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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ दिव्या गुप्ता बोलीं, झारखंड में बढ़े हैं बाल हिंसा के मामले

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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ दिव्या गुप्ता ने कहा कि दुमका, धनबाद व देवघर के बाल गृहों का जायजा ले चुकी हैं. यहां पंजियों की कमी मिली. डॉक्टर कभी आते नहीं हैं. पता चला कि डॉक्टर ऑन कॉल रहते हैं.

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देवघर: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ दिव्या गुप्ता ने कहा कि झारखंड में बाल संरक्षण के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, पदाधिकारियों व कर्मियों की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें दायित्व की जानकारी ही नहीं है. देवघर सर्किट हाउस में प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि पहले चरण में पांच राज्यों के बाल गृहों में भ्रमण का दायित्व मिला है. इस क्रम में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के बाल गृहों का जायजा ले चुकी हैं. असम के बाल गृहों का जायजा लेना अभी बाकी है. डॉ दिव्या ने बताया कि सबसे खराब स्थिति उन्हें बिहार के बाल गृहों की मिली. झारखंड में भ्रमण के दौरान पाया कि यहां बाल हिंसा के मामले बढ़े हैं, जो मल्टीफैक्टोरियल हैं. इसके पीछे शिक्षा की कमी सहित मोबाइल और फिल्म बड़ा कारण है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ दिव्या गुप्ता ने कहा कि दुमका, धनबाद व देवघर के बाल गृहों का जायजा ले चुकी हैं. यहां पंजियों की कमी मिली. डॉक्टर कभी आते नहीं हैं. पता चला कि डॉक्टर ऑन कॉल रहते हैं. झारखंड के बाल गृह में एक ही कैंपस में बच्चों को रखा जाता है. कई बच्चियां एनीमिक भी देखी गयीं. उन्होंने कहा कि इन मामलों में सरकार को संज्ञान लेना चाहिए. कम से कम राज्य के हरेक जिले में बाल गृह हो, सरकार इसकी व्यवस्था करे.

भ्रमण में उन्होंने देखा कि पति की मौत के बाद पत्नी दूसरी शादी कर लेती हैं और बच्चों को छोड़ देती हैं. ऐसे मामलों में प्राथमिकी का प्रावधान है, जिसकी जानकारी पदाधिकारियों को नहीं है. कल ही दुमका भ्रमण के क्रम में पदाधिकारी ने उन्हें जानकारी दी थी कि यहां ऐसी प्रथा है. इस पर प्राथमिकी होनी चाहिए. पूरे झारखंड में मात्र 11 ऑब्जर्वेशन होम हैं. दुमका में चार जिलों का बाल गृह है, जिसकी क्षमता 80 है तथा फिलहाल 100 से अधिक बच्चे रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि मामले में संज्ञान लेकर अपने अधिकार के तहत रिपोर्ट करेगी. उनकी रिपोर्ट का जवाब नहीं मिलेगा तो सम्मन जारी भी किया जायेगा. मौके पर मनीष कश्यप मौजूद थे.

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