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मगध में होली खेलने की परंपराएं आज भी कायम, …जानें कैसे खेलते हैं होली?

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होली खेलने की अनूठी परंपरा, Unique tradition of playing Holi

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पटना : देशभर में होली मनाने को लेकर तरह-तरह की परंपराएं और रीति रिवाज है. बरसाने में होली खेलने का अलग रिवाज है. वहीं, मथुरा-वृंदावन में वर्षों से अपनी परंपराओं के त‍हत होली मनायी जाती रही है. उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक होली खेलने वालों का अपना-अपना अंदाज रहा है, लेकिन बात जब मगध क्षेत्र की करें तो यहां की दो परंपराएं ऐसी हैं, जो अलहदा है.

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पहला, मगध क्षेत्र के नालंदा जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां होली के दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध भी होली मनाते हैं. और दूसरा, नवादा के साथ-साथ गया, औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल जिले में होली के अगले दिन बुढ़वा होली मनाने की परंपरा है.

बुढ़वा होली खेलने की परंपरा जारी

बुढ़वा होली की खासियत है कि नवादा, गया, औरंगाबाद, अरवल, जहानाबाद और उसके आसपास के क्षेत्रों में पूरे उत्साह के होली के दूसरे दिन भी लोग होली मनाते हैं और किसी भी मायने में इसकी छटा होली से कम नहीं होती. इस दिन मगध क्षेत्र में झुमटा निकालते हैं और होली गाने वाले गांव और शहर के मार्गों पर होली के गीत गाते हुए अपनी खुशी का इजहार करते हैं. इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है. ज्यादातर लोग बुढ़वा होली के बारे में मानते हैं कि जमींदारी के समय में मगध के एक नामी गिरामी जमींदार होली के दिन बीमार पड़ गये थे. जमींदार जब दूसरे दिन स्वस्थ हुए तो उनके दरबारियों ने होली फीकी रहने की चर्चा की. जमींदार ने दूसरे दिन भी होली खेलने की घोषणा कर दी. इसके बाद मगध की धरती पर बुढ़वा होली मनाने की परंपरा शुरू हो गयी.

ग्रामीण खेलते हैं भगवान बुद्ध के साथ होली

भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी से छह किमी दूर है तेतरावां सबसे पहले हम आपको उस गांव के बारे में बताते हैं जहां भगवान बुद्ध के साथ ग्रामीण होली खेलते हैं. इस परंपरा में कई सालों से कोई बदलाव नहीं हुआ है. यह गांव भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी से छह किमी दूर तेतरावां है. तेतरावां गांव की अनूठी परंपरा के मुताबिक यहां ग्रामीण बुद्ध के साथ भी होली खेलते हैं. स्थानीय लोग होली का समापन बुद्ध की विशाल काले पाषाण की मूर्ति के साथ सामूहिक रूप से रंग-गुलाल लगाकर करते हैं. स्थानीय ग्रामीण बुद्ध को भैरो बाबा के नाम से भी पुकारते हैं. स्थानीय सत्तर वर्षीय बुजुर्ग कृष्णवल्लभ पांडेय कहते हैं कि सामूहिक पूजा के पहले भगवान बुद्ध की मूर्ति को अच्छी तरह से धोया जाता है, जिसके बाद घी का लेप लगाकर सफेद चादर चढ़ायी जाती है. उसके बाद लोग सामूहिक होली गान गाते हैं. यह परंपरा बरसों से यहां पर जारी है.

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