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खोरठा भाषा-साहित्य के स्तंभ शिवनाथ प्रमाणिक का 75 साल की उम्र में निधन, शोक की लहर

खोरठा भाषा-साहित्य के प्रमुख स्तंभ रहे शिवनाथ प्रामाणिक (75 वर्ष) नहीं रहे. मंगलवार को उनका निधन हो गया. उन्होंने बोकारो के रानीपोखर स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली.

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कसमार (बोकारो), दीपक सवाल : खोरठा भाषा-साहित्य के प्रमुख स्तंभ रहे शिवनाथ प्रामाणिक (75 वर्ष) नहीं रहे. मंगलवार को उनका निधन हो गया. उन्होंने बोकारो के रानीपोखर स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली. वह कुछ समय से बीमार चल रहे थे. स्वर्गीय प्रामाणिक अपने पीछे दो पुत्र व एक पुत्री समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं.

वह खोरठा साहित्य-संस्कृति परिषद के निदेशक भी थे. उनके निधन से खोरठा भाषा-साहित्य के क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई. शाम को गांव से उनकी अंतिम यात्रा चास स्थित दामोदर नदी शमशान घाट तक निकली. अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए व उन्हें श्रद्धांजलि दी. निधन पर गोमिया विधायक डॉ लंबोदर महतो, राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सुनील कुमार प्रजापति, डॉ रितु घांसी, अशोक पारस, कामेश गोस्वामी, गुलांचो कुमारी, राजेश कुमार, रामकिशुन सोनार, प्रो अरविंद, डॉ कृष्णा गोप, अनाम ओहदार, विक्की कुमार आदि ने भी शोक प्रकट किया है.

खोरठा के ‘मानिक’ थे शिवनाथ प्रमाणिक

शिवनाथ प्रमाणिक खोरठा भाषा-साहित्य के ‘माणिक’ माने जाते हैं. खोरठा को स्थापित और विकसित करने में इनका अहम योगदान रहा है. मूलतः देखें तो खोरठा साहित्य जगत में श्रीनिवास पानुरी एवं डॉ एके झा के बाद शिवनाथ प्रमाणिक का नाम लिया जाता रहा है.

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संभवतः इसी के परिणामतः समूचे खोरठा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली एवं खोरठा-साहित्य व संस्कृति के विकास के लिए 30-35 वर्षों से कार्यरत-संघर्षरत संस्था ‘खोरठा साहित्य-संस्कृति परिषद’ के निदेशक (नेतृत्व) की जिम्मेदारी डॉ झा के गुजरने के बाद शिवनाथ प्रमाणिक को ही मिली. इससे पूर्व वह इसके उपनिदेशक थे. बतौर निदेशक एवं उपनिदेश इन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी उठाया. एक साहित्यकार, मानववादी कवि व भाषा चिंतक के रूप में वह खोरठा जगत के लिए एक मील का पत्थर थे.

डॉ रामदयाल मुंडा, डॉ एके झा, बीपी केसरी, एके रॉय व शिबू सोरेन को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले स्व शिवनाथ को खोरठा के सिद्धहस्त जनवादी कवि, रचनाकार, साहित्यकार एवं प्रखर वक्ता के रूप में जाना जाता है. हिंदी में भी इनकी अच्छी पैठ थी. बांग्ला, उर्दू व संस्कृत का भी खासा ज्ञान था.

खोरठा साहित्य व संस्कृति का अलाव जगाने में इनकी अहम भूमिका रही है. इन्होंने खोरठा साहित्य की समृद्धि के लिए विभिन्न विधाओं में अनेक पुस्तकें भी लिखी. पिछले कई दशक से जनवादी तेवर के साथ रचनाकर्म को बड़े ही कुशल कारीगर की तरह निभाते रहे.

23 जनवरी 1950 को हुआ था जन्म

शिवनाथ प्रमाणिक का जन्म 23 जनवरी 1950 को बोकारो शहर से सटे बैदमारा गांव में हुआ था. इनका आरंभिक जीवन काफी कठिनाई भरा रहा. लेखन में रूचि बचपन से रहने के कारण कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया. इनकी कविता, लेख, लघुकथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे. लेकिन, तब हिंदी में ही लिखा करते थे. 1984 में ‘खोरठा मागधी की मुहबोली’ शीर्षक से इनका एक लेख धनबाद से प्रकाशित एक दैनिक अखबार में छपा.

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इसे पढ़कर एके झा इनसे काफी प्रभावित हुए. वह खुद इनसे मिले और खोरठा लेखन के लिए इन्हें प्रेरित किया. फिर तो शिवनाथजी खोरठा लेखन के क्षेत्र में ऐसा जुड़े, कि इस भाषा के उन्नयन के लिए पूरी तरह से समर्पित ही हो गए. इनके ही विशेष प्रयास से 1984 में ‘बोकारो खोरठा कमेटी’ तथा 1993 में ‘खोरठा साहित्य-संस्कृति परिषद’ का गठन हुआ.

खोरठा सम्मेलनों की शुरुआत करने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है. 1984 में अपने पैतृक गांव बैदमारा में पहला खोरठा सम्मलेन का आयोजन किया. आकशवाणी रांची से खोरठा का पहला स्वरचित गीत इनका ही प्रसारित हुआ था.
चल डहरे चल रहे, डहर बनाय चल रे..

इनकी पहली पुस्तक ‘रुसल पुटुस’ 1985 में प्रकाशित हुई. 1987 में मौलिक प्रबंध काव्य ‘दामुदरेक कोराय’ प्रकाशित हुआ. इसका एक काव्य ‘चल डहरे चल रहे, डहर बनाय चल रहे…’ काफी चर्चित रहा है. 1998 में इनका चर्चित खोरठा काव्य संकलन ‘तातल आर हेमाल’ छपा. 2004 में इनकी एक और पुस्तक सामने आई- ‘खोरठा लोक साहित्य’. इसका मूल आलेख तो हिंदी में है, लेकिन खोरठा लोक गीत, लोककथा पर इसमें काफी अच्छा खोजपूर्ण लेख है.

यह पुस्तक सिविल सेवा की तैयारी करने वाले प्रतियोगी छात्रों के लिए भी काफी उपयोगी साबित हुई है. 2012 में प्रकाशित खोरठा का प्रथम मौलिक महाकाव्य ‘मइच्छगंधा’ से भी इन्हें काफी ख्याति मिली. ‘खोरठा लोक कथा’, ‘खोरठा गइद पइद संगरह’ और ‘बेलंदरी’ जैसी पुस्तकों के संपादन में भी इनकी मुख्य भूमिका रही.

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खोरठा के मुखपत्र ‘तितकी’ के सलाहकार संपादक भी हैं. स्वर्गीय मानिक पर्यटन प्रेमी भी थे. देश के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का भ्रमण कर किया. इनकी हिमालय यात्रा भी चर्चित थी. इन यात्राओं पर इनकी एक पुस्तिका (माटी के रंग) भी प्रकाशित हुई है. इन्हें खोरठा के प्रथम गजलगो के रूप में भी जाना जाता है.

भाषा साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए इन्हें जगह-जगह सम्मानित होने का मौका भी मिला. जमशेदपुर की साहित्यिक संस्था ‘काव्यलोक’ ने ‘काव्य भूषण’ से नवाजा. चतरा की संस्था ‘परिवर्तन’ ने ‘परिवर्तन बिसेस’ तथा ‘अखिल झारखंड खोरठा परिषद्’ (भेंडरा) ने ‘सपूत सम्मान’ से सम्मानित किया.

वर्ष 2007 में झारखंड सरकार के खेलकूद व संस्कृति विभाग तथा 2008 में शिक्षा मंत्री से सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. खास बात यह भी रही है कि शिवनाथजी ने बोकारो स्टील प्लांट के राजभाषा विभाग में नौकरी करते हुए भी खोरठा भाषा, साहित्य व संस्कृति अंदोलन में अगुवा की भूमिका पूरी कुशलता से निभाई और पूर्ण समर्पित भी रहे.

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