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Delhi Assembly Election 2025 : कहां मात खा गई बीजेपी, वो गलती जिसका परिणाम आज तक भुगत रही है

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Delhi Assembly Election 2025 : 1993 में विधानसभा के गठन के बाद हुए चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद से वह दोबारा सत्ता तक नहीं पहुंच सकी. जानें आखिर क्या हुआ था 1998 के चुनाव में ऐसा?

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Delhi Assembly Election 2025 : दिल्ली में फरवरी में विधानसभा चुनाव होने की संभावना हैं. आम आदमी पार्टी (आप) लगातार 11 साल से सत्ता पर काबिज है. इस बार आप, कांग्रेस और बीजेपी के बीच चुनावी मुकाबला देखने को मिलेगा. दिल्ली में बीजेपी ने 1993 में पहली और आखिरी बार जीत हासिल की थी. दिल्ली में 1993 में विधानसभा का गठन हुआ था और पहली बार चुनाव करवाए गए. इस चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल की. 49 सीटें जीती. कांग्रेस को केवल 14 सीटें मिली थीं. हालांकि, बीजेपी को पांच कार्यकाल के कार्यकाल में अपने तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे.

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बीजेपी से सबसे पहले मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने थे. वे करीब 27 महीने ही पद संभाल सके और इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद साहिब सिंह वर्मा सीएम बनाए गए. वे 31 महीने से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे. आखिरी में सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की सीएम बनीं और नतीजे आए तो कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता छीन ली. इसके बाद 1998, 2003 और 2008 के चुनावों में कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रहा. 2013 के चुनाव में आप ने कांग्रेस को किनारे लगाया और सत्ता की चाबी थाम ली.

1998 के चुनाव में क्यों हारी बीजेपी?

साल 1998 के अंत में दिल्ली में दूसरी बार विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी. उस वक्त प्याज के दाम आसमान छू रहे थे. 60 से 80 रुपये प्रति किलो इसकी कीमत पहुंच गई. जनता बहुत नाराज थी. विपक्ष को सरकार पर तीखे हमले करने का सुनहरा मौका मिल गया था. दिल्ली में उस वक्त बीजेपी की सरकार थी, और मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के नेतृत्व में काम कर रही थी. हालांकि, पार्टी के अंदरूनी संगठन में भी असंतोष और कलह साफ दिख रही थी. बीजेपी नेतृत्व को यह महसूस हुआ कि जनता के गुस्से को शांत करने और चुनावी परिणामों पर संभावित नकारात्मक असर को कम करने के लिए मुख्यमंत्री बदलना एक कारगर कदम होगा.

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इस बदलाव के जरिए पार्टी को उम्मीद थी कि वह जनता का विश्वास दोबारा जीत सकेगी. चुनावी समीकरण अपने पक्ष में कर पाएगी, लेकिन यह प्रयास चुनावी मैदान में कितना सफल होगा, इसे लेकर अनिश्चितता बनी हुई थी. जनता की नाराजगी और प्याज के बढ़ते दामों का मुद्दा उस समय चुनावी राजनीति का प्रमुख केंद्र बन गया था.

BJP ने खेला महिला कार्ड, लेकिन हुई फेल

आखिरकार, बीजेपी ने बड़ा राजनीतिक दांव खेलते हुए चुनाव से ठीक 50 दिन पहले मुख्यमंत्री बदलने का फैसला किया. इस बार पार्टी ने साफ-सुथरी और तेजतर्रार छवि वाली सुषमा स्वराज को दिल्ली की कमान सौंपी. पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी ने उन्हें चुना. पार्टी का मानना था कि सुषमा एक नया चेहरा हैं, उनकी छवि बेदाग है. इसका लाभ मिलेगा. इसके अलावा, सुषमा किसी भी गुटबाजी का हिस्सा नहीं थीं, जिससे उम्मीद थी कि पार्टी के सभी गुट-जमीनी कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता तक, उनके नेतृत्व में एकजुट होकर काम करेंगे. बीजेपी को भरोसा था कि यह कदम जनता के गुस्से को कम करेगा, लेकिन ये रणनीति कारगर साबित नहीं हुई. जनता के गुस्से, महंगाई और बढ़ती प्याज की कीमतों ने चुनावी समीकरण को बीजेपी के खिलाफ मोड़ दिया. सुषमा स्वराज का मुख्यमंत्री बनना भी पार्टी को हार से बचा नहीं सका.

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साल 1998 में क्यों हार गई थी बीजेपी?

राजनीतिक विश्लेषकों ने 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के कई कारण बताए. उनका तर्क था कि सरकार के प्रति जनता में गहरा असंतोष था, जिसका असर बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक पर भी देखने को मिला. गरीब और मध्यम वर्ग ने पार्टी से मुंह मोड़ लिया, वहीं युवा, शिक्षित और सवर्ण वर्ग, जो बीजेपी का मजबूत आधार माने जाते थे, उसने भी इस बार बीजेपी से दूरी बना ली. वहीं , कांग्रेस ने दलित और मुस्लिम समुदाय के बीच व्यापक समर्थन हासिल किया. यह समर्थन बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध के साथ मिलकर, कांग्रेस के लिए एक मजबूत चुनावी माहौल तैयार करने में मददगार साबित हुआ.

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अब ऐसे में देखना है कि इस बार बीजेपी क्या दांव खेलती है. पार्टी इस बार के चुनाव में पूरी ताकत झोंक रही है. उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी गई है. इस बार कुछ दिग्गजों को बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा है. अरविंद केजरीवाल के खिलाफ प्रवेश वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं. मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ पार्टी ने रमेश बिधुड़ी को उतारा है.

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