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Purnia news : खेती कर रहे बिहार के किसान, फसल का दाम तय कर रहा बंगाल

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Purnia news : यहां जूट मिल नहीं होने के कारण किसानों को उसका लागत मूल्य भी नहीं मिलता.

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Purnia news : बदलते दौर में गोल्डेनफाइवर यानी जूट की खेती से किसान मुंह मोड़ने लगे हैं. यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि खेती बिहार के किसान कर रहे, पूंजी और मेहनत इनकी लग रही, फसल तैयार कर रेशा ये निकाल रहे, पर उसका दाम बंगाल तय कर रहा है. नतीजा यह है कि बिहार के उपजाये जूट के दाम पर बंगाल का एकाधिकार बना हुआ है. किसानों की फसल जब खेतों में होती है, तब जूट के दाम उछाल खाते नजर आते हैं, पर जब तक तैयार होकर जूट बाजार तक पहुंचता है उसके दाम गिर जाते हैं. नतीजतन किसानों को लागत पर भी आफत आ जाती है. हालांकि जूट की फसल अभी खेतों से निकल कर तैयार नहीं हुई है, लेकिन जूट उगानेवाले किसान दाम को लेकर अभी से सहमे हुए हैं.

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जूट के कुल उत्पादन की 80% खेती कोसी में

देश में जूट के कुल उत्पादन की 80 फीसदी खेती पूर्णिया और कोसी में होती है. हालांकि गुजरते वक्त के साथ जूट की खेती का रकबा सिमटता गया. अभी भी कैश क्रॉप के रूप में इसकी खेती हो रही है. किसान मानते हैं कि उनके लिए जूट फिक्स डिपॉजिट जैसी फसल है. जूट की रकम बेटियों के ब्याह, मांगलिक कार्यक्रम अथवा किसी विपत्ति के मौके पर काम आती है. जूट पर किसानों का वर्तमान ही नहीं, भविष्य की भी उम्मीदें टिकी होती हैं. यही वजह है कि पूर्णिया और कोसी प्रमंडल को आज भी जूट बहुल क्षेत्र माना जाता है. यही वह फसल है, जिस पर बेटियों का ब्याह, महाजन की कर्ज अदायगी और घर की अन्य जिम्मेवारियों के निर्वाह का भरोसा टिका होता है. हालांकि प्लास्टिक बोरे के बढ़ते प्रचलन से जूट की डिमांड कुछ कम हुई है, पर नकदी फसल होने के कारण जूट की खेती अभी भी हो रही है. पूर्णिया और कोसी प्रमंडल में 01 लाख 20 हजार 129 हेक्टेयर में जूट की खेती हो रही है.

तीन साल पहले आया था जूट के दाम में उछाल

दरअसल, वर्ष 2021 में जूट की कीमत में अचानक उछाल आ गया था और बाजार में इसके दाम 7000 से 8000 प्रति क्विंटल लगाये गये थे. हरदा, गोआसी, श्रीनगर आदि ग्रामीण इलाकों के किसानों ने बताया कि उस साल दाम अधिक मिल रहे थे, तो उपज कम थी. उसी कीमत को देख 2022 में जूट की खेती का रकबा बढ़ा दिया गया. इससे बंपर उपज हुई, लेकिन दाम इस कदर गिर गये कि लागत निकाल पाना मुश्किल हो गया. किसानों के मुताबिक 2022 में खुदरा बाजार यानी फरिया के पास जूट बेचने पर 4200 से 4800 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिला, जबकि गुलाबबाग मंडी जाने पर प्रति क्विंटल 200 से ढाई सौ रुपये की बढ़त मिल गयी. वैसे, इस वर्ष गुलाबबाग मंडी में जूट के दाम 5000 से लेकर 5400 तक मिल रहे हैं. सीजन शुरू होने पर कारोबारियों को भी दाम तेज होने की उम्मीद है. वे कहते हैं कि रेट तो कोलकाता के जूट मिलरों द्वारा तय किया जाता है. इसी में वे अपने व्यवसाय की गुंजाइश तलाश करते हैं.

जूट मिल न हो पाने का खामियाजा भुगत रहे किसान

बनमनखी चीनी मिल बंद होने के बाद जूट सीमांचल के किसानों का प्रमुख कैश क्रॉप बन गया. मगर, यहां जूट मिल नहीं होने के कारण किसानों को उसका लागत मूल्य भी नहीं मिलता. जूट की कीमत पर शुरू से ही बंगाल का एकाधिकार रहा है. नतीजतन किसानों को उतनी ही कीमत मिलती है, जो बंगाल के जूट मिलों के मालिक तय करते हैं. अस्सी के दशक में तत्कालीन केंद्र सरकार ने किशनगंज एवं फारबिसगंज में जूट मिल खोलने की पहल जरूर की थी, पर वे शुरू नहीं हो सकीं. वहीं कटिहार जूट मिल भी प्रबंधकीय विसंगतियों के कारण बंद हो गया. यही वजह है कि पूर्णिया में जूट मिल और जूट आधारित उद्योग खोले जाने की मांग पिछले कई दशकों से होती आ रही है. पोखरिया के किसान दाउद आलम कहते हैं कि जब तक जूट पर आधारित उद्योग यहां नहीं होगा, तब तक उचित मूल्य मिल पाना मुश्किल है. कारण, बंगाल के जूट उद्यमी बिहार के किसानों का शोषण करते हैं. जूट किसान जनार्दन त्रिवेदी कहते हैं कि जूट पूर्णिया के किसानों का पुराना कैश क्रॉप है, जिसके बल पर किसान बड़ा से बड़ा काम कर लेते हैं.

आंकड़ों पर एक नजर

40 हजार रुपये से अधिक का खर्च एक एकड़ की खेती में है

08 क्विंटल का उत्पादन होता है एक एकड़ में

7000 से 8000 रुपये प्रति क्विंटल का रेट 2021 में था

4200 से 4800 रुपये प्रति क्विंटल है ग्रामीण बाजार का दर

5300 रुपये तक मंडी में औसत दर है जूट का

5500 रुपये है टीडीएस 5 का रेट, पर यह क्वालिटी उपलब्ध नहीं

5400 रुपये है मंडी में टीडीएस 6 का बाजार भाव

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