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Dhanbad News : दूसरों को आशीष देनेवाले किन्नर चाहते हैं मधुर व्यवहार व स्नेह

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कहते हैं -टीस उठती है, हमें भी दर्द होता है, समाज मौका दे तो हम भी अपनी काबिलियत का लोहा मनवा सकते हैं

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कहते हैं किन्नरों की दुआ कभी खाली नहीं जाती. हर शुभ मौके पर इनका आगमन होता है. नाच गाकर ये आशीष बरसा कर जाते हैं. इनके द्वारा दिया गया सिक्का बहुत शुभ होता है. दूसरों को आशीष देनेवाले किन्नर भी हमसे मधुर व्यवहार सहयोग व स्नेह चाहते हैं. इनकी दुनिया अलग जरूर है, लेकिन हैं तो इंसान. इन्हें ट्रांसजेंडर भी बोला जाता है. अब तो ये काफी आगे बढ़ चुके है. 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रांसजेंडर को मान्यता दिये जाने के बाद हर क्षेत्र में इनके कदम बढ़ चले हैं. ओड़िशा की ऋतुपर्णा प्रधान भारत की पहली ट्रांसजेंडर सिविल सेवक बनीं, तो पश्चिम बंगाल की जोयिता मंडल पहली ट्रांसजेंडर जज बनीं. वहीं खुशी शेख मॉडल बन दुनिया को दिखा दिया है कि वह किसी से कम नहीं हैं. ऐसे कई ट्रांसजेंडर हैं, जिन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है. धनबाद किन्नरों के अधिवेशन में आयी नेपाल की टीना राय व गोरखपुर की प्रिया मिश्रा से प्रभात खबर की संवाददाता ने बात की, तो उन्होंने अपने जीवन के कई पलों को साझा किया. इसमें खुशियां भी थी अरौर गम भी थे.

अपने परिवार में खुश हैं हम :

नेपाल से आये टीना राय कहते हैं कि अपने परिवार के साथ हम खुश हैं. विधाता ने हमें जिस नियति से नवाजा, उसका शुक्रिया करते हैं. हमारे परिवार की खुशियां, गम, शुभ अवसर सब पर अपने यजमानों के लिए दुआ और सिर्फ दुआ मांगते हैं. हमारी दुनिया आम दुनिया से बिल्कुल अलग है. कभी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है. बस यूं कहें आसान नहीं होती है हमारी जिंदगी. छुटपन से ही हमें अपने परिवार का त्याग कर नये परिवार के साथ रहना होता है. वहां के तौर तरीकों के साथ खुद को ढाल लेते हैं, जो पीछे छूट जाता है, फिर मूड़कर नहीं देखते. हालांकि हम पर कोई पाबंदी नहीं रहती है.

सभी के लिए बरसाते हैं आशीष :

गोरखपुर से आये प्रिया मिश्रा ने कहा कि जब हमारा परिवार छूटा, तो हम 10 साल के थे. हमारे जन्म पर बधाई लेने आयी नानी (किन्नर ) को मां ने बताया ये तो आपके बिरादरी की है. नानी ने कहा इसे पालो पोसो खूब प्यार दो, 10 साल बाद हम इसे ले जायेंगे. 10 साल के बाद मुझे नानी ले गयी. परिवार छोड़ते वक्त अपनों से बिछड़ने का गम था. लेकिन मेरे नये परिवार ने कभी इस बात पर दबाव नहीं बनाया कि पीछे छूटे परिवार से हम नहीं मिल सकते हैं. कई पल ऐसे आते हैं, जब टीस होती है. हमें भी दर्द होता है. समाज से हम ही कहते हैं, हम इस समाज से ही आते हैं, हमें अलग नजर से न देखें. हम सभी के लिए आशीष बरसाते हैं.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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