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Success Story बिहार की इस बेटी ने कर दिया कमाल,सबसे कम समय में एवरेस्ट बेस कैंप पर पहुंचने वाली बनी पहली महिला

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Success Story एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचने के लिए आम लोगों को 12 दिन का समय लगता है. वे पटना से काठमांडु पहुंची. फिर लुकला से 28 अक्तूबर को सुबह 5.28 बजे वे एवरेस्ट बेस कैंप के सफर के लिए निकली थी. पहली बार किसी महिला ने इतने कम समय में 104 किमी की दूरी तय की है.

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जूही स्मिता,पटना

छपरा की रहने वाली साइकिलिस्ट व पर्वतारोही सबिता महतो ने लुकला से एवरेस्ट बेस कैंप(5364 मीटर) तक का सफर मात्र 64 घंटे में पूरा कर दुनिया की पहली महिला बनी हैं. उन्होंने 104 किलोमीटर का सफर 12 दिनों के बजाय 64 घंटे यानी की दो दिन 16 घंटे में पूरा कर एक नया रिकॉर्ड कायम किया है. एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचने के लिए आम लोगों को 12 दिन का समय लगता है. वे पटना से काठमांडु पहुंची. फिर लुकला से 28 अक्तूबर को सुबह 5.28 बजे वे एवरेस्ट बेस कैंप के सफर के लिए निकली थी.

इस दौरान उन्होंने दूधकोशी नदी के साथ-साथ ट्रैकिंग करते हुए नामचे बाजार, 3,440 मीटर (11,290 फीट), तेंगबोचे, डिंगबोचे(13980 फीट), लोबुचे होते हुए एवरेस्ट बेस कैंप गयी. इसके बाद इन्हीं रास्तों से वापस वे 30 अक्तूबर की रात 9.32 बजे वापस लुकला पहुंची. इस सफर को पूरा करने में पाथ फाउंडेशन का भरपूर सहयोग मिला. सबिता का सपना है कि वे माउंट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा लहराये जिसे वे अगले साल पूरा कर सकती हैं. इसके लिए उन्हें सरकार और आम लोगों से मदद की आवश्यकता है.

दो रास्तों से तय कर सकते हैं एवरेस्ट बेस कैंप

सबिता बताती हैं कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा भी है. इस प्रकार इसके दो बेस कैंप हैं. एक दक्षिणी बेस कैंप जो कि नेपाल में स्थित है और दूसरा उत्तरी बेस कैंप जो कि तिब्बत में स्थित है. इन बेस कैंपों का प्रयोग पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट के पर्वतारोहण के लिए करते हैं.उन्होंने दक्षिणी बेस कैंप से पर्वतारोहण किया.यहां तक पहुंचने के लिए काफी लंबे पैदल रास्ते का प्रयोग किया जाता है और भोजन-आपूर्ति आदि वहां के स्थानीय निवासी शेरपा उपलब्ध कराते हैं. वहीं दूसरी ओर, उत्तरी बेस कैंप तक सड़क बनी हुई है. बेस कैंपों पर पर्वतारोही कई-कई दिनों तक रुकते हैं ताकि वातावरण के अनुकूल हो सकें.

नौकरी छोड़ अपने पैशन को किया फॉलो

सबिता बताती हैं वे एक साधारण घर से हैं. जहां उनका घर पिता की ओर से सड़क किनारे लगाये जानेवाले मछली के दुकान से चलता है. ऐसे में उनके परिवार में लड़कियों को लेकर आजाद ख्यालात नहीं थे. उन्हें हमेशा से दुनिया को एक्सप्लोर करना था. यही कारण हैं कि उन्होंने टाटा स्टील में नौकरी छोड़कर साइकिलिंग करने का मन बनाया. घरवालों को विरोध होने के बावजूद पटना एनसीसी, कम्यूनिटी ट्रैफिक पुलिस के धीरज कुमार और ब्रिगेडियर रणविजय सिंह के प्रोत्साहन पर उन्होंने साल 2017 में राज्य में साइकिल से भ्रमण करने शुरुआत की और ब्रिगेडियर रणविजय सिंह के प्रोत्साहन पर उन्होंने साल 2017 में राज्य में साइकिल से भ्रमण करने शुरुआत की.

सिर्फ राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई जगहों पर कर चुकी है चढ़ाई

साल 2017 में अकेले साइकिल से 173 दिनों में सभी 29 राज्यों को कवर करने वाली पहली महिला बनीं. साल 2016-2019 तक 7000 मीटर से ऊपर के कई पहाड़ों पर चढ़ाई की है. मैंने दुनिया की सबसे ऊंची मोटर योग्य सड़क, उमलिंगला (19064 फीट) तक पहुंचने वाली पहली साइकिलिस्ट हूं मैंने स्पीति में 320 किमी दौड़ लगाई है 2019 में माउंट त्रिशूल, गढ़वाल (7120 मीटर) पर चढ़ाई की. 2022 में दुनिया की सबसे ऊंची मोटर योग्य सड़क (19300 फीट) उमलिंग ला दर्रा पर साइकिल से तय किया. मैंने भारत के पश्चिमी मोर्चे से ढाका तक 5900 किलोमीटर साइकिल चलायी है.5 सितंबर 2023 को मैंने मनाली से समुद्र तल से उमलिंगा ला दर्रे (19024 फीट) तक 570 किमी दौड़ कर पहुंची हूं. मैं ऐसा करने वाली दुनिया की पहली महिला बन गयी हूं.

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