16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

शोर्य गाथा: 1948 की लड़ाई में शहीद हो गए थे शंकर हेंब्रम, शौर्य चक्र से किया गया था सम्मानित

Advertisement

स्वतंत्रता के ठीक बाद देश के कई हिस्सों में हिंसा हो रही थी. उधर कश्मीर पर कब्जा करने की नियत से हमले हो रहे थे. गुजरात का तटीय इलाका भी शांत नहीं था. इस इलाके में दुश्मनों का सामना सेना कर रही थी. इस टीम में झारखंड के शंकर हेंब्रम भी थे.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Shaurya Ghata: स्वतंत्रता के ठीक बाद देश के कई हिस्सों में हिंसा हो रही थी. उधर कश्मीर पर कब्जा करने की नीयत से हमले हो रहे थे. गुजरात का तटीय इलाका भी शांत नहीं था. इस इलाके में दुश्मनों का सामना सेना कर रही थी. इस टीम में झारखंड के शंकर हेंब्रम भी थे. उस समय उनकी उम्र 24-25 की होगी. उम्र उनकी भले ही कम थी, मगर इरादे चट्टान की तरह थे. 12 जून 1948 का दिन था. शंकर दुश्मनों के साथ संघर्ष कर रहे थे. इस संघर्ष में दोनों ओर से लोग मारे जा रहे थे. फिर शंकर हेंब्रम का कोई अता-पता नहीं चला. उनका शव भी नहीं मिला लेकिन सेना ने यह मान लिया कि दुश्मनों के साथ हुई लड़ाई में वे शहीद हो गये. उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. वे अविवाहित थे.

- Advertisement -

छुरीबादा का शेर थे शंकर हेंब्रम

11 जून 1923 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के दुमका प्रांत के छुरीबादा गांव में शंकर हेंब्रम का जन्म हुआ था. उनके छोटे परिवार में उनके पिता गोपाल हेंब्रम और माता जितनी सोरेन के अलावा उनसे दो वर्ष बड़े भाई जगु हेंब्रम थे. घर की आर्थिक स्थिति और गांव का माहौल शंकर को बड़े होकर उनके पिता की तरह उन्हें भी खेतों में हल और बैल का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता था. इसी के प्रशिक्षण के लिए बचपन से ही वह अपने पिता के साथ अक्सर खेतों में जाया करते थे. पांव उनके भले ही जमीन पर रहते हों, मगर नजरें हमेशा आकाश पर टिकी रहती थी. शायद उनकी अंतरआत्मा की यह आवाज थी कि उनकी असिमित शारीरिक बल, विलक्षण दिमाग और अदम्य साहस का सही उपयोग खेत में नहीं, बल्कि लड़ाई के मैदान पर हो सकता है. शायद इसलिए बचपन से ही खाकी वर्दी और उस पर लगे सितारे उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया करते थे. इस वर्दी को पहनने के योग्य बनने के लिए वह गांव के मैदानों में घंटों नंगे पांव दौड़ा करते थे.

फौज की बहाली प्रक्रिया के अभ्यास के दौरान न जाने कितनी बार हाथ-पांव छिलते रहे. मगर उन्हें इन जख्मों पर ध्यान देने का होश ही कहां था. उन्हें फौजी बनने की धुन सवार थी और इस धुन को सही मुकाम तब मिला, जब उनका चयन वर्ष 1941 में भारतीय सेना में हो गया. वहीं से उनकी जिंदगी को उचित दिशा और गति मिली. दुमका के एक छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने न केवल अपना, बल्कि अपने पूरे इलाके का नाम रोशन किया.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें