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संवेदनहीन होते सामाजिक व्यवस्था पर किया है करारा प्रहार

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साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था मैथिली शब्द लोक के तहत रविवार को देर शाम प्रमंडलीय पुस्तकालय में ललन झा रचित दो कविता संग्रह मैथिली में सुन भेल गाम व हिंदी में उनकी याद में का लोकार्पण व परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया गया.

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प्रतिनिधि, सहरसा. साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था मैथिली शब्द लोक के तहत रविवार को देर शाम प्रमंडलीय पुस्तकालय में ललन झा रचित दो कविता संग्रह मैथिली में सुन भेल गाम व हिंदी में उनकी याद में का लोकार्पण व परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध भाषा विचारक डॉ राम चैतन्य धीरज ने की. मुख्य अतिथि नगर निगम महापौर बैन प्रिया, मैथिली कवि अरविंद मिश्र नीरज, समाजशास्त्र के सहायक प्रो डॉ अक्षय कुमार चौधरी, सर्वनारायण सिंह रामकुमार सिंह महाविद्यालय में हिंदी के सहायक प्रो डॉ धर्मव्रत चौधरी, पीजी सेंटर हिंदी विभाग के सहायक प्रो डॉ श्रीमंत जैनेंद्र, साहित्यकार विवेकानंद झा, प्रमंडलीय पुस्तकालय के प्रशासकीय निदेशक मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह मुकेश, साहित्यकार रणविजय राज, आनंद झा, दिलीप कुमार दर्दी व मंच संचालक साहित्यकार मुख्तार आलम व विभिन्न गांवों से आये हुए साहित्यानुरागी व वरिष्ठ नागरिकों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया. इस अवसर पर डाॅ राम चैतन्य धीरज ने कहा कि उनकी समझ से दर्शन के बिना साहित्य में भटकाव आ जाता है. ललन जी की कविता में आत्म संघर्ष का व्यापक प्रभाव है. समाज व इसके बिखरते स्वरूप व संवेदनहीन होते सामाजिक व्यवस्था पर इन्होंने करारा प्रहार करते बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से संघर्ष को आयाम दिया है. ललन झा की कविता बदलते समय व्यवस्था का मार्मिक दस्तावेज है. मुख्य अतिथि महापौर बैन प्रिया ने कवि ललन द्वारा सभी जाति व समुदाय के लोगों के बीच सद्भावना व सौहार्द के लिए काम करने के विषय वस्तु पर लिखी कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया. उन्होंने ललन जी के काव्य कर्म की सराहना करते नयी पीढ़ी के लिए प्रेरक बताया. कवि नीरज ने कहा कि ललन की कविताएं ग्राम जीवन की समस्याओं का मौलिक विवरण प्रस्तुत करती है. वे इनके समाधान पक्ष को भी अपने लेखन में समायोजित करते तो कविताओं की प्रासंगिकता और भी विलक्षण हो जाता. साहित्यकार मुक्तेश्वर मुकेश ने कहा कि यह कवि ललन की पहली कृति है. लेकिन इसमें संकलित सभी कविताएं काफी गंभीर हैं. समाज की अनेक समस्याओं को उजागर करके उसके समाधान के लिए प्रेरित करती है. डॉ अक्षय कुमार चौधरी ने कहा कि लेखक ने समय परिवर्तन की प्रक्रिया के दो कालखंड में गांव के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में हो रहे बदलावों का वर्णन किया है. डॉ धर्मव्रत चौधरी ने कहा कि ललन झा की कविताएं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विमर्श है. डॉ जैनेन्द्र ने कहा कि ललन जी की कविता संग्रह में विविधता है. एक ऐसे समय में जब कोई कवि समय के कठिन यथार्थ को कहने से बचना चाहता है. वैसे समय में ललन जी बेबाकी से अपनी बात कहते हैं. यह संग्रह अपनी मौलिकता के लिए भारत के मूर्धन्य हिंदी के साहित्यकारों की रचनाओं के समकक्ष है. विवेकानंद झा ने समाज में लड़कियों की घटती संख्या के कारण लड़कों के विवाह में हो रही समस्या व बड़ी संख्या में बूढ़े होते वरों पर अपनी कविता में चिंता व्यक्त करने के लिए कवि ललन की काफी सराहना की. साहित्यकार रणविजय राज ने कहा कि कवि ललन सच्चे अर्थों में एक कम्युनिस्ट व जनवादी कवि हैं. जनसरोकार के मुद्दों को लेकर वह सड़क पर काम करने वाले जननेता भी हैं. साहित्यकार आनंद झा ने उनकी याद में कविता संग्रह की समीक्षा करते कहा कि इसमें संकलित कविताएं उनकी आह से निकली आवाज है. मंच संचालन करते कवि मुख्तार आलम ने कहा कि ललन जी की कविता के रग-रग में प्रगतिशीलता, समाज में हो रहे नैतिकता व सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण, बुजुर्गों के प्रति संवेदनहीनता, पर्यावरणीय समस्या को उठाकर नई पीढ़ी का मार्गदर्शन किया है. इसको बचाने के लिए अपनी कविता के माध्यम से प्रेरित किया है. इस अवसर पर डॉ. रमण झा, गिरीद्र मोहन झा, इंदु झा, कन्हैया झा, माधव सिंह, मनोज पाठक, सुबोध कुमार चौधरी, मुकेश कुमार सिंह, गनगन चौधरी, सीएम झा, अरविंद सिंह, निरंजन सिंह, मोनू झा सहित अन्य ने भी संंबोधित करते ललन झा के काव्य कर्म की सराहना की. धन्यवाद ज्ञापन कवि ललन ने किया.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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