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मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर विशेष : नीतीश कुमार ने समाजवादी राजनीति को नये मूल्यों के साथ गढ़ा

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इसी मायने में नीतीश कुमार व्यावहारिक समाजवाद के प्रणेता हैं. वे अक्सर कहते हैं-हम काम करते हैं, हमारा काम ही बोलता है. यानी वे सिर्फ कहने में नहीं, करने में विश्वास करते हैं. यही ‘कथनी’ और ‘करनी’ में एकता है, जो व्यवावहारिक समाजवाद की पहली सीढ़ी है.

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प्रो रामवचन राय

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(जदयू के एमएलसी)

‘समाजवाद’ एक राजनीतिक विचार दर्शन है, जिसका इतिहास लगभग सवा दो सौ वर्षों से कुछ अधिक का है. मुझे लगता है कि राजनीति की प्रयोगशाला में प्रतिभा और परिश्रम के योग से लोक कल्याणकारी विचारों के प्रयोग का जो प्रतिफल या परिणाम होता है, वही ‘व्यावहारिक समाजवाद’ है. यह सिद्धांत का सगुण रूप है, जो काम के रूप में दिखायी पड़ता है. इसी मायने में नीतीश कुमार व्यावहारिक समाजवाद के प्रणेता हैं. वे अक्सर कहते हैं-हम काम करते हैं, हमारा काम ही बोलता है. यानी वे सिर्फ कहने में नहीं, करने में विश्वास करते हैं. यही ‘कथनी’ और ‘करनी’ में एकता है, जो व्यवावहारिक समाजवाद की पहली सीढ़ी है.

नीतीश कुमार अपने कॉलेज जीवन में संयुक्त सेाशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के युवा संगठन ‘युवजन सभा’ के सदस्य थे. जाहिर है, लोहिया के विचारों से प्रभावित थे. डॉ राममनोहर लोहिया के प्रयास से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ था. उनका एक भाषण नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में सुना था और उनके प्रशंसक हो गये थे.

सन 1967 में डॉ लोहिया के प्रयास से गैर कांग्रेसवाद सफल हुआ था, जिसके फलस्वरूप आठ हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की पराजय हुई थी और विभिन्न दलों के गठबंधन से संविद (संयुक्त विधायक दल) की सरकारें बनी थीं. इनमें डॉ लोहिया की पार्टी संसोपा की प्रमुख भूमिका थी.बिहार में इसका व्यापक जनाधार था और संगठन भी मजबूत था. विश्वविद्यालयों में समाजवादियों के संगठन ‘छात्र-सभा’ और ‘युवजन सभा’ की काफी सक्रियता थी. यह सन 1967 से 1974 के बीच का दौर था.

फिर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सन 1974 में बिहार में आंदोलन शुरू हुआ. जेपी ने आंदोलन के लिए जो संचालन समिति बनायी, उसमें नीतीश कुमार एक प्रमुख सदस्य थे. इस तरह लोहिया के विचार दर्शन के प्रभाव में नीतीश कुमार के भीतर समाजवादी राजनीति का जो बीज पड़ा, वह अंकुरित होकर जेपी के संपर्क में पल्लवित और विकसित हुआ. यह एक युवा इंजीनियर के कायांतरण का दौर था, जिसमें समाज सेवा का भाव और समाजवाद विचार आकार ग्रहण करने लगा था.

छात्र जीवन से ही अध्ययनशील, जिज्ञासु, शालीन, मितभाषी और गंभीर प्रकृति के नीतीश कुमार जयप्रकाश और कर्पूरी ठाकुर दोनों के अत्यंत प्रिय रहे. इन दोनों की राजनीतिक प्रयोगशाला में उनका व्यक्तित्व निखरा और उन्होंने जनसेवा को अपना जीवन मंत्र बना लिया. लेकिन, राजनीति के लंबे सफर में इन्हें अनेक तरह के खट्टे-मीठे अनुभव हुए. कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. पर अकूत धैर्य के धनी नीतीश कुमार अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे.

वे अक्सर कहते हैं कि मुझे बिहार के लोगों को अपनी बात समझाने में 11 साल लगे. उन्होंने न्याय यात्रा शुरू की और बिहार के कोने-कोने में गये. लोगों को बताया कि बिहार क्यों पिछड़ता गया है. इसकी छवि दागदार क्यों हुई है.

गांधी, लोहिया, जेपी और कर्पूरी ठाकुर का सपना यहां क्यों बिखर गया है. धीरे-धीरे लोग उनकी बात समझने लगे और वर्ष 2005 में उन्हें सेवा करने का मौका मिला. तबसे वे राज्य की जनता की सेवा में लगे हैं और एक पिछड़े सूबे को न सिर्फ विकास की पटरी पर ला दिया है, बल्कि बिहार अब विकसित राज्यों की कतार में पहुंचने के लिए रफ्तार पकड़ चुका है.

भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार ने इस मिथक को भी तोड़ दिया है कि समाजवादी लोग सरकार नहीं चला सकते. उनके नेतृत्व में 2005 में बिहार में एनडीए सरकार बनी और 15 साल पूरे कर 2020 के चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपना चौथा कार्यकाल शुरू किया है. यह इस बात का सबूत भी है कि वे गठबंधन चलाना अच्छी तरह जानते हैं.

इन दोनों कसौटियों पर नीतीश कुमार की जो सफलता है, वह उन्हें व्यावाहारिक समाजवाद का प्रणेता सिद्ध करती है. मेरी इस मान्यता के कुछ ठोस प्रामाणिक आधार हैं, जिनके परिप्रेक्ष्य में उनकी राजनीतिक दृष्टि और कार्य योजनाओं का विवचन और विश्लेषण किया जा सकता है.

समाजवादी राजनीति के एकजुट होने और बिखरने की लंबी घटनाएं हैं. शायद नीतीश कुमार के जेहन में ये सारी बातें थीं. वे इस मिथक को तोड़ना चाहते थे. इसलिए बिहार की सत्ता में आने के साथ व्यावहारिक स्तर पर उन्होंने काम शुरू किया. विधि-व्यवस्था में सुधार से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, कृषि आदि के साथ आधारभूत संरचना का निर्माण किया. शराबबंदी, बाल विवाह और दहेज प्रथा पर रोक जैसे समाज सुधार के ठोस काम हुए, जिसका व्यापक प्रभाव पड़ा.

अत: नीतीश कुमार की इस कामयाबी को मैं ‘व्यावहारिक समाजवाद’ का नाम देना चाहूंगा. वैज्ञानिक समाजवाद, केवियन समाजवाद, लोकतांत्रिक समाजवाद-इन सबके सारतत्व के साथ गांधी, लोहिया, जयप्रकाश, बाबा साहब आंबेडकर और कर्पूरी ठाकुर की सोच और कार्य प्रक्रिया का देसी संस्करण है-व्यावहारिक समाजवाद. यह समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय की अवधारणा को राष्ट्रीयता के धागे से पिरो कर सेवा भाव से जन-समाज को अर्पित करने का उमक्रम है. नीतीश कुमार ने अपने विचार और कर्म के माध्यम से वर्तमान भारतीय राजनीति में इस व्यावहारिक समाजवाद की बुनियाद रखी है.

नीतीश कुमार के सक्रिय राजनीतिक जीवन का प्रस्थान बिंदु जेपी का संपूर्ण क्रांति आंदोलन है. वैसे इनके मानस पटल पर लोहिया के विचारों की जो बुनियाद पड़ी थी, जेपी के सान्निध्य में वह समाजवादी चेतना अधिक समृद्ध होती गयी. इसके बाद सन 1985 में विधायक के रूप में इनका संसदीय जीवन शुरू हुआ, तो समाजवादी सोच को एक नये परिप्रेक्ष्य में देखने, समझने और व्यावहारिक जीवन में उतारने का अवसर मिला.

फिर तो लोकसभा के सदस्य के रूप में, केंद्र सरकार के मंत्री के रूप में और वर्ष 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में यह यात्रा निरंतर चल रही है और अपनी सोच व वैचारिक प्रतिबद्धता को विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से मूर्त रूप देने का क्रम भी सामानांतर चल रहा है.

अत: सार्वजनिक जीवन के स्वाभाविक अनुभव और संसदीय जीवन में योजनाओं और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने की प्रक्रिया व गठबंधन राजनीति में परस्पर सहयोग और संतुलन बनाये रखने की सूझ-बूझ और क्षमता ने नीतीश कुमार को व्यावहारिक समाजवाद का पुरोधा बनाया है.

व्यावहारिक समाजवाद के प्रमुख तत्व

यूं समाजवाद सामूहिकता का विचार दर्शन है, किंतु इसकी शुरुआत व्यक्ति में स्वयं के बदलाव से होती है. फिर वह सामाजिकता के बृहत्तर सागर में बूंद का विस्तार बन जाता है. व्यावहारिक समाजवाद का यह एक सुलभ और स्वीकार्य ढांचा है. इसके कुछ प्रमुख तत्व इस प्रकार है-

1. सेभा भाव, 2. विश्वसनीयता, 3.दूरदर्शिता, 4.योग्यता, 5. कार्य क्षमता, 6.व्यवहार पटुता, 7.सौम्यता, 8.सादगी, 9.समन्वयवादिता और 10. त्याग भावना.

व्यावहारिक समाजवाद के ये 10 प्रमुख लक्षण माने जा सकते हैं. इन मानकों के आधार पर नीतीश कुमार के व्यावहारिक समाजवाद को समझा जा सकता है. उनकी राजनीतिक सफलता की बुनियाद में उनके व्यावहारिक समाजवाद के ये तत्व किसी-न-किसी रूप में मौजूद रहे हैं.

भारतीय राजनीति में जिस गठबंधन धर्म की शुरुआत 1967 के दशक में डॉ राम मनोहर लोहिया ने की थी और राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी मूल्यों को विमर्श के केंद्र में खड़ा किया था, उन्हें नीतीश कुमार ने व्यावहारिक समाजवाद का विस्तार देकर न्याय के साथ विकास का विश्वसनीय और टिकाऊ आधार स्तंभ बनाया है. राजनीतिक विश्लेषकों और समाज विज्ञानियों के लिए यह शोध का विषय बन सकता है.

Posted by Ashish Jha

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