विद्यापतिनगर : आम की विभिन्न प्रजाति के फलन के लिए जाने जाने वाले बगीचे इस वर्ष अपने बागवान को दगा दे गया. इससे होने वाली आय पर पूर्ण होने वाले सपने मजबूरी के आलम में भविष्य की ओर धकेल दिये गये. इससे कहीं शहनाई की सुमधुर थम सी गयी तो कई नये कार्य ठमक से गये. आलम है प्रखंड के बड़े भू-भाग में फैले बैशा बगीचा का. पांच सौ से अधिक एकड़ में इस बगीचा की पहचान बिहार सहित झारखंड व बंगाल राज्य में है. यह आम के विभिन्न उन्नत प्रभेद के लिए जाना जाता है. गत कुछ वर्षों को छोड़ इस बगीचा में हर वर्ष भरपूर मंजर के बाद टिकोले व फल होते थे. इधर, कुछ वर्षों से मौसम की बेरुखी कहें या फिर फसल चक्र का प्रवर्तित स्वरूप. पेड़ों के मंजर में एक वर्ष का ठहराव देखा जा रहा है. एक वर्ष गैप होने के बाद दूसरे वर्ष मंजर आने के नये सिलसिले से इस बगीचा में मंजर से पूर्व फलों के व्यवसायी इसका दो वर्ष का सौदा करते हैं. इससे बागवानों के एक वर्ष की आय मारी जाती है. बताया जाता है कि बागवान किसान फलदार पेडों के जरिये अपने रोजमर्रे की आवश्यकताओं सहित ग्रामीण परिवेश में सांस्कृतिक, सामाजिक व धार्मिक कार्य को सम्पन्न करते आये हैं. जहां उनके बाग में मंजर का नहीं आना उनके सपने को टूटने जैसा हो गया है. वहीं दूसरा पहलू किसानों को रोमांचित ही नहीं अच्छे दिन आने का भरोसा दिला रहा है. मंजर से उदास बागवान को कोमल नये पत्तों से हरे भरे आम के पेड़ आने वाले दिनों में आस बंधा रही है.
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मंजर से उदास बागवान को फलदार पेड़ बंधा रही आस
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विद्यापतिनगर : आम की विभिन्न प्रजाति के फलन के लिए जाने जाने वाले बगीचे इस वर्ष अपने बागवान को दगा दे गया.
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