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श्रावणी मेला 2023 : हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं देवघर, समुद्र मंथन से है कांवर यात्रा का कनेक्शन

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झारखंड के देवघर जिले में लगने वाला श्रावणी मेला विश्वप्रसिद्ध मेला है. यहां हर वर्ष सावन के महीने में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है. सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. एक वक्त था, जब देवघर और बासुकीनाथ की अर्थव्यवस्था श्रावणी मेला पर ही निर्भर थी. एक महीने में लोग साल भर की कमाई कर लेते थे.

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सावन या श्रावण महीने में भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ देवघर में बाबा भोलेनाथ के श्रद्धालु जलार्पण करने के लिए आते हैं. देश के कोने-कोने में बाबा के भक्त श्रद्धा से शिवलिंग पर जलार्पण करते हैं. बिहार और झारखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भक्त कांवर यात्रा (Kanwar Yatra 2023) करते हुए बाबा को जल चढ़ाते हैं. लेकिन, सवाल है कि सिर्फ सावन के महीने में ही कांवर यात्रा क्यों होती है?

श्रावण मास में ही क्यों होती है कांवर यात्रा

आइए, आज हम आपको बताते हैं कि श्रावण मास में ही कांवर यात्रा क्यों होती है. पुराणों में कहा गया है कि जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो उसमें से कई दिव्य चीजें निकलीं. दिव्य चीजों का बंटवारा देवताओं और दानवों में हो गया. हलाहल विष भी समुद्र मंथन के दौरान निकला था. इसे कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं था.

भगवान भोलेनाथ ने कर लिया हलाहल विष का पान

भगवान भोले शंकर आगे आये और उन्होंने हलाहल विष का पान कर लिया. जैसे ही उन्होंने इसका सेवन किया, मां पार्वती ने शिव के गले पर अपना हाथ रख दिया. हलाहल शिव के गले से नीचे नहीं उतर पाया. विष के असर से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया. हालांकि, भोलेनाथ ने विष को गले से नीचे नहीं जाने दिया, फिर भी विष के असर से बाबा भोलेनाथ को पीड़ा होने लगी.

इसलिए करते हैं शिव का जलाभिषेक

भगवान शंकर को विष के प्रभाव से मुक्त करने के लिए उनके शरीर पर जल चढ़ाया गया. इससे विष का असर धीरे-धीरे कम होने लगा. बता दें कि समुद्र मंथन श्रावण मास में हुआ था. इसी दौरान जलार्पण करके भगवान शंकर को विष के असर से मुक्त कराया गया. यही वजह है कि शिवलिंग पर श्रावण माह में जलार्पण की परंपरा शुरू हुई.

बम बम भोले कहते बढ़ते हैं कांवर यात्री

श्रावण के महीने में हर शिवभक्त कांवर यात्रा में शामिल होने की इच्छा रखता है. कांधे पर कांवर लेकर बम-बम भोले करते हुए शिवालयों तक पहुंचता है. शिवालय में बेहद आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले भोलेशंकर को जल चढ़ाता है और उनसे अपनी मन्नत मांगता है. कहते हैं कि बाबा भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूरी करते हैं.

भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं बाबा बैद्यनाथ

अपने नाथ भोलेनाथ को विष की वजह से होने वाली पीड़ा से मुक्ति दिलाने और अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा, भक्ति और समर्पण के लिए भक्त गंगा का जल लेकर बाबा के दर तक पहुंचते हैं. उन्हें जलार्पण करते हैं. इससे बाबा प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरी करते हैं.

इस बार 59 दिन की है कांवर यात्रा

इस वर्ष कांवर यात्रा 59 दिन की है. 4 जुलाई से यात्रा शुरू हो जायेगी. कहा जा रहा है कि इस साल का सावन भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए सुख-समृद्धि की वर्षा करने वाला है. चूंकि इस साल अधिकमास पड़ रहा है, ऐसे में भक्तों को भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए ज्यादा दिन मिलेंगे. कुल 8 सोमवार होंगे.

कई तरह के होते हैं कांवरिये

बता दें कि भगवान भोले के भक्त बिहार के भागलपुर जिला में स्थित सुल्तानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा का जल लेकर कांवर यात्रा शुरू करते हैं और 107 किलोमीटर की दूरी तय करके देवघर पहुंचते हैं. यहां बाबा बैद्यनाथ को जलार्पण करते हैं. कांवरिये कई तरह के होते हैं.

  • आम कांवरिये वो होते हैं, जो सुल्तानगंज (अजगैबीनाथ) से जल लेकर 3 से 5 दिन में देवघर पहुंचते हैं और बाबा बैद्यनाथ के मनोकामना लिंग पर जलार्पण करते हैं.

  • डाक बम उन श्रद्धालुओं को कहते हैं, जो सुल्तानगंज से गंगा का जल लेकर बिना रुके अजगैबीनाथ से देवघर तक की यात्रा करके बाबा को जल चढ़ाते हैं. इनकी यात्रा 17 से 20 घंटे में पूरी हो जाती है.

  • सबसे कठिन तप दांडी यात्री या दांडी बम करते हैं. दांडी बम उन कांवरियों को कहते हैं, जो दंड प्रणाम करते हुए सुल्तानगंज से बाबाधाम तक पहुंचते हैं. इन्हें बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने में कई हफ्ते लग जाते हैं.

शिव के भक्तों को करना होता है कठिन तप

भगवान शिव शंकर बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं. सिर्फ एक लोटा जल से. लेकिन, उनके भक्तों को कांवर यात्रा के दौरान कठिन तप करना पड़ता है. अगर आप भी कांवर यात्रा पर जा रहे हैं, तो इन नियमों के बारे में जान लीजिए. यात्रा के दौरान उसका अवश्य पालन कीजिए.

कांवर यात्रा के जरूरी नियम|Kanwar Yatra 2023

  • कांवर यात्रा पर जाने वालों को सफाई का विशेष ध्यान रखना होता है. बिना स्नान कांवर को छूना भी वर्जित है.

  • कांवड़ यात्रा के दौरान चमड़े से बनी किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. यहां तक कि उसे छूना भी नहीं चाहिए.

  • यात्रा के दौरान कभी भी कांवर को जमीन पर न रखें. यह सर्वथा वर्जित है. नित्य कर्म, भोजन आदि के लिए या विश्राम के लिए कहीं रुकना हो, तो कांवर को ऊंचे स्थान पर रखकर जायें.

  • कई श्रद्धालु भक्ति के भाव में आकर कांवर को सिर पर रख लेते हैं. लेकिन, ऐसा करना नहीं चाहिए. शास्त्रों में यह वर्जित है.

  • कांवर यात्रा के दौरान मन की पवित्रता भी बेहद जरूरी है. किसी पेड़ के नीचे कांवर कभी न रखें.

  • यात्रा के दौरान शिव की भक्ति में लीन रहें. हर-हर महादेव, जय शिव शंकर, बोल बम बोल बम का निरंतर जप करते रहें.

  • कांवर यात्रा के दौरान आप अन्य मंत्रों से भी शिव की भक्ति कर सकते हैं. यानी शिव मंत्र का जप कर सकते हैं.

  • कांवर यात्रा के दौरान लोगों को किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए. सावन के महीने में वैसे लोग भी मांसाहार छोड़ देते हैं, जो कांवर यात्रा में शामिल नहीं होते.

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