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प्लाज्मा के लिये दर- दर भटक रहे लोग, DMCH में धूल फांक रही लाखों की प्लाज्मा सेपरेटर मशीन

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जिला में कोरोना की लहर कहर बरपा रही है. अस्पताल में ऑक्सीजन, बेड्स और दवाइयों की आपूर्ति के बाद अब कोविड संक्रमित मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा थेरेपी की मांग हो रही है.

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दरभंगा. जिला में कोरोना की लहर कहर बरपा रही है. अस्पताल में ऑक्सीजन, बेड्स और दवाइयों की आपूर्ति के बाद अब कोविड संक्रमित मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा थेरेपी की मांग हो रही है. कोरोना काल में कई मरीज ऐसे हैं, जिनको उपचार के दौरान प्लाज्मा की जरूरत पड़ रही है.

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प्लाज्मा के लिये परिजन इधर- उधर की खाक छान रहे हैं. जबकि ब्लड से प्लाज्मा निकालने वाली उपयोगी मशीन कई माह से डीएमसीएच के रक्त अधिकोष विभाग में पड़ी है. विभागीय लापरवाही के कारण लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. इस घड़ी में जीवन दायी साबित होने वाली एफेरेसिस मशीन विभाग में धूल फांक रही है.

बताया गया है कि कोलकाता स्थित ऑथोरिटी से लाइसेंस नहीं मिलने के कारण मशीन का उपयोग नहीं किया जा रहा है. संबंधित अधिकारी ने राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से दिशा- निर्देश की मांग की है. हालांकि मशीन को इंस्टाॅल कर लिया गया है. चिकित्सकों ने बताया कि अगर एफरेसिस मशीन चालू रहता, तो कई कोरोना मरीजों के उपचार में इसका उपयोग किया जा सकता था.

व्यवस्था का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है. डॉक्टर्स कोरोना से ठीक हो चुके लोगों से आगे आकर संक्रमित पीड़ितों की प्लाज्मा देकर सहायता देने की अपील कर रहे हैं. मशीन की कीमत करीब 25 से 30 लाख रुपये बतायी जा रही है.

कैसे करता है प्लाज्मा काम

प्लाज्मा थेरेपी से कोविड का संक्रमण खत्म नहीं होता है, लेकिन जिसे प्लाज्मा दिया जाता है, उसका इम्यून सिस्टम बूस्ट हो जाता है. इससे बॉडी वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है और मरीज इस बीमारी से लड़ पाता है. जब एक कोविड-19 से ठीक हुए व्यक्ति का प्लाज्मा संक्रमित व्यक्ति के शरीर में जाता है, तो प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडीज़ बीमारी से लड़ता है. इससे संक्रमित व्यक्ति को बीमारी से उबरने में मदद मिलती है.

इस थेरेपी को कायलसेंट प्लाज्मा थेरेपी भी कहा जाता है. इसमें कोरोना से ठीक हो चुके व्यक्ति के शरीर से प्लाज्मा निकालकर संक्रमित व्यक्ति की बॉडी में इंजेक्शन की मदद से इंजेक्ट किया जाता है.

कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीज, जिनमें एंटीबॉडी विकसित हो चुका होता है, उन मरीजों की बॉडी से खून डोनेट करने के बाद उनके ब्लड से प्लाज्मा अलग किया जाता है. इसे ही कोविड मरीजों को चढ़ाया जाता है. प्लाज्मा में एंटीबॉडी बन गई होती है, इसलिए इससे मरीज जल्दी रिकवर होता है.

प्लाज्मा से बच सकती है कई जानें

कई कोरोना मरीजों को उपचार के दौरान चिकित्सक प्लाज्मा की मांग करते हैं. लिहाजा कोरोना महामारी में मरीजों के जीवन की रक्षा के लिये प्लाज्मा के लिये परिजन दर- दर भटक रहे हैं. यह मशीन कार्य कर रही होती, तो जरूरतमंद लोगों को रक्त अधिकोष विभाग से प्लाजमा मुहैया करायी जा सकती थी.

ब्लड से प्लाज्मा निकालने के लिए एफेरेसिस मशीन का उपयोग किया जाता है. एफरेसिस मशीन से प्लाजमा के अलावा प्लेटलेट भी सेपरेट किया जा सकता है. सामान्य रक्तदान से मरीज में चार हजार प्लेटलेट की संख्या बढ़ती है.

वहीं एफरेसिस मशीन से मरीज में पांच हजार तक प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ती है. कोरोना को हराकर ठीक हुए लोगों द्वारा प्लाजमा देने की स्वीकृति मिलने पर इसी मशीन के माध्यम से प्लाजमा निकाला जाना संभव है. जानकारी के अनुसार पटना के बाद डीएमसीएच में ही यह मशीन है.

Posted by Ashish Jha

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