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कथनी-करनी के फेर में गरीबों के निवाले पर डाका, सबसे बड़े लुटेरे को चिन्हित करने की जरूरत – जीवेश रंजन सिंह

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बीते हफ्ते रंगों का त्योहार होली था. व्यक्तिगत व सामाजिक स्तर से लेकर प्रशासनिक तौर पर भी इसकी तैयारी की गयी थी. आनलाइन-ऑफलाइन संपन्न कई बैठकों में कील ठोक कर यह तय किया गया कि हर हाल में समय पर राशन बंट जाये और किसी को भी परेशानी नहीं हो. बावजूद इसके ऐसा नहीं हुआ.

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जीवेश रंजन सिंह

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वरीय संपादक, प्रभात खबर

बीते हफ्ते रंगों का त्योहार होली था. व्यक्तिगत व सामाजिक स्तर से लेकर प्रशासनिक तौर पर भी इसकी तैयारी की गयी थी. आनलाइन-ऑफलाइन संपन्न कई बैठकों में कील ठोक कर यह तय किया गया कि हर हाल में समय पर राशन बंट जाये और किसी को भी परेशानी नहीं हो. बावजूद इसके अधिकतर गरीबों की होली फीकी रही, क्योंकि समय पर जन वितरण प्रणाली की दुकानों में अनाज नहीं बंटा. जहां बंटा भी वहां तरह-तरह की गड़बड़ियां. कहीं तौल कम, तो कहीं किसी के नाम पर किसी और को आवंटन का खेल. इन सबका खुलासा तो हुआ ही, शुक्रवार को विभिन्न प्रखंडों में औचक निरीक्षण में इसकी पुष्टि भी हो गयी.

सरकारी राशन ‘मुरदे’ उठा रहे..

दरअसल, प्रभात खबर लगातार इन मामलों को उठाता रहा कि सरकारी राशन ‘मुरदे’ उठा रहे हैं, कई तरह की गड़बड़ियां हो रही हैं. अगर इस पर संज्ञान नहीं लिया गया. गौरतलब हो कि जन वितरण प्रणाली अपने देश में काफी महत्वपूर्ण योजना है. भारतीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली द्वारा स्थापित इस योजना का उद्देश्य ही देश में गरीबों को सब्सिडी पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है. वर्तमान में तो इसमें और भी कई सुधार किये गये हैं. इसके सफल संचालन के लिए साहबों व बाबुओं की भरमार है. कागजों पर देखें तो योजना इतनी फुलप्रूफ कि कहीं किसी गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं. पर हकीकत यह कि यह कमासुत टैग वाले विभागों में अपनी मजबूत पकड़ रखता है जनवितरण प्रणाली.

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निगरानी की कमी बड़ा कारण

दरअसल, जन वितरण प्रणाली की दुकानें गांव-गांव तक हैं. इसके लाभुक सुदूर ग्रामीण इलाके के और अधिकतर छल-प्रपंच से दूर रहने वाले हैं. ऐसे लोगों और सरकार के बीच की कड़ी साहबों, बाबुओं व दुकानदारों की तिगड़ी ही सारे मामलों की जड़ है. हालांकि अपवाद हर जगह हैं, पर वो गेहूं में राई की तरह. इस वजह से इस पर कड़ी निगरानी की कमी है. साहबों की टोली भी कागज पर ही चीजों को देख कर खुद की पीठ थपथपाने में विश्वास करने लगी है. आम लोगों के बीच जाने की जगह एसी कमरों में बैठना ज्यादा भाने लगा है. नतीजा मारे जा रहे हैं जरूरतमंद.

कथनी-करनी का फेर

सभी जानते हैं कि अधिकार के साथ कर्तव्य भी मिलता है. दोनों का चोली-दामन का साथ है. वर्तमान में अधिकार की सब बात करते हैं पर कर्तव्य के कानूनी पहलू पर चर्चा कर नैतिक पक्ष को भूलने की कला ही इन सबका बड़ा कारण है. इस पर विचारने की जरूरत है.

….और अंत में

शुक्रवार को जहां भी अधिकारियों की टोली पहुंची, वहां पर कुछ न कुछ गड़बड़ी मिली. कुछ जगह तो दुकानदारों की तरफदारी के लिए दलालों की टोली भी खड़ी हो गयी. ऐसे में चीजों पर गंभीर मंथन की जरूर है. केवल कुछ दुकानदारों को दंड देकर यह समझ लेना कि सब सुधर जायेगा उचित नहीं, सिस्टम के अंदर बैठे वैसे लोगों को भी चिह्नित करने की जरूरत है जिनके रहने के बाद भी ऐसी गड़बड़ियां हो रही हैं. ऐसे लोग ही गरीबों के निवाला के सबसे बड़े लुटेरे हैं. अगर यह हो सका तभी सरकारी पैसे, जो पैसे हमारे खून-पसीने की कमाई से लिये गये टैक्स से जमा किये हैं, उसका सम्मान हो सकेगा. वरना ऐसे ही जनवितरण प्रणाली के खाद्यान्न जरूरतमंदों की जगह दूसरों की दुकानों में और घरों में मिलेंगे.

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