बरसोल. झारखंड का सबसे बड़ा पर्व मकर संक्रांति नजदीक है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के लोग जोर-शोर से तैयारी में जुटे हैं. मकर पर्व पर खजूर गुड़ की मांग बढ़ जाती है. इससे विभिन्न प्रकार का पीठा और पकवान बनाये जाते हैं. मकर पर्व से पूर्व पश्चिम बंगाल के कारीगर चाकुलिया, बरसोल समेत आस-पास में पहुंच कर खजूर गुड़ बनाते हैं. इन दिनों बरसोल से सटे बंगाल के चिचिड़ा, सासड़ा व बरसोल के खेड़ुआ में बंगाल के कारीगर खजूर गुड़ बनाने में व्यस्त हैं. बंगाल के कारीगर रोजाना गांव में जाकर खजूर पेड़ के ऊपरी हिस्सा काटकर हंडी टांग कर खजूर का रस संग्रह कर रहे हैं. इसके बाद खजूर रस संग्रह कर चूल्हा पर पका कर गुड़ बनाते हैं. गुड़ खरीदने वाले ग्राहक कहते हैं कि इसका स्वाद सबसे अलग होता है. बिना मिलावट से बने गुड़ का काफी फायदा भी होता है.
मकर से एक माह पहले आ जाते हैं कारीगर
बंगाल के कारीगरों ने बताया कि मकर पर्व पर झारखंड में खजूर गुड़ की काफी मांग रहती है. इस कारण वे मकर पर्व के 30 दिन पूर्व झारखंड में आते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ दिनों में वे खजूर गुड़ निर्माण कर उसे बेचकर काफी लाभान्वित होते हैं. ये किसान खजूर के पेड़ के आसपास अपना अस्थायी ठिकाना बनाते हैं. अहले सुबह से ये किसान गुड़ बनाने में लग जाते हैं. देसी जुगाड़ से बने खजूर के गुड़ की खरीदारी के लिए दूर दराज से लोग पहुंचते हैं.प्राकृतिक तरीके से बनता है गुड़
किसान जमीन पर बड़ा गड्ढा कर चूल्हा बनाते हैं. इसमें सूखी लकड़ियां और पत्ते का जलावन बनाते हैं. बड़े से बर्तन में खजूर के रस डालकर करीब चार से पांच घंटे तक पकाते हैं. यह रस गुड़ में बदल जाता है. जानकारी के अनुसार, यह गुड़ स्वास्थ्यवर्द्धक होता है. ठंड में शरीर को निरोग रखने में लाभदायक होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है