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Coronavirus In Jharkhand : बोकारो में कोरोना का कहर, लेकिन हिसीम पहाड़ पर बसे ग्रामीणों को नहीं छू सका कोरोना, पढ़िए ये रिपोर्ट

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Coronavirus In Jharkhand, बोकारो न्यूज (दीपक सवाल) : झारखंड के कई गांव कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं. वर्ष 2020 में कोरोना की पहली लहर में जो गांव सुरक्षित थे, उनमें भी अधिकतर गांव दूसरी लहर में बच नहीं सके, लेकिन बोकारो के कसमार के हिसीम पहाड़ पर बसे गांवों को कोरोना अभी-तक छू नहीं पाया है. क्या पहली लहर, क्या दूसरी, किसी में अब-तक एक भी पॉजिटिव केस हिसीम पहाड़ के किसी भी गांव में अब तक सामने नहीं आया है. आदिवासी जीवनशैली, प्रकृति के साथ गहरा नाता एवं शुद्ध खानपान इन गांवों के निवासियों के बीच कोरोना से बचाव में ढाल बना हुआ है.

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Coronavirus In Jharkhand, बोकारो न्यूज (दीपक सवाल) : झारखंड के कई गांव कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं. वर्ष 2020 में कोरोना की पहली लहर में जो गांव सुरक्षित थे, उनमें भी अधिकतर गांव दूसरी लहर में बच नहीं सके, लेकिन बोकारो के कसमार के हिसीम पहाड़ पर बसे गांवों को कोरोना अभी-तक छू नहीं पाया है. क्या पहली लहर, क्या दूसरी, किसी में अब-तक एक भी पॉजिटिव केस हिसीम पहाड़ के किसी भी गांव में अब तक सामने नहीं आया है. आदिवासी जीवनशैली, प्रकृति के साथ गहरा नाता एवं शुद्ध खानपान इन गांवों के निवासियों के बीच कोरोना से बचाव में ढाल बना हुआ है.

बोकारो जिला मुख्यालय से करीब 70 एवं कसमार प्रखंड मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर बंगाल के पुरूलिया एवं झारखंड के रामगढ़ जिला की सीमा पर अवस्थित हिसीम पहाड़ पर कुल चार गांव (हिसीम, केदला, त्रियोनाला एवं गुमनजारा) बसे हुए हैं. ये सभी आदिवासी बहुल गांव है. तीन गांव (केदला, त्रियोनाला एवं गुमनजारा) तो पूर्णतः आदिवासी बहुल है. इनमें गैर आदिवासियों की संख्या नगण्य है. केवल हिसीम गांव में आधी जनसंख्या गैर आदिवासियों (खासकर कुर्मी-महतो) की है. वे भी आदिवासी जीवनशैली एवं प्रकृति के उतने ही करीब हैं. स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि यहां के निवासियों की जीवनशैली, खानपान सब-कुछ अलग है. इम्युनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) काफी है. यही सब कारण है कि हिसीम पहाड़ के गांवों में कोरोना अपना प्रभाव नहीं दिखा पाया है. चिकित्सा विभाग के द्वारा कई बार कोरोना जांच शिविर भी लगाया गया. अनेक लोगों के सैंपल लिये गए, पर उनमें भी कोई पॉजिटिव नहीं निकला. मजेदार बात तो यह भी है कि आदिवासी बहुल कुछ गांवों को छोड़कर कसमार प्रखंड के प्रायः गांव कोरोना की चपेट में आ चुके हैं. बावजूद हिसीम पहाड़ के गांव अब तक सुरक्षित हैं.

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हिसीम पहाड़ के गांवों में कोरोना वायरस तो अपना असर नहीं दिखा पाया है, पर सर्दी-खांसी, वायरल फीवर और टायफाइड की चपेट में पहाड़ के लगभग चारों गांव अवश्य आ गए. सैकड़ों लोग इससे ग्रसित हुए. पर खास बात यह है कि इसका समाधान भी ग्रामीणों ने आपस में ही ढूंढ निकाला. डॉक्टर की जरूरत लगभग नहीं के बराबर पड़ी. जड़ी-बूटी पर काम करने वाले केदला निवासी समाजसेवी जगेश्वर हेंब्रम को इसका विशेष श्रेय जाता है. बताया जाता है कि वायरल फीवर और टायफाइड के बढ़ते प्रकोप से पहाड़ पर बसे गांवों के ग्रामीण चिंतित थे. प्रायः घरों में कोई न कोई सर्दी-खांसी और बुखार से ग्रसित थे. इस बीच श्री हेंब्रम ने जड़ी-बूटियों से एक दवा तैयार की और उससे वायरल फीवर को बेअसर करने में काफी हद तक सफलता पाई है. श्री हेंब्रम के अनुसार, करीब पांच-छह प्रकार की जड़ी-बूटियों से यह दवा तैयार कर वायरल फीवर से ग्रसित लोगों को दी गई. अधिकतर लोग पूरी तरह से ठीक हो गए. उन्होंने बताया कि यह सभी जड़ी-बूटी हिसीम पहाड़ के जंगलों में ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं.

जानकारी के अभाव में लोग उसका उपयोग नहीं कर पाते थे. जब इसकी दवा तैयार की गई तो 3 दिन में ही यह अपना असर दिखाने लगी और 9 दिनों की खुराक में ग्रामीण पूरी तरह से ठीक होते गए. उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में कुछ लोगों ने अंग्रेजी दवाई का सहारा लिया, पर कई सप्ताह बाद भी ठीक नहीं हुए. वैसे लोग भी जड़ी-बूटी से स्वस्थ हुए और बाद में अन्य लोगों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया. यही कारण है कि आज वायरल फीवर से भी इसी पहाड़ के गांव लगभग सुरक्षित नजर आ रहे हैं. लगभग डेढ़ सौ लोगों को उन्होंने जड़ी-बूटी से ठीक किया.

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केदला निवासी वयोवृद्ध सामाजसेवी देवशरण हेंब्रम का मानना है कि प्राकृतिक जीवनशैली, शुद्ध खानपान और शुद्ध वातावरण के कारण हिसीम पहाड़ पर बसे गांवों के ग्रामीणों की इम्युनिटी पावर काफी मजबूत है. यहां के ग्रामीण शारीरिक श्रम भी बहुत करते हैं. शायद यही सब वजह है कि कोरोना वायरस अभी-तक यहां अपना प्रभाव नहीं दिखा पाया है. वे कहते हैं- यहां के ग्रामीण सालों भर जंगल में पाए जाने वाले कंद-मूल का उपयोग करते हैं. मड़ुवा, मकई के अलावा कोचरा (महुआ फल), पियार, भेलवा, केंद, जामुन, गेंठी आदि का भरपूर उपयोग करते हैं. कोनार साग, मनवा साग जैसी विभिन्न प्रकार की साग एवं ताजी सब्जियां खाते हैं. रहन-सहन भी एकदम आदिवासी जीवनशैली में है. मेहनत कर रोज पसीना बहाते हैं. यही सब कारण है कि लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता दूसरे गांवों के लोगों के अपेक्षाकृत अधिक है और उसी वजह से कोरोना भी अपना असर नहीं दिखा पा रहा है. वे कहते हैं- इन चीजों को बचाये रखने में अगर में आगे भी सफल रहे तो कोरोना से यह गांव आगे भी सुरक्षित रहेगा.

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गुमनजारा निवासी युवा सामाजसेवी नरेश सोरेन बताते हैं कि उनके गांव में पिछली लहर में भी कोई पॉजिटिव नहीं हुआ था. इस बार भी अब-तक सभी कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित हैं. वे कहते हैं- हिसीम पहाड़ के लोगों का प्रकृति से हमेशा गहरा नाता रहा है. हमारी जीवनशैली ही हमारी ताकत है. हम प्रकृति के सानिध्य में रहकर न केवल शुद्ध हवा का उपयोग कर पाते हैं, बल्कि खानपान भी हमारा गैर आदिवासी गांवों के लोगों की अपेक्षा बिल्कुल अलग है. लोग शारीरिक श्रम भी खूब करते हैं. यही सब कारण है कि यहां के गांवों में कोरोना अब-तक अपना असर नहीं दिखा पाया है.

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कसमार के चिकित्सा प्रभारी डॉ नवाब कहते हैं कि कसमार प्रखंड में कोरोना की दूसरी लहर का काफी असर पड़ा है. सैकड़ों लोग पॉजिटिव हुए हैं. आदिवासी गांवों को छोड़ दिया जाए तो प्रखंड के प्रायः गांवों में कोरोना अपना प्रभाव दिखा चुका है. हिसीम पहाड़ पर बसे गांव भी अभी तक कोरोना से सुरक्षित है. एक भी केस सामने नहीं आये हैं. कई बार शिविर लगाकर ग्रामीणों की कोरोना जांच भी हुई, उसमें भी कोई पॉजिटिव नहीं निकले. शुद्ध खानपान, प्रकृति से गहरा नाता, शारीरिक श्रम और अलग रहन-सहन के करण हिसीम पहाड़ के ग्रामीणों में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक है. संभवतः यही कारण है कि कोरोना अपना असर हिसीम पहाड़ के गांवों में नहीं दिखा पाया है. वैसे विभाग वहां अपनी नजर बनाए हुए हैं.

हिसीम पहाड़ पर बसे गांवों की आबादी

गांव एससी एसटी अन्य कुल

केदला 00 980 01 981

त्रियोनाला 63 669 01 733

गुमनजारा 00 288 01 281

हिसीम 21 710 743 1474

(2011 की जनगणना पर आधारित)

Posted By : Guru Swarup Mishra

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