसानों की आय बढ़ाने पर जोर दे रही है. वर्तमान में गढ़वा जिले में कुल 16 एफपीओ हैं. इनके जरिये अरहर की खेती एवं उसके उत्पाद के विक्रय का कार्य शुरू किया गया है. केविके गढ़वा ने अरहर की उन्नत खेती की तकनीकी जानकारी किसानों तक पहुंचाने के लिए एफपीओ के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ खेतों पर प्रत्यक्षण करवाया जा रहा है. इसके लिए जिला कृषि विभाग उन्नत बीज का वितरण करवा रहा है. वहीं राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) एफपीओ के सशक्तिकरण के लिए शासकीय एवं वित्तीय सहयोग मुहैया करा रहा है. कार्यशाला का हुआ आयोजन : इसी क्रम में कृषि विज्ञान केंद्र एवं नाबार्ड ने एफपीओ के बिजनेस प्लान के सुदृढ़ीकरण के लिए कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें कृषि विज्ञान केंद्र, नाबार्ड, एलडीएम एवं अन्य संस्थाओं के साथ एफपीओ के अध्यक्ष एवं सीइओ ने भाग लिया. कार्यशाला में एफपीओ के बिजनेस प्लान पर विस्तार से चर्चा की गयी एवं अरहर की खेती में लगने वाले इनपुट के साथ-साथ उत्पाद का मूल्य संवर्द्धन कर बाजार में उतारने का निर्णय लिया गया. एफपीओ को मिला दाल मिल का सेटअप : कृषि विज्ञान केंद्र गढ़वा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार ने बताया कि वर्तमान में जिला कृषि विभाग द्वारा सात एफपीओ को दाल मिल आवंटित किया गया है. जिले के सभी प्रखंडों में एफपीओ के तहत दाल मिल स्थापित किया जाना है. यहां अरहर का उलाया हुआ दाल बनाकर बाजार में उतारने की बात कही गयी. प्रधान वैज्ञानिक ने बताया कि गढ़वा जिले में अरहर की खेती का रकबा अधिक होने के बावजूद उत्पादकता कम होने के कारण किसानों को लाभ कम हो रहा है. मिट्टी जांच कर उर्वरक का करें प्रयोग : डॉ अशोक ने कहा कि अरहर की उत्पादकता कम होने का मुख्य कारण यहां की मिट्टी में बोरन एवं सल्फर की कमी होने के साथ-साथ अरहर में उकटा रोग एवं फूल आने के समय फली छेदक रोग का होना है. इसके लिए किसान भाइयों को अपने खेतों की मिट्टी का जांच करवा कर उचित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करना होगा. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिला कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केंद्र में नि:शुल्क जांच की सुविधा उपलब्ध है. जांच न हो पाये, तो करें यह उपाय : मिट्टी जांच नहीं करा पाने की स्थिति में किसान भाई बुवाई के समय डीएपी व पोटाश खाद के अलावा प्रति एकड़ चार किलो बोरन, 10 किलो सल्फर पाउडर एवं डेढ़ क्विंटल डोलोमाइट या चुना का प्रयोग करें. उन्होंने किसानों को कहा कि जिस खेत में सूखने वाली बीमारी हो गयी हो, तो उसमें तीन वर्ष तक अरहर या अन्य दलहन फसल की खेती न करें.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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