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Jharkhand News : औने पौने दाम में खरीद ली यूपी के आदमी ने बोकारो में 74 एकड़ वन भूमि, मूकदर्शक बन देखता रहा विभाग, जानें पूरा मामला

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सरकार ने इजहार हुसैन के नाम पर कायम जमाबंदी रद्द कर दी, लेकिन यह कार्रवाई गलत नियमों के तहत की गयी. इसका लाभ जमीन के दावेदार को कोर्ट में मिल गया. गलत नियम के सहारे जमाबंदी रद्द किये जाने के चलते सरकारी आदेश को हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया. इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया, लेकिन इससे पहले ही ललन सिंह ने जमीन खरीद ली.

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Jharkhand News, Bokaro News बोकारो : बोकारो के तेतुलिया में 23.13 करोड़ रुपये मूल्य की जमीन उमा आयुष कंपनी के निदेशक ललन सिंह ने 10.30 करोड़ रुपये में खरीदी है. जनवरी 2021 में बनी इस कंपनी के निदेशक ‌ललन सिंह उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हैं. कंपनी के नाम पर जो 74 एकड़ जमीन खरीदी गयी है, उसे राज्य सरकार ने वन भूमि बताया है. लेकिन इजहार हुसैन नामक व्यक्ति ने इस पर अपना दावा ठोंका और फिर इसे यूपी के ललन सिंह को बेच दी.

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सरकार ने इजहार हुसैन के नाम पर कायम जमाबंदी रद्द कर दी, लेकिन यह कार्रवाई गलत नियमों के तहत की गयी. इसका लाभ जमीन के दावेदार को कोर्ट में मिल गया. गलत नियम के सहारे जमाबंदी रद्द किये जाने के चलते सरकारी आदेश को हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया. इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया, लेकिन इससे पहले ही ललन सिंह ने जमीन खरीद ली.

जमीन का म्यूटशन करनेवाले तत्कालीन सीओ हो चुके हैं बर्खास्त

इजहार हुसैन के नाम पर जमीन का म्यूटेशन करनेवाले तत्कालीन अंचलाधिकारी (सीओ) निर्मल टोप्पो को इस मामले में सरकार बर्खास्त कर चुकी है. निर्मल टोप्पो द्वारा वर्ष 2016 में इजहार हुसैन के नाम म्यूटेशन करने के बाद अपर समाहर्ता, बोकारो ने इसे गलत बताते हुए कार्रवाई शुरू की. भू-सुधार अधिनियम 1950 की धारा 4(एच) के तहत कार्रवाई करते हुए इजहार हुसैन के नाम कायम जमाबंदी रद्द कर दी गयी. इसके बाद इजहार हुसैन ने हाइकोर्ट में जमाबंदी रद्द कर दिये जाने को चुनौती दी.

अदालत ने जमाबंदी रद्द करने को बताया गलत

न्यायमूर्ति राजेश शंकर की अदालत ने सुनवाई के बाद सरकार द्वारा जमाबंदी रद्द करने की कार्रवाई को गलत करार दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता ने 1933 से जमीन पर दावा किया है. सरकार ने भू-सुधार अधिनियम-1950 की धारा 4 (एच) के तहत कार्रवाई की है, जो सही नहीं है. क्योंकि इस धारा के तहत पहली जनवरी 1946 के बाद के दावों पर जांच की जा सकती है. टाइटल का मामला सिविल सूट से निबटाये जाने का नियम है.

सरकार चाहे तो अपने दावों के मद्देनजर सिविल कोर्ट जा सकती है. इधर, 14 जुलाई 2018 के इस फैसले को राज्य सरकार ने डबल बेंच में चुनौती दी. सरकार की याचिका की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति रविरंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण की पीठ ने पांच नवंबर 2020 को अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने सिंगल बेंच के आदेश को इसी आधार पर बहाल रखा कि सरकार द्वारा भू-सुधार अधिनियम की धारा 4 (एच) के तहत की गयी कार्रवाई कानून की नजर में सही नहीं है.

हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद इजहार हुसैन के नाम लगान रसीद जारी कर दी गयी. तब सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का फैसला किया. एसएलपी दायर करने से संबंधित आदेश सरकार के स्तर से 11 फरवरी 2021 को जारी किया गया. लेकिन 10 फरवरी 2021 को ललन सिंह ने यह जमीन खरीद ली. सेल डीड में जमीन की कीमत 23.13 करोड़ रुपये होने और सिर्फ 10.30 करोड़ रुपये में खरीदे जाने का उल्लेख है.

जमाबंदी करने के आरोप में बर्खास्त

राज्य सरकार ने चास के तत्कालीन अंचल अधिकारी निर्मल टोप्पो को जमीन के इसी मामले में वर्ष 2018 में बर्खास्त किया था. टोप्पो पर यह आरोप था कि उन्होंने अंचलाधिकारी के रूप में काम करते हुए बोकारो जिले के मौजा तेतुलिया, थाना नंबर 38, सेक्टर-12 के खाता नंबर 12 के प्लॉट नंबर 426 व 450 की जमीन का नामांतरण किया. सर्वे खतियान के अनुसार यह जमीन गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ के रूप में दर्ज है.

  • औने-पौने दाम में बिकी जमीन

  • 23 करोड़ की जमीन मात्र 10 करोड़ में खरीदी

  • विभाग ने गलत नियम के तहत जमाबंदी रद्द करने का दिया आदेश, हाइकोर्ट में दावेदार को मिला इसका लाभ

  • इस पूरे प्रकरण में सरकारी अफसरों के क्रियाकलापों पर उठ रहे सवाल, राज्य की संपत्ति को पहुंचा रहे नुकसान

इजहार हुसैन की ओर से कोर्ट में दी गयी दलील

इजहार हुसैन ने कोर्ट को बताया कि मौजा तेतुलिया खाता नंबर 59, प्लॉट नंबर 426, 450 का कुल क्षेत्रफल 103 एकड़ है. यह जमीन चमटू सिंह ने 31 दिसंबर 1893 को राजकुमार सिंह को जोत पट्टा पर दिया था. फिर 25 नवंबर 1933 को राजकुमार सिंह ने जमीन सरेंडर कर दिया. पुरुलिया के तत्कालीन जिलाधिकारी ने नीलाम प्रक्रिया के तहत इस जमीन की बंदोबस्ती समीर महतो उर्फ समीर महतो के नाम पर की. समीर महतो, इजहार हुसैन के पूर्वज थे.हल्का कर्मचारी की जांच रिपोर्ट के आधार पर अंचलाधिकारी ने म्यूटेशन केस नंबर 56/2015-16 में 17 मार्च 2016 को इजहार हुसैन के पक्ष में आदेश पारित किया.

इसके बाद 30 मई 2016 को अंचल अधिकारी ने एक नोटिस जारी कर यह कहा कि जमीन की जमाबंदी संदेहास्पद व अवैध प्रतीत होती है. इस नोटिस के बाद अपर समाहर्ता बोकारो द्वारा भू-सुधार अधिनियम 1950 की धारा 4 एच के तहत यह कहते हुए कार्रवाई शुरू की गयी, कि क्यों नहीं जमीन की जमाबंदी रद्द कर दी जाये. सुनवाई के बाद अपर समाहर्ता ने अगस्त 2016 में जमाबंदी रद्द कर दी.

वनभूमि के आधार पर जमाबंदी रद्द की, पर दस्तावेज पेश नहीं किया :

फिर उपायुक्त ने भी इस पर सहमति दी. जमाबंदी रद्द करने के लिए सरकार की ओर से यह तर्क पेश किया गया कि संबंधित जमीन वनभूमि है. 14 मई 1958 को इससे संबंधित अधिसूचना जारी हो चुकी है. लेकिन वन विभाग ने इस जमीन के वन भूमि होने से संबंधित दस्तावेज पेश नहीं किया है.

राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में दी गयी दलील

सरकार की ओर से पेश की गयी दलील में कहा गया कि खतियान में जमीन ‘ गैर आबाद मालिक’ के रूप में दर्ज है. जमीन की प्रकृति जंगल-झाड़ी है. वन विभाग द्वारा 1958 में इसके प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट होने से संबंधित अधिसूचना जारी की जा चुकी है. अपर समाहर्ता द्वारा जमाबंदी रद्द की जा चुकी है. सरकार के स्तर पर भी इस पर सहमति मिल चुकी है.

याचिकाकर्ता की ओर से 1933 का जोत पट्टा और सरेंडर डीड नहीं दिया गया है. सक्षम पदाधिकारी की अनुमति के बिना ही 2016 में जमाबंदी शुरू कर दी गयी. जमीन पर याचिकाकर्ता के पूर्वज का कभी दखल कब्जा नहीं रहा. जमींदारी खत्म होते वक्त जमींदार ने जमीन को किसी के नाम बंदोबस्त किये जाने से संबंधित रिटर्न दाखिल नहीं किया, ऐसे में वह जमीन स्वत: सरकार के मालिकाना हक में चली गयी.

  • विभाग ने गलत नियम के तहत जमाबंदी रद्द करने का दिया आदेश, हाइकोर्ट में दावेदार को मिला इसका लाभ

  • इस पूरे प्रकरण में सरकारी अफसरों के क्रियाकलापों पर उठ रहे सवाल, राज्य की संपत्ति को पहुंचा रहे नुकसान

posted By : Sameer Oraon

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