28.1 C
Ranchi
Tuesday, February 4, 2025 | 04:28 pm
28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

पांच मंडलों और पांच ब्रह्म कलाओं से युक्त है बाबा बैद्यनाथ धाम का पंचशूल

Advertisement

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष स्थित पंचशूल विभिन्न पंचकों के माध्यम से शिव-तत्व की व्याख्या करते हुए यह उजागर करता है कि बैद्यनाथ मंदिर में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग स्वरूप श्री बैद्यनाथ साक्षात स्वयं सदाशिव हैं. उन शिव तत्वों के बारे में यहां जानें..

Audio Book

ऑडियो सुनें

डॉ मोतीलाल द्वारी. बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल विभिन्न पंचकों के माध्यम से श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शिव-तत्व के संबंध में जानकारी देता है. इस बैद्यनाथ मंदिर में वे सदाशिव ही त्रिपुर सुंदरी के साक्षात विद्यमान हैं. उन तत्वों की व्याख्या नीचे की गई है-

- Advertisement -

1. कैलाश पंचक

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष स्थित पंचशूल सर्वप्रथम पांच आवरणों , पांच मंडलों और पांच ब्रह्म कलाओं से युक्त ज्ञानमय कैलाश का संकेत देता है. चौदह भुवनों में अनेक लोक हैं. उतरोत्तर दुगने क्रम से बढ़ते हुए करणेश शिव के छप्पन लोक हैं. इन लोकों के ठीक ऊपर पांच आवरणों से युक्त सर्वोपरि ज्ञानमय कैलाश है, जहां पांच मंडलों, पांच ब्रह्म कलाओं और आदि शक्ति संयुक्त आदिलिंग प्रतिष्ठित है. पंचशूल संकेत देते हुए बतलाता है कि इस बैद्यनाथ के देवालय में भी वही आदिशक्ति संयुक्त आदिलिंग प्रतिष्ठित है. यह बैद्यनाथ क्षेत्र उस कैलाश का ही प्रतिनिधि क्षेत्र है. यह बैद्यनाथ देवालय उसी कैलाशपति का शिवालय है. यहां वहीं परमेश्वर शिव अपनी अविछिन्न शक्ति सहित निवास करते हैं. इनका भी श्रीविग्रह सच्चिदानंद स्वरूप है. ये सदा ध्यान रूपी धर्म में ही स्थित रहते हैं और सदा सबों पर अनुग्रह किया करते हैं. सच्ची लगन और साधना पथ पर आगे बढ़ने पर उनकी कृपा से उनके दर्शन भी साध्य होते हैं. निसंदेह कैलाश लोक ही आनंद लोक है, क्योंकि यहां समय ठहरा हुआ रहता है. सभी अन्य लोकों में समय का भान होता है. समय का भान होना दुख है. समय का बढ़ना दुख है. समय का न्यून होना सुख है और समय का शून्य होना आनंद है.

कैलाश में वृषभ आकार में धर्म की स्थिति है. इस वृषभ के चार पाद सत्य ,अहिंसा, शैचा और दया हैं. क्षमा उनके सींग हैं. शम-कान है. उनका यह कान वेद ध्वनि रूपी शब्द से विभूषित है. आस्तिकता उनके दोनों नेत्र हैं. विश्वास ही उनकी श्रेष्ठ बुद्धि और मन है. क्रियादि तो कराणादि में स्थित है. इसी वृषभाकार धर्म पर कालातीत शिव आरुढ़ हैं. इसी से शिव का वाहन वृषभ है.

2. प्रणव पंचक

पंचशूल और अक्षरों से युक्त प्रणव- ओंकार का संकेत देता है. गार्गी के पूछने पर महर्षि याज्ञवल्क्य जिस एक अक्षर पर परमात्मा का ज्ञान देते हुए कहते हैं कि वह परापर ब्रह्म एक अक्षर ओंकार- प्रणव से व्यक्त हैं , वह ओंकार-प्रणव पंचाक्षर ही है. इस ओंकार प्रणव में पांच मात्राएं है -अ, उ, म, बिंदु और नाद. पंचशूल इन्हें दर्शाता है. पंचशूल संकेत देता है कि इस देवालय में वही एक अक्षर परब्रह्म परमात्मा श्री बैद्यनाथ के रूप में स्थित हैं. ये ओंकार भी हैं और ओंकार के मूल भी यही हैं-

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं-

बैद्यनाथ देवालय में ओंकार, ओंकार मूल और उनकी आकृति तीनों हैं.

ओमिति ब्रह्म। ओमितिदं। ओमित्ये तदनुकृतिर्हस्म परंचापरंच ब्रह्म यदोओंकारे एतद्वेतक्षरं गार्गि।।

प्रणवश्च तत्सत्यं परं ब्रह्म तत्प्रतीकत्वात्। श्वेताश्वतरोपनिषद

इसी एक अक्षर काे रुद्र की संज्ञा प्रदान करता है.

एको हि रूद्रो न द्वितीयाय तस्थु र्य इमांल्लोक नीशत ईशनीभि:

याज्ञवल्क्य जिस एक अक्षर को सब पर शासन करते हुए आकाश पर्यांत सबको धारन करने वाला कहते हैं और उसे प्रणव की संज्ञा से विभूषित करते हैं, उसे ही श्वेताश्व तरोपनिषद सबों पर शासन करने वाला ईशान रूद्र की संज्ञा से विभूषित करता है. अतएव वह अक्षर रूद्र ही है. पंचशूल स्पष्ट करता है कि इस बैद्यनाथ देवालय में वही प्रणव ईशान रूद्र है ,जो पंचाक्षर से युक्त है.

सर्वो वै रुद्र,अर्थात सबकुछ रूद्र ही हैं, जो हृदयपीठ बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में बैद्यनाथ में विराज रहे हैं.

3. आनंद पंचक

पंचशूल व्यक्त करता है कि बैद्यनाथ देवालय में स्थित ईशान-रुद्र के पांच मुख हैं, वे पंचानन शिव हैं. उनके पांच मुख – ईशान, तत्पुश्रुष, अघोर, वाम देव और सद्योजात हैं. बैद्यनाथ का विग्रह पंचानन स्वरूप है.

4. काला पंचक

पंचशूल उन पांच कलाओं की भी जानकारी देता है, जो ईश्वर शिव के पांच आनन के साथ संबद्ध है. वे पांच कलाएं निवृति, प्रतिष्ठा, विद्या, शांति तथा शान्त्या तीत के नाम से विख्यात हैं. सद्योजात के साथ निवृत्ति कल संबद्ध है. वामदेव के साथ प्रतिष्ठा, अघोर के साथ विद्या, तत्पुरुष के साथ शांति तथा ईशान के साथ शान्त्यतीत कला प्रतिष्ठित है. पंचशूल में उन पांचों कलाओं का भी संकेत है.

5. मंत्र पंचक

पंचशूल पांच कलाओं से युक्त ओंकार जनित पांच प्रमुख महामंत्रों का संकेत देता है. इन महामंत्रों का मूल प्रणव ओंकार ही है. पांच मात्राओं से युक्त प्रणव से ही ये पांचों महामंत्र निसृत हुए हैं.

क- ऊॅं त्तवमासि , ख- गायत्री, ग- मृत्युंजय मंत्र, घ- पंचाक्षर मंत्र, ड़- चिंतामणी मंत्र .

क- ऊॅं त्तवमासि : यह महावाक्य है. यह परम उत्तम मंत्र रूप है. ज्ञानियों को जब ज्ञान की उपलब्धि होती है, तो वह कह उठता है- अह्म ब्रहमास्मि. यह ज्ञान की पूर्णता नहीं है. ज्ञान की पूर्णता तब मानी गयी है, जब साधक कह उठता है कि तुम भी वही हो – तत्वमसि. तुममें और मुझमें को अंतर नहीं है. इसमें परायेपन का भाव समाप्त हो जाता है. ज्ञानी समदर्शी होकर अद्वैत को उपलब्ध हो जाता है. दूसरे का भाव लोप हो जाता है. जो मैं हूं ,वहीं तुम भी हो, इस सत्य का उदघाटन हो जाता है. इस अनुभव के साथ यह दृष्टि मिल जाती है कि ”सर्व खल्विदं ब्रह्म ” सभी ब्रह्म ही हैं. साधक को यह ज्ञानोदय होते ही इर्ष्या, द्वेष, घृणा, वैमस्यादि भावों का लोप हो जाता है. जब दूसरा कोई है ही नहीं, किससे इर्ष्या, कैसी घृणा, कैसा द्वेष ? ये सारी गलत भावनाएं संपूर्ण रूप से विसर्जित हो जाती हैं और केवल प्रेम का अस्तित्व बचा रहता है. प्रेम से करुणा, सहानुभूति, सहिष्णुता, संवेदना और सेवा का भाव जग जाता है. इसे ही मुदिता नाम दिया गया है. तत्वमासि मंत्र का ज्ञाता आनंदमय जीवन व्यतीत करता है. मुदिता में करुणा और उपेक्ष का भाव निहित है. सबों के प्रति करुणा का भाव. परायेपन के भाव की उपेक्षा. ध्यान रहे यह करुणा किसी पर दया करना नहीं है. दया में अहंकार रहता है, करुणा में प्रेम. दया सिर्फ ईश्वर करते हैं, क्योंकि केवल ईश्वर का ही अंहकार रहता है. गीता के 10 वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण का ”मैं” गूंजता है. अहंकार -शिव, शिव का ही अहंकार है. शिव ही दया कर सकते हैं. जीव का अहंकार अज्ञान की क्षेणी में आता है. जीव के अहंकार का पतन निश्चित है, क्योंकि जीव का अहंकार मिथ्या अहंकार है. जीव के अहंकार में द्वैत का भाव रहता है. मैं बड़ा हूं, समर्थ हूं, तुम पर दया करके क्षमा कर देता हूं. यह अज्ञान है. तुम छोटे हो, असमर्थ हो, इस प्रकार के द्वैत का भाव अज्ञान है. ‘द्वैत के बिनु अज्ञान’ रामकृष्ण परमहंस कहते हैं, दया तुम्हारा मिथ्या- अहंकार है. इसलिए सेवा करो- सेवा करो. सेवा में अद्वैत ज्ञान रहता है. श्री राम, हनुमान से कहते हैं ,हे हनुमान ,अन्नय वही है जिसकी बुद्धि कभी नहीं टलती कि मैं सेवक हूं और यह चराचर जगत मेरे स्वामी ईश्वर का ही रूप है. तत्वमसि. तत्वमसि महावाक्य है. महामंत्र है. सर्वोच्च ज्ञान है. इसलिए बाबा बैद्यनाथ का पंचशूल जिन पांच महामंत्रों की ओर संकेत दे रहा है उनमें से पहला तत्वमसि है.

नोट : गायत्री मंत्र जानकारी अगले अंक में दी जाएगी, बने रहे प्रभात खबर के साथ…

(लेखक डॉ मोतीलाल द्वारी, शिक्षाविद् सह हिंदी विद्यापीठ के पूर्व प्राचार्य हैं)

Also Read: संपूर्ण शिव-तत्व की व्याख्या करता है देवघर के बाबा मंदिर का पंचशूल

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें