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धनबाद : टुंडी राज का इतिहास 400 वर्ष से भी अधिक पुराना, अयोध्या से जुड़ी है टुंडी राज की कहानी

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टुंडी की राजमाता के निधन पर टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने शोक जताया है. कहा कि रांची में रहने के कारण सशरीर मौजूद नहीं हो सका.

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टुंडी इसकी स्थापना की कहानी अयोध्या राज से जुड़ी हुई है. अयोध्या से पुरी पर्यटन के लिए तीन भाई एक साथ निकले थे. यात्रा के क्रम में टुंडी पहुंचे. यहां कुछ दिनों तक विश्राम किया. यहां तब कोल-भील का राज था. यहां की प्राकृतिक सुंदरता व बराकर नदी की कलकल धारा ने राजकुमारों का मन मोह लिया. तीनों भाइयों में ज्येष्ठ दीप पाल सिंह ने यहां अपना राज स्थापित करने की इच्छा जाहिर की. तीनों भाइयो ने कोल-भील से संबंध स्थापित कर तत्कालीन किलेदार, जो काशीपुर महाराज के अधीन था. उनका निवास स्थान गुवाकोला में था, को युद्ध में पराजित कर अपना राज स्थापित किया. जब काशीपुर महाराज को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने प्रतिकार किया पर विफल रहे. काशीपुर महाराजा को वापस लौटना पड़ा. दूसरे भाई नंद कुमार सिंह साधु बन गये और तीसरे भाई मयूरभंज (ओडिशा) चल गये और वहां राज स्थापित किया. राजा दीपपाल सिंह के पुत्र इंद्रजीत सिंह ने वर्तमान टुंडी प्रखंड के मोहनाद (महाराजगंज) के पास अपना गढ़ बनाया. वहीं के राजाबांध और रानीबांध इसके उदाहरण हैं. राजा दीपपाल सिंह के दसवें पुश्त के राजा बैकुंठ नारायण सिंह ने अपनी राजधानी बराकर नदी किनारे धरमपुर को बनाया. बैकुंठ नारायण सिंह के पुत्र हुए राधा मोहन सिंह. कहा जाता है कि किसी कारण से बैकुंठ नारायण सिंह ने अपने पुत्र को श्राप दे दिया था कि वह राज सत्ता से वंचित रहेगा. जैसे ही राधा मोहन सिंह को गद्दी पर बैठाया गया, तो उनकी मृत्यु हो गयी. तब राधा मोहन के पुत्र लक्ष्मीनारायण सिंह को आनन-फानन में राजगद्दी पर बैठाया गया. इसी बीच राज परिवार ने अपना गढ़ टुंडी में बना लिया. राजा लक्ष्मीनारायण सिंह इस वंश के सबसे प्रतापी राजा हुए. उसके कारण बाइसी चौरासी राजा ने उन्हे अपना सभापति बनाया और उस पद पर वह जीवन पर्यंत रहे. उनके पुत्र रणविजय नारायण सिंह हुए, जिन्हें टिकैत पद से विभूषित किया गया. इसी वंश के अंतिम राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह हुए. विद्यावती देवी उन्हीं की पत्नी थीं. इस वंश का राज टुंडी से लेकर देवघर तक फैला था.

राजमाता के निधन पर विधायक ने जताया शोक

टुंडी की राजमाता के निधन पर टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने शोक जताया है. कहा कि रांची में रहने के कारण सशरीर मौजूद नहीं हो सका.

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