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हत्याकांड में 40 वर्ष बाद आया फैसला, मौत के बाद 12 आरोपियों को मिली डांट-फटकार की सजा

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हत्या के इस मामले के विचारण के दौरान कुल 22 आरोपितों में से 12 की मृत्यु हो गयी. इस बीच न्यायालय में सुनवाई के लिए तारीखें पड़ती रहीं.

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संजय कुमार

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बिहार के गोपालगंज अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश 09- दिलीप कुमार सिंह की अदालत में गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला हुआ. कोर्ट के सामने रेकॉर्ड का पन्ना-पन्ना तक फट चुका था. इस कांड में कुल 22 लोग आरोपित किये गये थे. इसमे 10 आरोपित जीवित थे. उनको सजा के रूप में फटकार का दंड मिला. कोर्ट ने उनको मुक्त करने का आदेश दिया. अदालत ने हत्या के मामले में किसी भी आरोपित के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य नहीं पाया. पुलिस कोर्ट में साक्ष्य उपलब्ध नहीं करा सकी है. अदालत से मुक्त होने के बाद सभी 10 आरोपितों के चेहरे पर संतोष का भाव दिखा.

सुरेश सिंह की हुई थी हत्या, एक अन्य थे घायल

बैकुंठपुर थाना क्षेत्र के फैजुल्लाहपुर गांव के रवींद्र सिंह ने बैकुंठपुर थाने में 15 जनवरी 1983 को प्राथमिकी की थी. इसमें अपने ही गांव के 22 लोगों पर जानलेवा हमला कर कृष्णा सिंह तथा विश्वनाथ सिंह को गंभीर रूप से घायल करने एवं सुरेश सिंह की हत्या का आरोप लगाया था. इस आपराधिक मामले में बैकुंठपुर थाने में कांड संख्या 3/1983 प्राथमिकी दर्ज की गयी. आरोप पत्र आने के बाद इस मामले में सत्र न्यायालय में सुनवाई प्रारंभ की गयी. हत्या के इस मामले के विचारण के दौरान कुल 22 आरोपितों में से 12 की मृत्यु हो गयी. इस बीच न्यायालय में सुनवाई के लिए तारीखें पड़ती रहीं. आखिरकार, इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद नवम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश दिलीप कुमार सिंह की अदालत ने हत्या के इस आरोप में किसी भी आरोपित को दोषी नहीं पाया.

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जवानी में किया था अपराध, बुढ़ापे में आया फैसला

अदालत में विचारण में शामिल सभी 11 आरोपितों का सुनवाई चल रही थी. इस बीच एक माह पहले ही एक और अभियुक्त का निधन हो गया. बैकुंठपुर थाना क्षेत्र के फैजुल्लाहपुर गांव के सत्येंद्र सिंह, परमा राय, हरिकिशोर राय, अशोक सिंह, उपेंद्र सिंह, रघुनाथ सिंह, रामेश्वर सिंह, रामायण सिंह, राधा राय तथा तारकेश्वर राय को फटकार लगाने के बाद उन्हें इस मामले में मुक्त करने का आदेश दिया. मालूम हो कि सुरेश सिंह की हत्या में आरोपित कोर्ट का चक्कर लगाते- लगाते एक के बाद एक मरते चले गये. 12 आरोपितों के मौत के बाद कोर्ट का निर्णय आया. कोर्ट ने माना कि उनको सजा मिली होती, तो भी काट कर पूरा कर लिये होते. बचाव पक्ष के अधिवक्ता अबू समीम व रवींद्र सिंह व अभियोजन से एपीपी हरेंद्र प्रताप सिंह के दलीलों को सुनने के बाद निर्णय आया.

कोर्ट ने पूछा, किसकी रिपोर्ट पर करें भरोसा

गोपालगंज पुलिस की मनमानी कहें या खुद को सुपीरियर जांच एजेंसी. डीएम के आदेश को दरकिनार किया जा रहा है. तीन मामले ऐसे हैं जिसमें सीजेएम मानवेंद्र मिश्र का कोर्ट गंभीर है. कोर्ट ने पुलिस से पूछा है कि किसकी रिपोर्ट पर कोर्ट भरोसा करे. एक ही मामले में डीएम की रिपोर्ट अलग है, जबकि पुलिस की रिपोर्ट अलग है. डीएम जिस मामले में क्लीनचिट दे रहे हैं, उसके बाद पुलिस उसी मामले में गंभीर आरोप लगा कर अपनी रिपोर्ट दे रही. भोरे व नगर थाना के थानाध्यक्षों व आइओ से जवाब तलब किया गया है. कोर्ट ने कहा कि यह कैसे संभव है कि जिसे डीएम सही कह रहे हैं, उसी को पुलिस गलत कह रही है. कोर्ट को ऐसे मामले में निर्णय लेने में दुविधा हो रही है. कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है.

अनुज्ञप्ति के विरुद्ध कोई प्रतिकूल टिप्पणी अंकित नहीं : डीएम

भोरे थाना कांड संख्या-371/23 दिनांक- 30.07.23 धारा-290 भादवि एवं 30 आर्म्स एक्ट के मामले में सीजेएम कोर्ट ने डीएम से रिपोर्ट मांगी. डीएम ने अपने पत्रांक 2172 से 21 सितंबर को कोर्ट को रिपोर्ट भेजते हुए कहा कि लाइसेंसधारी कैलाश प्रसाद के विरुद्ध कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं है. वहीं कांड के आइओ शिवशंकर दुबे ने कोर्ट को छह सितंबर को बताया कि भोरे थाने के सिसई गांव के मृत्युंजय कुमार 22 वर्ष को 30 जुलाई को सोशल मीडिया में अपने चाचा कैलाश प्रसाद की राइफल को लहराने के कारण भय पैदा करने के आरोप में जब्त किया गया. मृत्युंजय को गिरफ्तार किया गया. दोनों के विरुद्ध कांड में पंजीकृत हुआ है. अनुसंधान के क्रम में वरीय पदाधिकारी के आदेशानुसार जब्त आग्नेयास्त्र की अनुज्ञप्ति का निरस्त्रीकरण प्रस्ताव भोरे थाने का ज्ञापांक- 1796 (ए)/23 दिनांक 28 अगस्त के माध्यम से डीएम के कार्यालय भेजा जा चुका है.

नगर थाने की पुलिस ने भी अपनी रिपोर्ट में उलझाया

नगर थाना कांड सं- 519 में डीएम ने अपने पत्रांक 2064/ श, दिनांक. 9 सितंबर से सीजेएम कोर्ट को रिपोर्ट भेजा कि रिवॉल्वर नं-एफजी 10376 रायफल नं-023533 अनुज्ञप्तिधारी नगर थाने के तकिया गांव के महताब आलम वर्ष 2024 तक नवीकृत है. अनुज्ञप्ति के विरुद्ध कोई प्रतिकूल टिप्पणी अंकित नहीं है. वहीं कांड के आइओ मंकेश्वर महतो ने अपनी रिपोर्ट 18 सितंबर को कोर्ट को सौंपते हुए कहा कि महताब आलम के लाइसेंस, रद्द करने के लिए प्रस्ताव नगर थाना निर्गत पत्रांक 32003 दिनांक 23.8.23 के माध्यम से डीएम को भेजी जा चुकी है. अभी डीएम का मंतव्य अप्राप्त है.

डीएम के आदेश के बाद भी रिलीज नहीं हुई बंदूक

विशंभरपुर थाने के तिवारी मटिहनियां गांव के रहने वाले पूर्व मुखिया अनिल मिश्र ने लोकसभा चुनाव 2019 के दाैरान अपनी बंदूक गन हाउस में जमा करायी. इस बीच उनका लाइसेंस का किताब घर में ही कहीं गुम हो गया. वर्ष 2022 में लाइसेंस की नयी किताब डीएम के द्वारा जारी कर दी गयी. अब बंदूक को दुकान से रिलीज कराने के लिए श्री मिश्र चक्कर काट कर थक-हार कर बैठ गये. उनकी बंदूक रिलीज नहीं हुई. उनकी बंदूक पर कोई आरोप भी नहीं था.

डीएम ने कहा, मामले की होगी जांच

डीएम डॉ नवल किशोर चौधरी से जब इस संबंध में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच कर दोषी पर कार्रवाई की जायेगी.

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