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बीएसएल में 95 फीसदी कर्मी पदनाम पाने से पहले ही हो जायेंगे सेवानिवृत्त

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4-5 फीसदी कर्मी ही पहुंच पाएंगे डी क्लस्टर तक, सोशल मीडिया पर भड़ास निकाल रहे हैं कर्मी

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सुनील तिवारी, बोकारो, बोकारो सहित सेल की अन्य इकाइयों में पदनाम को लेकर घमासान मचा हुआ है. कारण है स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की ओर से पदनाम को लेकर कुछ दिन पहले निकाला गया सर्कुलर, जिसमें सेल ने ‘डी क्लस्टर’ की बात कही है. नयी प्रमोशन पॉलिसी में डी क्लस्टर तक हर कोई पहुंच नहीं पायेगा. बीएसएल के कुल कर्मियों में से 4-5 फीसदी ही पहुंच पाएंगे. मतलब, बीएसएल में 95 फीसदी कर्मी इस पदनाम को पाने से पहले ही रिटायर्ड हो जाएंगे. कारण, क्लस्टर में बहुत हीं कम प्रमोशन दिया जाता है. बीएसएल सहित सेल कर्मियों में नाराजगी इसी बात को लेकर है.

26 साल बाद एक डिप्लोमा इंजीनियर बनेगा जूनियर इंजीनियर

भविष्य अधिकतम कितने लोग जूनियर इंजीनियर बन पायेंगे ? बीएसएल में मात्र 4-5 प्रतिशत, कारण डी क्लस्टर में इतनी ही वेकेंसी है. कितने साल बाद एक डिप्लोमा इंजीनियर जूनियर इंजीनियर बनेगा? यदि डी क्लस्टर में वैकेंसी हुई, तब ज्वाइनिंग के 26 साल बाद. क्लस्टर बी 11 साल, सी 11साल व एस 9 – 4 साल. जिन संयत्रों में डी क्लस्टर नहीं है, वहां नया समझौता कर डी क्लस्टर बनाना होगा. वहां भी वेकेंसी बेस्ड हीं होगा. यह सर्कुलर नयी प्रमोशन पॉलिसी के तहत नॉन एक्स प्रमोशन पॉलिसी (एनइपीपी) के तहत आया है. इसमें कलस्टर ए से बी व बी से सी के बीच प्रमोशन में वैकेंसी की बाध्यता नहीं है.

सभी डिप्लोमा इंजीनियर नहीं बन पायेंगे जेई

बीएसएल सहित सेल के कर्मी पदनाम को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे है. बीएसएल सहित पूरे सेल में पदनाम को लेकर लड़ाई दो दशक पुरानी हो चुकी है. इसको लेकर डिप्लोमा इंजीनियर्स ने कई तरह से संघर्ष किये. वे एंट्री लेवल से ही पदनाम की मांग करते रहे हैं. अब सेल ने डी क्लस्टर की बात कही है. इसके लिए वैकेंसी अनिवार्य है. कर्मियाें को यह भी आशंका बनी हुई है कि बाद में खाली पदनाम के चक्कर में डी क्लस्टर (एक इंक्रीमेंट का नुकसान) को हीं ना खत्म कर दिया जाय. मतलब, बीएसएल सहित सेल के सभी डिप्लोमा इंजीनियर जूनियर इंजीनियर नहीं बन पायेंगे.

डी क्लस्टर में नियमित कर्मी को ही जूनियर इंजीनियर पदनाम

वहीं जूनियर इंजीनियर पदनाम हासिल कर पायेंगे, जो डी क्लस्टर में नियमित कर्मचारी है. वह कर्मचारी जो एस-10 व एस-11 हो चुके हैं, किंतु एक्सटेंडेड क्लस्टर में है, वह इस पदनाम को हासिल नहीं कर पायेंगे. अब सवाल यह है कि क्या सभी डिप्लोमा इंजीनियर के बन जायेंगे. जवाब है नहीं. कारण, यह पदनाम नॉन एक्स प्रमोशन पॉलिसी के अंतर्गत आया है, जिसमें क्लस्टर सी से डी का प्रमोशन जनरल न होकर वैकेंसी आधारित है, यानी की यदि क्लस्टर सी व डी में वैकेंसी होगी, तभी कर्मचारियों को यह पदनाम मिल पायेगा. और हां, इस पदनाम से कोई आर्थिक लाभ नहीं होगा.

क्लस्टर सी से डी में प्रमोशन के लिए वैकेंसी का होना अनिवार्य

क्लस्टर सी से डी में प्रमोशन के लिए वैकेंसी का होना अनिवार्य है. यह कुल पदों की 18 फीसदी तक वैकेंसी हीं होती है. इस तरह से कोई कर्मचारी भले ही ग्रेड एस-10 या 11 तक भी पहुंच जाये. लेकिन, उसका क्लस्टर डी में प्रमोशन नहीं होगा, तो वह जूनियर इंजीनियर नहीं कहलायेगा, क्योंकि नया पदनाम ग्रेड आधारित नहीं होकर क्लस्टर आधारित है. सेल में एंट्री लेवल से पदनाम का विषय डिप्लोमा इंजीनियर्स की एक सूत्रीय मांग रही है. डिप्लोमा इंजीनियर्स की भर्ती एस-3 ग्रेड से होती है, तो इसी ग्रेड से डिप्लोमा इंजीनियर्स को जूनियर इंजीनियर का पदनाम मिलना चाहिए. लेकिन, डी क्लस्टर लागू कर दिया गया.

मामलों को उठायेगी यूनियन : दिलीप कुमार

बीएकेएस बोकारो के महासचिव दिलीप कुमार ने कहा कि सेल में कर्मचारी वर्ग से अधिकारी वर्ग बनने की पात्रता कर्मियों को एस-6 ग्रेड के 2 से 4 साल तक मिल जाती है. वहीं, जूनियर इंजीनियर बनने की पात्रता एस-6 ग्रेड के कम से कम 11 साल बाद मिलती है. उसमें भी वैकेंसी नहीं हुई, तो समय सीमा और भी बढ़ सकती है. ऐसे में कर्मचारी जूनियर इंजीनियर बनने से पहले ही ई-0 परीक्षा देकर जूनियर मैनेजर (अधिकारी) बन जायेगा. डिप्लोमा, आईटीआई, डिपेंडेंट, वरिष्ठ कर्मचारी… सभी वर्गों का सम्मानजनक पदनाम का रास्ता क्लस्टर की संख्या बढ़ाने व प्रत्येक ग्रेड का अलग-अलग पदनाम से हीं निकलेगा. इसके लिए यूनियन पत्र लिख रही है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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