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Buddh purnima 2021: 2500 साल पुरानी बुद्ध की सीख से हारेगा कोरोना, अनुशासन, आत्मबल और करुणा से फिर मुस्कुरायेगी जिंदगी

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विनय पिटक को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि बुद्ध की बातें मौजूदा समय के बारे में ही कही गयी हों. ढाई हजार साल पहले बुद्ध ने अनुशासन, आत्मबल और करुणा की बात की थी. अभी कोरोना काल में इसकी अहमियत समझ में आ रही है.

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पवन प्रत्यय, गया. विनय पिटक को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि बुद्ध की बातें मौजूदा समय के बारे में ही कही गयी हों. ढाई हजार साल पहले बुद्ध ने अनुशासन, आत्मबल और करुणा की बात की थी. अभी कोरोना काल में इसकी अहमियत समझ में आ रही है. बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों यानी त्रिपिटक में संकलित हैं. इनमें से विनय पिटक हमें बताता है कि जीवन में अनुशासन बेहद जरूरी है.

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अभी हम जीवन में अनुशासन लाकर ही काफी हद तक महामारी पर काबू पा सके हैं. जीवन में अनुशासन बेहतर जिंदगी की कसौटी है, तो ठीक इसी तरह आत्मबल कठिन समय में नैया पार करने की पतवार है. बुद्ध ने अपने उपदेशों में आत्मबल पर भी काफी जोर दिया था.

कोरोना काल में बहुतेरे लोग आत्मबल खो रहे हैं, मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं, ऐसे समय में बुद्ध के बताये मार्ग को आत्मसात कर हम अपने को मजबूत कर सकते हैं. बुद्ध जयंती का बड़ा संदेश यही है. इसे हमने अपने जीवन में उतार लिया, तो जिंदगी ‘लाफिंग बुद्धा’ की तरह खिल उठेगी.

करुणा, दया, सेवा से ही बचेंगे हम और समाज

बुद्ध के संदेश के केंद्र में मुख्य रूप से करुणा, दया और सेवाभाव थे. समाज में करुणा के समावेश से ही बेहतर दुनिया की कल्पना की जा सकती है. एसपी जैन कॉलेज, सासाराम के हिंदी के प्रो राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि बुद्ध के धर्म को धम्म कहा जाता है. सवा दो हजार वर्ष पहले सम्राट अशोक ने धम्म का ग्रीक में शाब्दिक अर्थ दिखवाया था, जिसका हिंदी में अर्थ करुणा होता है.

यूएन ने भी माना, बुद्ध के ज्ञान से रुकेगा कोरोना

पिछले साल बुद्ध पूर्णिमा के दिन संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने पूरी दुनिया से बुद्ध के दिये गये संदेशों को पालन करने की अपील की थी. यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा था कि कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए बुद्ध के ज्ञान को अपनाना होगा.

‘कार्य और कारण’ के सिद्धांत को भूलना नहीं है

नवनालंदा महाविहार के पाली के सहायक प्राध्यापक डॉ अरुण कुमार यादव कहते हैं कि बुद्ध प्रकृति प्रेमी थे. प्रकृति के साथ खिलवाड़ ने भी कई बीमारियों को न्योता दिया है. कोरोना काल में ऑक्सीजन संकट के बाद इसका एहसास सबको हुआ है.

अतीत में भी लड़ कर दोबारा खड़े हुए हैं हम

1918 में पूरे विश्व में स्पैनिश फ्लू का कहर चरम पर था. मशहूर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पत्नी, बेटी समेत कई रिश्तेदारों की मौत हो गयी थी. निराला ने ‘कुल्ली भाट’ में लिखा था कि लोगों के दाह संस्कार के लिए लकड़ियां कम पड़ गयी थीं. लेकिन एेसे हालात के बावजूद हम इससे लड़े और दोबारा खड़े हुए.

Posted by Ashish Jha

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