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देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर से जुड़ी हैं कई मान्यताएं, जानें क्या है पंचशूल का रहस्य

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देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बैद्यनाथ धाम नौंवा ज्योतिर्लिंग है. बैद्यनाथ धाम मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. साथ ही मंदिर परिसर में लगे पंचशूल का भी अपना अलग ही रहस्य है.

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Baba Baidyanath Mandir: झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बैद्यनाथ धाम नौंवा ज्योतिर्लिंग है. साथ ही यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो शक्तिपीठ भी है. यानि एकमात्र ऐसा धाम जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं. इसे शिव और शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है.

पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं, कहते हैं कामना लिंग

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. साथ ही इस पर भक्तों की अटूट श्रद्धा भी है. कहते हैं कि बाबा धाम आने वाले भक्तों की सभी मन्नतें जरूर पूरी होती है. यहां मनोकामनाएं पूरी होने के कारण मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है.

त्रिशूल नहीं यहां लगा है पंचशूल

आमतौर पर शिव मंदिरों के शीर्ष पर आपने त्रिशूल लगा हुआ देखा होगा, लेकिन देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में पंचशूल लगा हुआ है. मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और अन्य सभी मंदिरों में आपको त्रिशूल की जगह पंचशूल देखने को मिलेंगे. मान्यता है कि यह सुरक्षा कवच है. महाशिवरात्रि से ठीक दो दिनों पहले ये पंचशूल उतारे जाते हैं और महाशिवरात्रि से एक दिन पहले विधि-विधान के साथ उनकी पूजा कर वापस से मंदिर के शीर्ष पर स्थापित कर दिया जाता है.

पंचशूल के कारण किसी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं!

माना जाता है कि त्रेता युग में रावण की लंकापुरी के द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में भी पंचशूल स्थापित था. कहा यह भी जाता है कि रावण को पंचशूल यानी इस सुरक्षा कवच को भेदना आता था, जो भगवान राम के वश में भी नहीं था. हालांकि विभीषण ने प्रभु श्री राम को सुरक्षा कवच का भेद बताया था, जिसके बाद श्री राम और उनकी वानर सेना लंका में प्रवेश कर पायी थी. मान्यता है कि इस पंचशूल के कारण ही बाबधाम में आज तक किसी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ.

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