Samastipur: समस्तीपुर. अपनी वाणी व सहज अंदाज से लोगों के दिलों को जीतने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर आज भी जन-जन के दिलों में रचे-बसे हैं. उन्हें भारत रत्न दिये जाने से उनको नजदीक से जानने वाले अभिभूत हैं. शहर से सटे कर्पूरीग्राम में जन्म लेकर इसी मिट्टी में पले-पढे़ व बढ़ते हुए राजनीतिक फलक पर छाने वाले कर्पूरी ठाकुर ने गरीबी को नजदीक से देखा था. यही वजह थी कि वह सदैव ऐसे ही लोगों की आवाज बनते थे. उनके भाषण को सुननेवाले बुजुर्ग कहते हैं कि जब वह माइक पर बोलना शुरू करते थे, तो धीरे-धीरे भीड़ जुटने लगती थी. मोरवा गांव की बेटी और मुजौना गांव की बहू 80 वर्षीया निर्मला देवी बताती हैं कि जब वह छोटी थीं, तो उनके पिता गिरधर झा के घर भी वे आया करते. बड़ी सादगी से मिलते. बोरी पर भी बैठने में संकोच नहीं करते. घंटों समाज व देश की दशा-दिशा पर बातें करते. उनकी बातचीत सुनने के लिए लोगों की भीड़ जुट जाती थी.
विरोध करने पर बुरा नहीं मानते थे जननायक
![Samastipur: सादगी की पहचान थे कर्पूरी ठाकुर, गांव की होली में डंफा बजाते थे जननायक 1 Sam2](https://www.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2024/03/sam2-1024x574.jpg)
सेवानिवृत्त प्रोफेसर मुजौना गांव निवासी शिवाकांत पाठक कहते हैं कि वे जनसंघ में थे और जननायक समाजवादी. द्वितीय राजभाषा को लेकर दरभंगा जिला स्थित एमएल एकेडमी स्कूल में विरोध किया गया, परंतु उन्होंने इसका तनिक भी बुरा नहीं माना. उनकी बातें सुनीं. उन्हीं के गांव के 90 वर्षीय महेश्वर सिंह कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर उनसे बड़े थे. उन्हें कुश्ती व डंफा बजाने का शौक था. वे प्रत्येक वर्ष होली में अपने गांव में होते थे. यहां तक की मुख्यमंत्री रहते हुए भी वे होली के दिन गांव में लोगों के बीच रह कर डंफा बजाया करते थे. शनिवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में जननायक को भारत रत्न दिये जाने पर इनके गांव के लोगों में खुशी और गर्व है.