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दो जंगलों का 14 साल से टेंडर नहीं, नौ करोड़ का नुकसान

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दो जंगलों का 14 साल से टेंडर नहीं, नौ करोड़ का नुकसान

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श्री बंशीधर नगर वन क्षेत्र अंतर्गत धुरकी व सगमा प्रखंड में वन निगम ने सी और डी जंगल का टेंडर 14 वर्षों से नहीं किया है. इससे अब तक 9.10 करोड़ रु के राजस्व की क्षति का अनुमान है. जानकारी के अनुसार धुरकी व सगमा प्रखंड में वन निगम के चार यूनिट का जंगल है. इसमें यूनिट-ए में 5700 मानक बोरा का जंगल युनिट-बी में 5500 मानक बोरा, यूनिट-सी में 5400 मानक बोरा और युनिट डी में 5300 मानक बोरे का जंगल है. वित्तीय वर्ष 2009-10 में सी और डी जंगल का टेंडर हुआ था. दोनों जंगल से सरकार को 65 लाख रुपये के राजस्व की प्राप्ति हुई थी. इस हिसाब से अब तक 9.1 करोड़ रु के राजस्व का नुकसान सरकार को हुआ है.

80 प्रतिशत लोगों की आय का मुख्य स्रोत वनोपज : उल्लेखनीय है कि धुरकी प्रखंड क्षेत्र के करीब 80 प्रतिशत लोगों की आय का मुख्य स्रोत वन ऊपज है. इसमें महुआ एवं बीड़ी पत्ता शामिल है. इन दोनों फसल से प्रखंड के करीब 10 हजार लोगों का रोजी-रोटी जुड़ी है. महुआ एवं बीड़ी पत्ता के उत्पादन से लोग उम्मीदें पाले रखते हैं. इससे साल भर के घर-गृहस्थी की तैयारी होती है. कुछ लोग लड़की की शादी, तो कुछ लोग अपना घर बनाने की पहल करते हैं. लेकिन इस बार महुआ की फसल अच्छी नहीं होने से इसे जुड़े लोगों में मायूसी है. वही प्रखंड क्षेत्र के दो जंगल नहीं बिकने से बीड़ी पत्ता से जुड़े मजदूरों कत्भी नुकसान हुआ है. कुछ मजदूर दूसरे गांव में बीड़ी पत्ता तोड़ने चले गये हैं. वहीं कुछ मजदूर गांव से सेट सीमावर्ती राज्य छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश जाकर बीड़ी पत्ता तोड़ने पर मजबूर है.

पलायन कर चुके लोग भी लौट आते हैं : विदित हो कि प्रखंड क्षेत्र में जब महुआ एवं बीड़ी पत्ता का सीजन आता है, तो गांव से पलायन कर चुके मजदूर भी घर आकर दोनों फसलों से जुड़ जाते हैं. इससे उनकी अच्छी आमदनी हो जाती है. लेकिन इस बार महुआ एवं बीड़ी पत्ता दोनों नहीं होने से इससे जुड़े लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. रोजगार के लिए उन्हें दूसरे राज्यों में पलायन करने की विवशता होगी.

क्या कहते हैं बीड़ी पत्ता मजदूर

बीड़ी पत्ता के मजदूर कन्हाई बैठा, फलिंगर कोरवा. कोइल कोरवा, मानिकचंद बैठा व रामप्रवेश बैठा ने बताया कि इस बार जहां महुआ के सीजन में आंधी-तूफान आने से महुआ की फसल को नुकसान हुआ है. वहीं गांव में बीड़ी पत्ता का फड़ी नहीं बैठने से हम लोग बीड़ी पत्ता नहीं तोड़ सके. इससे हम लोगों की आमदनी इस बार खत्म हो गयी. दोनों फसलों से हम लोगों की अच्छी कमाई कर लेते थे.

क्या कहते हैं बीड़ी पत्ता के संवेदक

इस संबंध में पूछे जाने पर स्थानीय निवासी व पूर्व संवेदक मनदीप प्रसाद गुप्ता एवं राजेंद्र यादव ने बताया कि हम लोगों ने वित्तीय वर्ष 2009-10 में बीड़ी पता का जंगल लिया था. उस समय दोनों जंगलों की रॉयल्टी करीब 65 लाख रुपये दी गयी थी. लेकिन अब इन दोनों जंगलों की सरकार ने ऊंची कीमत लगायी है. पर पहले की तरह जंगलों में केंदू पत्ता नहीं है. पेड़ों की कटाई होने से केंदू पत्ता पहले से कम हो गये हैं. इसलिए इस जंगल पर अब काम लेने का साहस नहीं होता.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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